डॉ. मोहम्मद आल अहमद                     
सन् 1857 का भयावह काल  वास्तव में भारतीय राष्ट्र की अनगिनत क़ुर्बानियों व बलिदानों की दास्तान है .एक ऐसी दास्तान जिसका आरम्भ बहादुर शाह ज़फ़र के व्यक्तित्व से हुआ -वे कमज़ोर लेकिन पवित्र हाथ-जिन पर देश की जनता ने आस्था रखी, उन पर यकीन रखा जिसकी वजह से ही हम आज हिन्दुस्तान को आज़ाद देख रहे है, वह निश्चित ही हमारे 90 सालों के लम्बे संघर्षों का नतीजा है. इस लम्बी लड़ाई में बहादुर शाह ज़फ़र से लेकर हर उस स्वतंत्रता सेनानी के लिए श्रद्धा से सर झुक जाता है , जिसने देश को स्वराज दिलाने में भूमिका निभाई.

आज़ादी की ख्वाहिश एक ऐसी ख्वाहिश थी जिससे बेरुख़ी, एहसान फ़रामोशी और अवज्ञा ने जन्म दिया. इस भावना के विपरीत अंग्रेजों ने इसे ग़दर का नाम दिया था.

अठारहवीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नवाबों की ताक़त छिननी शुरू हो गयी थी, उनकी सत्ता और सम्मान दोनों खत्म होते जा रहे थे, बहुत सारे दरबारों में रेजिडेंट तैनात कर दिए गए थे. मुक़ामी हाकिमों की आज़ादी घटती जा रही थी, उनकी फौजों को मुअत्तल कर दिया गया था, उनके राजस्व वसूली के अधिकार व इलाके एक-एक करके छीने जा रहे थे .

बहुत सारे मुक़ामी हाकिमों ने अपनी भलाई व रियासत की हिफाज़त के लिए कम्पनी के साथ बातचीत भी की .रानी लक्ष्मी बाई चाहती थी कि कम्पनी उनके पति की मृत्यु के उपरान्त उनके दत्तक पुत्र को राजा मान ले. पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने भी कम्पनी से गुज़ारिश  की थी कि उनके पिता को जो पेंशन मिलती थी वह उनकी मौत के बाद उन्हें मिलने लगे, लेकिन कंपनी ने ये सारी गुज़ारिशें ठुकरा दीं. झाँसी की रानी बहुत ही दृढ़ निश्चयी और साहसी महिला थीं उनके लिए क्या खूब किसी शायर ने कहा है-

बड़ी ही शान से की हुक्मरानी . न दुश्मन से दबी झाँसी की रानी ..

फिरंगी नाम ही से कांपते थे    . थी ऐसी शेरनी झाँसी की रानी   ..

कम्पनी ने मुग़लों की हुकूमत को ख़त्म करने का भी पूरा इंतज़ाम कर लिया था. कम्पनी के द्वारा जो सिक्के जारी किये गए उनपर मुग़ल बादशाह का नाम हटा दिया गया, 1849 में गवर्नर जनरल डलहौज़ी ने ऐलान किया कि बहादुर शाह ज़फ़र की मृत्यु के पश्चात उनके परिवार को लाल किले से बाहर करके दिल्ली में किसी दूसरे जगह पर बसाया जाएगा 1856 में गवर्नर जनरल कैनिंग ने फैसला किया कि बहादुर शाह ज़फ़र अंतिम मुग़ल बादशाह होंगें, उनके मरणोपरांत उनके किसी भी वंशज को बादशाह नहीं माना जाएगा , उन्हें सिर्फ राजकुमार ही माना जाएगा .

31 जनवरी 1857 को मंगल पाण्डेय जो बैरकपुर में अंग्रेज़ी सेना की 34वीं इन्फेंट्री के एक सिपाही थे, को एक सफाईकर्मी द्वारा कारतूस में चर्बी होने की बात पहली बार मालूम हुई .हिन्दुस्तान के उत्तरी भागों में 1857 में ऐसी ही हालत पैदा होगयी थी . प्लासी युद्ध में विजय के 100 साल बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक भारी मुख़ालिफ़त से जूझना पड़ रहा था ,1857 में शुरू हुई इस बग़ावत ने हिंदुस्तान में कम्पनी का वजूद ख़तरे में डाल दिया था. मेरठ से शुरू करके सिपाहियों ने कई जगह बग़ावत की ,समाज के विभिन्न वर्गों के लोग बग़ावती तेवरों के साथ कम्पनी के खिलाफ उठ खड़े हुए.कुछ लोगों द्वारा यह भी माना जाता है कि उन्नीसवीं शताब्दी में उपनिवेशवाद के विरुद्ध दुनिया भर में यह सबसे बड़ा हथियार बन्द आन्दोलन था.

28 फ़रवरी 1857 को 19वीं रेजिमेंट के कमांडर माइकल द्वारा सैनिकों  को परेड के लिए हुक्म दिया गया मगर  सिपाहियों ने इनकार कर दिया .

