जमशेद क़मर सिद्दीक़ी 
मुसलमानों में एक नया 'बुद्धिजीवी' वर्ग पैदा हो गया है जिसे मुसलमानों की हर मकामी रवायत 'जहालत' लगती है। इनकी खुद की कुल तालीम बस इतनी है कि इन्होंने इर्तगुल गाज़ी के सारे सीज़न देखे हैं और मोहल्ले के लड़कों के साथ गश्त लगाई है। इन्हें लगता  है कि ताज़िये के साथ निकलती भीड़, अलम उठाते हुए नौजवान, अशरे पर होने वाले मातम, मज़ारों पर होने वाली कव्वाली, मोहल्लों में होने वाली करतबबाज़ी - ये सब जहालत है। बस ये एक बड़े तालीमयाफ़्ता हैं, बाकी सब जाहिल। 

असल बात ये है कि इन्हें मालूम ही नहीं कि ये मज़हब नहीं मआशरी अमल हैं। एक खित्ते का स्थानीयता का रंग है, लोकल हिस्ट्री का कनेक्शन है जो बाप दादा सदियों से करते आए हैं। उसका एक कॉनटेक्स्ट है। हिंदुस्तान सैकड़ों तहज़ीबों से मिलकर बना एक मुल्क है। यहां हर चार कोस पर मज़हब के साथ नई तरह की आंचलिकता जुड़ी है। आप एक ही रंग की तहज़ीब हर जगह नहीं पा सकते। अगर आप के लिहाज़ से सफेद कुर्ता पायजामे पर काली सदरी पहनकर मस्जिद तक जाना और लौट आने के अलावा सब कुछ 'जहालत' है तो जाहिल आप हैं। जिसे नहीं पता मज़हब और माशरत के बीच का फर्क। ये वो मुल्क है जहां समाज और मज़हब इतने गुंधे हुए हैं कि हर कल्चर एक दूसरे के थोड़े थोड़े रंग सजाए है। मुसलमानों की शादियों में दुल्हन हिंदू संस्कृति में शुभ माने जाने वाला लाल जोड़ा पहनती है और हिंदुओं की शादी में दूल्हा मुसलमानों के बीच मोहज़्ज़ब मानी जाने वाली शेरवानी। इसी देश में में उन ब्रह्मणों के वंशज मौजूद हैं जो कर्बला में इमाम हुसैन के साथ जंग लड़े और इसी देश में वो सूफी भी हैं जिन्होंने खुदा को अपना महबूब कह दिया और आज उनकी मज़ारों की लोग ज़ियारत करते हैं। 

लखनऊ में किन्नरों का समाज भी अपना ताज़िया निकालता है। सफेद कपड़ों में किन्नर कर्बला की जंग को याद करते हुए गाते-बजाते निकलते हैं बीसियों साल से। छोट छोटे मुहल्लों के चौराहों पर लोग कर्बला में इमाम हुसैन को मिले दर्द को याद करते हुए करतबबाज़ी करते हैं, इन स्टंट के ज़रिये वो अपनी जान जोखिम में डालते हैं उस डर को महसूस करते हैं जो यज़ीद की भारी-भरकम फौज का सामना करने  पहले एक बार लश्कर के दिल में आया होगा। ये उस ज़मीन की तहज़ीब हैं जिसने मज़हब को सिर्फ़ किताब से नहीं, हज़ारों सालों की तहज़ीब के रंग में जिया है।लेकिन अफ़सोस ये है कि आज तारिक मसूद को सुनकर नौजवान हुआ मुसलमान इसे फितना कहकर न सिर्फ खारिज करता है, उन्हें मिटाने पर भी आमादा है। इन्हें लगता है कि मज़हब महज़ एक क्लीन कट, मिनिमलिस्ट आइडिया है जिसमें लोकल कल्चर की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इनकी समझ में धर्म का रिश्ता ज़मीन से नहीं, सिर्फ़ स्क्रीन से है। इनके इस्लाम का मरकज़ किताबें नहीं, क्लिपिंग्सौ हैं। ये सोचते हैं कि अगर कोई मज़ार पर चादर चढ़ा रहा है, या कोई बच्चा अलम को माथा टेक रहा है, तो वह जाहिल है।

हक़ीक़त ये है कि ये रस्में, ये रवायतें, ये लोक-तहज़ीब — ये सब मिलकर ही तो हिंदुस्तानी इस्लाम को मुकम्मल बनाती हैं। सिर्फ़ अरबी पहनावा, या टीवी वाले तुर्की किरदार देखकर किसी तहज़ीब को “शुद्ध” नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इस मुल्क में इस्लाम सिर्फ़ मदीना से नहीं आया — वो यहां के खेतों, खलिहानों, बाज़ारों, फकीरों, दरवेशों, दस्तकारों और बाप-दादाओं की नसीहतों के ज़रिए फैला है।

जो लोग इन रवायतों को जहालत कहते हैं, उन्हें दरअसल अपने वजूद की जड़ों से डर लगता है। उन्हें हर वो चीज़ खटकती है जो इस्लाम को इस ज़मीन का बनाती है। ये दरअसल ‘सांस्कृतिक हीनभावना’ है — जो अपने भीतर की परंपराओं से भागती है, और बाहर की चमक को असली मान लेती है।

इसलिए याद रखिए मज़हब और माशरत का रिश्ता गहरा है। इसे अपनी पीढ़ियों और शिजरों की रौशनी में समझिये। ये हमारा लोकल कल्चर है जो हर दस मील पर बदलता है, इसका रंग, ज़ंबान अंदाज़ और तरीका सब बदलता है। ये अच्छी बुरी जैसी भी हैं हमारी जड़े हैं और जो इसे जहालत कहे वो खुद जाहिल है।
(लेखक आजतक रेडियो से जुड़े हैं)


أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ

أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ
I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam

फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • नजूमी... - कुछ अरसे पहले की बात है... हमें एक नजूमी मिला, जिसकी बातों में सहर था... उसके बात करने का अंदाज़ बहुत दिलकश था... कुछ ऐसा कि कोई परेशान हाल शख़्स उससे बा...
  • कटा फटा दरूद मत पढ़ो - *डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी *रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो। इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे क...
  • Dr. Firdaus Khan - Dr. Firdaus Khan is an Islamic scholar, poetess, author, essayist, journalist, editor and translator. She is called the princess of the island of the wo...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • डॉ. फ़िरदौस ख़ान - डॉ. फ़िरदौस ख़ान एक इस्लामी विद्वान, शायरा, कहानीकार, निबंधकार, पत्रकार, सम्पादक और अनुवादक हैं। उन्हें फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से ...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं