चांदनी
नई दिल्ली. नमक की अधिक मात्रा लेने से गैस संबंधी और डयूडिनल अल्सर होने का खतरा बढ़ सकता है। पेट में नमक ज़्यादा हो जाने से जीन के क्रियाकलाप में असर पड़ता है, हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बैक्टीरियम जिसकी वजह से अल्सर होता है, और स्थिति कहीं ज़्यादा नुकसानदायक हो सकती है। नमक अधिक होने से बैक्टीरियल सेल्स के कारण मार्फोलॉजिकल बदलाव होते हैं। सेल्स बढ़ जाते हैं और एक लम्बी श्रृंखला बना लेते हैं। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ नमक पर काबू करके डायस्टॉलिक रक्तचाप में भी 2 से 8 mmHg की कमी की जा सकती है।
हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किये जिसमें कहा गया कि भोजन में नमक की कमी करके प्रत्यक्ष रूप से उच्च रक्तचाप में कमी की जा सकती है साथ ही हृदयाघात व स्ट्रोक के खतरे को भी कम किया जा सकता है। रिपोर्ट में सुझाया गया है कि एक व्यक्ति रोजाना दो ग्राम से कम सोडियम ले। सामान्य नमक का रासायनिक नाम सोडियम क्लोराइड (NaCl2½ है। तकरीबन ढाई ग्राम नमक में एक ग्राम सोडियम होता है। इसका मतलब यह हुआ कि एक व्यक्ति को रोजाना पांच ग्राम से अधिक नमक नहीं लेना चाहिए।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली के 2000 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन एक व्यक्ति रोजाना 10 ग्राम नमक लेता है। इसमें लगभग चार ग्राम सोडियम होता है। इसलिए नमक की मात्रा आधी यानी पांच ग्राम रोजाना के हिसाब से लेनी चाहिए।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं द्वारा जारी अध्ययन जो ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई, में दिखाया गया है कि नमक की मात्रा में कमी करने से हृदय संबंधी बीमारी में 25 प्रतिषत की कमी संभव है साथ ही हृदय बीमारी से होने वाली मौत के खतरे को भी 20 प्रतिशत कम किया जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2002 के अनुमान के अनुसार करीब 62 फीसदी स्ट्रोक और हृदयाघात के 50 फीसदी मामले उच्च रक्तचाप की वजह से हुए। अधिकतर लोगों की नजर में इंटरनेट टिप के तौर पर दूध में एक चुटकी नमक मिलाने से लम्बे समय तक ताजा बना रहता है, लेकिन आयुर्वेद के मुताबिक़ ऐसा नहीं है। चरक संहिता के अनुसार बहुत ज़्यादा पिपली, क्षार और नमक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। आयुर्वेद के अनुसार नमक में दूध बिल्कुल भी नहीं मिलाना चाहिए।