फ़िरदौस ख़ान
पिछले काफ़ी अरसे से कांग्रेस अंदरूनी कलह और बग़ावत से जूझ रही है. इसी अंदरूनी कलह की वजह से कांग्रेस केंद्र और कई राज्यों से सत्ता गंवा चुकी है. उत्तराखंड में भी कांग्रेस अपने ही विधायकों की वजह से सत्ता से बाहर हो गई थी. हालांकि काफ़ी जद्दोजहद के बाद उसे खोयी हुई सत्ता वापस मिल गई. अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं. अब कांग्रेस को तीन और राज्यों से झटका लगा है. मुंबई में निकाय चुनाव से पहले महाराष्ट्र के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुरुदास कामत ने पार्टी से इस्तीफ़ा देते हुए राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया है. गुरुदास कामत को गांधी परिवार का भरोसेमंद माना जाता है. पार्टी कार्यकर्ताओं को भेजे संदेश में उन्होंने लिखा है, "कई महीनों से मैंने महसूस किया कि मुझे नये लोगों को आगे आने के लिए पीछे हट जाना चाहिए. दस दिन पहले मैं कांग्रेस अध्यक्ष से मिला और इस्तीफ़ा देने की मंशा ज़ाहिर की. इसके बाद मैंने उन्हें और राहुल जी को पत्र लिखकर बता दिया कि मैं पार्टी छोड़ना चाहता हूं. इसके बाद से कोई जवाब नहीं आया. मैंने राजनीति से संन्यास लेने के बारे में बता दिया है." सियासी गलियारे में चर्चा है कि गुरुदास कामत मुंबई इकाई में अपनी उपेक्षा से नाराज़ थे. वह पार्टी में सुधार चाहते थे. इसके लिए उन्होंने पार्टी हाईकमान को कुछ सुझाव भी दिए, जिस पर कोई तवज्जो नहीं दी गई. कहा यह भी जा रहा है राहुल गांधी की मुंबई कांग्रेस प्रमुख संजय निरुपम से नज़दीकी और अपनी अनदेखी ने उन्हें चोट पहुंचाई.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के क़द्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पार्टी का साथ छोड़ कर अपनी अलग सियासी पार्टी बना ली है. राज्यसभा का टिकट नहीं मिलने से अजीत जोगी कांग्रेस आलाकमान से नाराज़ थे. बेटे अमित को पार्टी से निकाले जाने पर भी उनमें कांग्रेस के लिए आक्रोश था. ग़ौरतलब है कि अमित जोगी अंतागढ़ टेप कांड में कांग्रेस से निकाले गए थे. उन्होंने अपने पैतृक गांव मरवाही में कांग्रेस पर कांग्रेस छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा, "मैं अब कांग्रेस से आज़ाद हूं." इस मौक़े पर कांग्रेस के तीन विधायक और कई पूर्व विधायक भी मौजूद थे. अजीत जोगी का कहना है कि अब राज्य के फ़ैसले दिल्ली से नहीं होंगे. उनका कहना है कि कांग्रेस अब नेहरू, इंदिरा और राजीव-सोनिया गांधी वाली कांग्रेस नहीं रह गई है. इसमें जनाधार वाले नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है.

पूर्वोत्तर में भी कांग्रेस एक बार फिर संकट में घिर गई है. अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय के बाद त्रिपुरा पूर्वोत्तर का चौथा राज्य है, जहां कांग्रेस को बग़ावत का सामना करना पड़ा है.यहां पार्टी के छह बाग़ी विधायक कांग्रेस से इस्तीफ़ा देकर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. इनमें त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री समीर रंजन बर्मन के पुत्र सुदीप राय बर्मन, बिस्वबंधु सेन, दिबा चंद्र हृंखाव्ल, आशीष साहा, दिलीप सरकार और प्राणजीत सिन्हा रॉय शामिल हैं. समीर रंजन बर्मन पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं.  इससे राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की विधायकों की संख्या दस से घटकर तीन रह जाएगी. त्रिपुरा में वाम की सरकार है. विधानसभा की 50 सीटों पर वाम का क़ब्ज़ा है. यहां अब तृणमूल मुख्य विपक्षी पार्टी बन जाएगी. कांग्रेस के बाग़ी नेताओं का कहना है कि पश्चिम बंगाल चुनाव में वाम के साथ भागीदारी करने के पार्टी के फ़ैसले के ख़िलाफ़ उन्होंने इस्तीफ़ा दिया है. पिछले चुनावों में कांग्रेस की तरफ़ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार समीर रंजन बर्मन ने कहा है, " तृणमूल में शामिल होने का हमारा मक़सद वाम की इस भ्रष्ट, जन विरोधी सरकार को हराना है." उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस-वाम गठबंधन के विरोध में नेता विपक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. अब त्रिपुरा कांग्रेस में अध्यक्ष बिरजीत सिन्हा और दो अन्य विधायक हैं. ग़ौरतलब है कि त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव 2018 में होगा. माकपा के प्रदेश सचिव बिजन धर ने दावा किया है कि विधानसभा से इस्तीफ़ा देने वाले कांग्रेस के एक अन्य असंतुष्ट विधायक जितेन सरकार ने सत्तारूढ़ माकपा में शामिल होने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की है. उनका यह भी कहना है कि दिलीप सरकार माकपा के पूर्व सदस्य हैं, जो माकपा के टिकट पर पांच बार विधानसभा पहुंचे और वह नौ साल तक विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं. उन्हें माकपा में वापस लाया जाएगा.

ग़ौरतलब है कि कांग्रेस के लिए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में नतीजे मायूस करने वाले रहे. सिर्फ़ पुड्डुचेरी में ही कांग्रेस सरकार बना पाने में कामयाब रही है. असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस में बग़ावत के लिए कौन ज़िम्मेदार है. क्या कांग्रेस नेताओं का पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से विश्वास कम हो रहा है या फिर राज्यों के पार्टी नेताओं का असंतोष बग़ावत के तौर पर सामने आ रहा है.

क़ाबिले-ग़ौर है कि कांग्रेस में बग़ावत के सुर उस वक़्त मुखर हो रहे हैं, जब राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की बात चल रही है. पार्टी के दिग्गज नेता पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंप देना चाहते हैं. राहुल की टीम में युवा चेहरों को तरजीह दिए जाने की भी पूरी उम्मीद है.

हालांकि कांग्रेस की अंदरूनी दिक़्क़तों को दूर करने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक 'एडवाइज़र्स ब्लॉक' का गठन करने की सलाह दी है. इसमें दस नेता और उद्योगपतियों को शामिल किया जाएगा, जो पार्टी के अहम मुद्दों पर फ़ैसले लेंगे. बताया जा रहा है कि यह भारतीय जनता पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड जैसा होगा. राहुल गांधी इसमें पी. चिदंबरम और ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे वरिष्ठ नेताओं को शामिल करना चाहते हैं.  कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को मलाल है कि पार्टी नेतृत्व उनकी बात नहीं सुनता. राहुल गांधी को चाहिए कि वे अपनी पहुंच पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक बनाएं. अगर वे ऐसा पर पाए, तो कांग्रेस को उसका खोया रुतबा वापस दिला पाएंगे.

बहरहाल, कांग्रेस चाहती, तो गुरुदास कामत को उसी वक़्त मना लेती, जब उन्होंने इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. कांग्रेस को चाहिए कि वह भले ही पार्टी की बागडोर युवा टीम के हवाले कर दे, लेकिन पार्टी के विश्वसनीय और पुराने उन नेताओं की अनदेखी न करे, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी कांग्रेस को समर्पित कर दी. वही दरख़्त फलता-फूलता है, जिसकी जड़ें मज़बूत हों, कांग्रेस को भी अपनी जड़ों की मज़बूती को बरक़रार रखना होगा, वरना पार्टी को बिखरने में देर नहीं लगेगी.


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