चांदनी 
नई दिल्ली.  डायबिटीज एक बढ़ती हुई बीमारी है. हार्ट केयर फाउंडेशन   ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल  ने यूनाइटेड किंगडम प्रोस्पेक्टिव डायबिटीज स्टडी (यूकेपीडीएस)  के अध्ययन के विश्लेषण हवाला देते हुए बताया कि 50 फीसदी मरीजों को तीन साल के बाद सिंगल ड्रग लेने की जरूरत होती है. नौ सालों के बाद 75 फीसदी मरीजों को ए1सी (एचबीए1सी) को हासिल करने के लिए मल्टिपिल थेरेपी की जरूरत होती है, जो कि पिछले तीन महीनों का औसत ब्लड शुगर होता है।

सफल शुरुआत के बाद ओरल थेरेपी के जरिए मरीजों में ए1सी स्तर यानी 7 फीसदी से कम को हासिल करने में असफल रहते हैं जो कि हर साल 5 से 10 फीसदी होती है। इसका मतलब साफ है कि मधुमेह रोगियों को एक ड्रग से शुरुआत की जरूरत होती है और इसका अंत अगले 10 सालों में इंसुलिन के तीन तरह की दवा लेने के रूप में होता है।

ए1सी की जांच हर तीन महीने में करवानी चाहिए जो कि 7 फीसदी से कम हो और इसे हर छह महीने में जरूर कराना होता है। इसके साथ ही फास्टिंग शुगर स्तर को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जोकि पिछले तीन महीनों का औसत ब्लड शुगर होता है, जिसे 7 फीसदी से कम रखनी चाहिए।

शुरुआती थेरेपी पर ध्यान न देने से अधिकतर टाइप 2 मधुमेह रोगियों में जिनका पारिवारिक इतिहास रहा होता है, उन्हें ब्लड ग्लूकोज को धीरे-धीरे समय के साथ बढ़ाना चाहिए। टाइप 2 डायबिटीज के शुरुआती इलाज में जीवन शैली, खुराक, व्यायाम और वज़न में कमी व उचित जानकारी भी मायने रखती है। अधिकतर मरीजों में इंसुलिन के लिए मेटफार्मिन के साथ मोनोथेरेपी शुरुआती उपचार को दर्शाती है। आमतौर पर मेटफार्मिन टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में शुरुआती उपचार के तौर पर प्रयोग किया जाता है। 


फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं