अतुल मिश्र
हाज़मा दुरुस्त होने की वजह से मौसम जो है, वो लगातार सुहाना बना हुआ था. बिना रंग-भेद के बादल बेमकसद ग़रज़ रहे थे. महंगाई पर चर्चा करने के विपक्षी दलों के प्रस्ताव की तरह बिजली डराने के प्रयास में लगी थी. सोनिया गांधी की तरह हवा जो है, वो ख़ामोश थी और मनमोहन सिंह की तरह हल्की-फुलकी बूँदें अपने अस्तित्व के साक्ष्य प्रस्तुत कर रहीं थीं. सड़कों के नवनिर्मित गड्ढे मंत्रिमंडल के तरह विस्तार ले रहे थे. वाहनों द्वारा उछाली जा रही कीचड़ लोक सभा में मौज़ूद विपक्षी दलों की तरह राहगीरों को गालियां देने पर मज़बूर कर रही थी. सड़कें आज फिर संसद भवन की तरह सूनी होने के मूड में थीं. डरावने समाचार लेकर आये अखब़ार को हॉकर ने बारिश में भीगने से बचाने के लिए गोलाकार में समेंटकर हमारे बरामदे में किसी नेता पर फैंके गए जूते की तरह फेंककर हमारे मुंह की बजाय एक गमले को तोड़ने में सफलता हासिल कर ली थी.
मौसम के सुहावनेपन के मद्देनज़र बिजली ने अपनी कोई ज़रुरत ना समझते हुए ईमानदारी की तरह लोगों के घरों से किनारा कर लिया था. संसद के सदन की कार्रवाई की तरह रही-सही बारिश भी स्थगित होने के मूड में लग रही थी. पार्क में भावी सचिन तेंदुलकर और रैना अपने गेंद, बल्ले और विकेट बनाने के लिए ईंटों के अद्धे लेकर पहुंच चुके थे और बैटिंग पहले करने को लेकर विपक्षी सांसदों की तरह आपस में लड़ रहे थे. जिस सिक्के से टॉस उछाला गया था, वह ना मिलने की वजह से बच्चे माननीय सांसदों की तरह शोर मचाकर एक-दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगा रहे थे.
ना बरसने वाले बादलों में सूरज की पोज़ीशन मुलायम सिंह की तरह की हो रही थी और बहुत कोशिशों के बावज़ूद वह निकल नहीं पा रहा था. विपक्षियों द्वारा उठाये जाने वाले महंगाई के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की तरह हवा धीमे-धीमे मुस्कराने के अंदाज़ में चल रही थी. सरकारी राजस्व में बढ़ोत्तरी करने के लिहाज़ से शहर के तमाम बेवड़े इधर-उधर यह देखकर कि उन्हें कोई देख तो नहीं रहा है, दारू की दुकानों पर पहुंच चुके थे. मौसम गिरगिट और नेताओं की तरह अपना रंग बदल रहा था.बारिश की बौछारें संसद में दी जाने वाली गालियों की तरह अच्छी लग रही थीं.
कुल मिलाकर, मौसम विभाग के पूर्वानुमान के विपरीत मौसम हो रहा था. न्यूज़ चैनल पर किसी सरकारी स्कूल के आरामतलब मास्टर की तरह डंडे से मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली महिलानुमा कन्या उस वक़्त मौसम और समोसों की तरह अच्छी लग रही थी. रिटायर्ड और बुज़ुर्ग लोग मौसम के इस पूर्वानुमान बताने वाली महिला के बारे में टीवी सेट में बिना घुसे अपने कुछ मौलिक अनुमान लगाने में लगे थे. ऑफिस जाने वाले लोग भाजपा की तरह प्रधान मंत्री के भोज-निमंत्रण में ना जा पाने के बहानों की तरह ऑफिस ना जाने के बहाने खोजने में लगे थे. बैकवर्ड और घरेलू बीवियां पहली तारीख जल्दी ही आ जाने की वजह से अपने ख़समनुमा पतियों को खाने लायक नाश्ता लगा रही थीं. आज के मौसम में ऐसा बहुत कुछ था, जो बयान किया जाना चाहिए था, मगर वही बात कि सियासत में शराफ़त की तरह बिजली के गायब होने की वजह से यह अब मुमकिन नहीं हो पायेगा.