पारम्परिक चीज़ें रोज़गार से जुड़ी होती हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी होती हैं. इसलिए दिवाली पर अपने घर-आंगन को रौशन करने के लिए मिट्टी के दिये ज़रूर ख़रीदें, ताकि दूसरों के घरों के चूल्हे जलते रहें.
अगर आपको लगता है कि सरसों का तेल बहुत महंगा हो गया है, तो बिजली भी कोई सस्ती नहीं है.
जो ख़ुशी चन्द दिये रौशन करने से मिलती है, वह बिजली की झालरों में लगे हज़ारों बल्बों से भी नहीं मिल पाती. हम भी मिट्टी के दिये ख़रीदते हैं, ताकि ये परम्परा क़ायम रहे और रोज़गार का ज़रिया बना रहे.
अगर आपको लगता है कि सरसों का तेल बहुत महंगा हो गया है, तो बिजली भी कोई सस्ती नहीं है.
जो ख़ुशी चन्द दिये रौशन करने से मिलती है, वह बिजली की झालरों में लगे हज़ारों बल्बों से भी नहीं मिल पाती. हम भी मिट्टी के दिये ख़रीदते हैं, ताकि ये परम्परा क़ायम रहे और रोज़गार का ज़रिया बना रहे.