29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने लेफ्टिनेंट बाग एवं लेफ्टिनेंट जनरल ह्यूसन को गोली मारी .8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में सैनिक न्यायालय द्वारा सज़ा सुनाये जाने  के बाद मंगल पाण्डेय को फांसी दी गयी. मेरठ में तैनात दूसरे भारतीय सिपाहियों के तेवर बहुत ज़बरदस्त रहे.

अंग्रेजों को इन घटनाओं की उम्मीद नहीं थी. उन्हें लगता था कि कारतूसों के मुद्दे पर पैदा हुई उथल-पुथल व नाराज़गी कुछ वक़्त के बाद शांत हो जायेगी ,लेकिन जब बहादुर शाह ज़फ़र ने बग़ावत को अपना सक्रिय समर्थन दे दिया तो हालत बदलने में देर नहीं लगी , रातों रात अंग्रेज़ों का तख़्त हिलने लगा.

31 मई 1857 को सैनिकों ने विद्रोह की शुरुआत करना तय किया गया था,  जिसमें 4 जून 1857 को लखनऊ में बग़ावत , 5 जून 1857 को कानपुर में बग़ावत और 12 जून 1857 को बिहार में बग़ावत की शुरुआत को तेज़ करना तय किया गया था. एक के बाद एक  रेजिमेंट में सिपाहियों ने बग़ावत शुरू कर दी और वे दिल्ली , कानपुर व लखनऊ जैसी ख़ास जगहों पर दूसरी टुकड़ियों का साथ देने निकल पड़े. उनको देखकर कस्बों और गाँवों के लोग भी बग़ावत के रास्ते पर आगे बढ़ने लगे और वे मुक़ामी नेताओं , ज़मींदारों, मुखियाओं के पीछे एकजुट हो गए.

स्वर्गीय पेशवा बाज़ीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब बिठूर में रहते थे और 4 जुलाई 1857 को नाना साहेब की मदद से दो सिपाही रेजिमेंट्स ने  कानपुर के शस्त्रागार और बन्दीगृह पर क़ब्ज़ा कर लिया और बन्दियों को आज़ाद कराया, कानपुर में बहुत से अंग्रेज़ मारे गए . उधर दिल्ली में गोरों ने कश्मीरी दरवाज़े को तोप से उड़ा दिया और नगर में दाखिल हुए, बहादुर शाह ज़फ़र और उनके दो बेटों को क़ैद कर लिया गया .दोनों शहज़ादों को लिबास उतार कर दिल्ली दरवाज़े के सामने भीड़ के समक्ष गोली मारकर उनके सिर धड़ से अलग करके एक ट्रे में ढककर बहादुर शाह ज़फ़र को पेश करने के बाद अंग्रेज अफसर हडसन ने कहा था ‘यह कम्पनी की तरफ़ से आपको एक नायाब भेंट है.’ इस पर बहादुर शाह ज़फ़र ने कहा कि देश को आज़ाद कराने के लिए देश-प्रेमी और उनकी आने वाली नस्लें अपना ख़ून बहाने से रुकने वाली नहीं हैं, यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक हमारा मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता. इसी हडसन को मुग़ल शहजादों का क़ातिल क़रार देते हुए 10 मार्च 1858 को हज़रत बाग़(हज़रत गंज) में बेगम हज़रत महल के जाबांज़ सिपाहियों ने उसका सिर धड़ से अलग करके महान देशभक्त और स्वतन्त्रता सेनानी व शहीदों के खून का बदला लिया था .

1857 के इस स्वतंत्रता संग्राम  में अंग्रेजों ने कामयाबी तो हासिल कर ली थी,लेकिन उनको एक ज़बरदस्त झटके की अनुभूति हो गयी थी और यह एहसास हो गया था कि अब वे ज़्यादा दिनों तक हिंदुस्तान में नहीं रह पाएंगे , क्योंकि सभी धर्म मिलकर देश की स्वतंत्रता के लिए एक साथ खड़े थे .
(लेखक  इग्नू-सेंटर(लखनऊ) हिन्दी विभाग में  असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सूफ़ियाना बसंत पंचमी... - *फ़िरदौस ख़ान* सूफ़ियों के लिए बंसत पंचमी का दिन बहुत ख़ास होता है... हमारे पीर की ख़ानकाह में बसंत पंचमी मनाई गई... बसंत का साफ़ा बांधे मुरीदों ने बसंत के गीत ...
  • ग़ुज़ारिश : ज़रूरतमंदों को गोश्त पहुंचाएं - ईद-उल-अज़हा का त्यौहार आ रहा है. जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं. तीन दिन तक एक ही घर में कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं. इन घरों म...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • देश सेवा... - नागरिक सुरक्षा विभाग में बतौर पोस्ट वार्डन काम करने का सौभाग्य मिला... वो भी क्या दिन थे... जय हिन्द बक़ौल कंवल डिबाइवी रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन त...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं