फ़िरदौस ख़ान
ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाली 70 फ़ीसद से ज़्यादा आबादी सहित देश का आर्थिक विकास कृषि क्षेत्र की हालत पर निर्भर करता है. किसानों के लिए यह भी बेहद ज़रूरी है कि ख़ून-पसीने से सींची गई फ़सल की उन्हें सही क़ीमत मिले.  इसके लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका फ़ायदा किसानों को मिल भी रहा है.  भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण के दौर में कृषि विपणन क्षेत्र में भी ख़ासा बदलाव देखा गया है. किसानों के उत्पादों को नये वैश्विक बाज़ार पहुंचाने के लिए देश की आंतरकि कृषि विपणन प्रणाली का एकीकरण और सशक्तिकरण किया जा रहा है. विभिन्न अध्ययनों की मानें, तो किसान अपने उत्पादों को ग्रामीण और अविनियमित थोक बाज़ारों के मुक़ाबले विनिमित बाजारों (कृषि उत्पाद बाजार समितियां यानी एपीएमसीए) में बेचकर ज़्यादा मुनाफ़ा हासिल करते हैं.  विपणन और निरीक्षण निदेशालय (डीएमआई) देश में बाज़ार मूल्यों संबंधी सूचना के प्रभावी आदान-प्रदान के लिए काम कर रहा है.

ग़ौरतलब है कि कृषि विपणन निदेशालय किसानों के लिए विपणन सुविधाएं मुहैया कराने का काम करता है, ताकि उन्हें उनके उत्पादन की वाजिब क़ीमत मिल सके.  कारोबार में कदाचार को ख़त्म करने के लिए बाज़ार को नियम के अधीन रखा गया है और इसलिए यह नियमित बाज़ार के रूप में जाना जाता है. मानकीकरण और कृषि उपज की ग्रेडिंग भी शुरू गई है. इस तरह किसानों को गुणवत्ता वाले उत्पादन का अच्छा मुनाफ़ा मिलता है.  बाज़ार आसूचना का कार्य बाज़ार व्यवहार को एकत्रित करना है, जो विपणन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एक शर्त के रूप में विचार में लाया जाता है.  एगमार्क के तहत ग्रेडिंग, निदेशालय का एक महत्वपूर्ण कार्य है. दरअसल, बाज़ार और बाज़ार कार्यप्रणाली के विनियमन के तहत किसानों को उनकी फ़सल के लाभकारी मूल्य के लिए विपणन सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं.

कृषि उत्पादकों के हितों की रक्षा करने के लिए कृषि उत्पाद मार्केट समितियों की स्थापना की गई है. ये बाज़ार दिल्ली कृषि विपणन निर्माण (विनियमन) अधिनियम, 1998 के प्रावधान के तहत स्थापित किए गए हैं. दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड अधीक्षण और विनियमित बाज़ार समिति के नियंत्रण के लिए कार्य कर रहा है. बाद में यह सीधे निदेशालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया है. दिल्ली में अनेक विनियमित बाज़ार काम कर रहे हैं, जिनमें नज़फ़गढ़ का खाद्य अनाज बाज़ार, नरेला में खाद्य अनाज बाज़ार, शाहदरा और ग़ाज़ीपुर का खाद्यान्न, फल और सब्ज़ी बाज़ार, मंगोलपुरी इंडस्टियल एरिया, फ़ेज़-दो का चारा बाज़ार,  आज़ादपुर का फल और सब्ज़ी बाज़ार, ग़ाज़ीपुर की मछली, मुर्ग़ा और अंडे की मार्केट, बाग़ दीवार का खोया व मावा बाज़ार, महरौली का फूल बाज़ार और केशोपुर का फल और सब्ज़ी बाज़ार शामिल हैं.

एगमार्क के तहत ग्रेडिंग का संवर्धन किया जाता है. यह योजना उत्पादकों के लिए, ग्रेडिंग सुविधाएं मुहैया करती है, ताकि वे पूर्व परीक्षत गुणवत्तायुक्त उत्पादों के बाज़ारीकरण द्वारा अनुकूल प्रतिलाभ सुनिश्चित कर सकें. ग्रेडिंग एग्रीकल्चर प्रोडयूस ग्रेडिंग और मार्केटिंग अधिनियम-1986 के तहत की जाती है. ग्रेडिंग के लिए ग्रेड मानक निर्धारित करना, रासायनिक परीक्षण के लिए पहली ज़रूरत है. इस अधिनियम के मुताबिक़ उत्पादकों के पास उत्पाद के परीक्षण के लिए अपनी प्रयोगशाला होनी चाहिए. वैकल्पिक रूप से वे राज्य सरकारों द्वारा ग्रेडिंग/ परीक्षण के लिए राज्य ग्रेडिंग प्रयोगशाला द्वारा स्थापित सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस निदेशालय में राज्य ग्रेडिंग प्रयोगशाला कार्यान्वित है. फ़िलहाल विभाग के ज़रिये ग्रेडिंग के लिए तक़रीबन 70 निर्माता संलग्न हैं. मौजूदा वक़्त में मसाले, बेसन, दालें, गेहूं का आटा, शहद, आमचूर पाउडर, हींग और वनस्पति तेल को राज्य ग्रेडिंग प्रयोगशाला में वर्गीकृत किया गया है. मई 2007 के बाद ग्रेडिंग, फलों और सब्ज़ियों का मानकीकरण भी शुरू हो गया, जिसके लिए नई माइक्रोबायोलॉजी एवं इंस्ट्रूमेंटेशन लैब्स अधिकृत हुई.

बाज़ार आसूचना के लिए समन्वित योजना के तहत बाज़ार का सर्वेक्षण, बाज़ार के नियमन और विपणन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, सही फ़ैसले की ज़रूरत है. बाज़ार के व्यवहार का नियमित अध्ययन यानी आगमन, मूल्य अध्ययन इत्यादि, नीति आदि बनाने के लिए ज़रूरी है. इसके तहत ऐसी गतिविधियों चल रही हैं, जहां विभिन्न बाज़ारों से बाज़ार की जानकारी को दैनिक और साप्ताहिक आधार पर इकट्ठा किया जा रहा है. इसके बाद इन सूचनाओं का विश्लेषण किया जाता है और विभिन्न प्रमुख एजेंसियों को विभिन्न मंत्रालयों के लिए ज़रूरी चीज़ों की दैनिक दरों को दिया जाता है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के विभिन्न बाज़ारों में विभिन्न वस्तुओं का व्यवहार का चित्रण मासिक बुलेटिन भी प्रकाशित किया गया है. थोकयुक्त एक साप्ताहिक रिपोर्ट और बड़ी संख्या में विभिन्न अनियंत्रित बाज़ार की ज़रूरी चीज़ों का खुदरा मूल्य भी तैयार किया जाता है और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को भेजा जाता है.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने कृषि-तकनीक मूलभूत सुविधा कोष (एटीआईएफ) के ज़रिये राष्ट्रीय कृषि विपणन को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय क्षेत्र परियोजना को अपनी मंज़ूरी दी है. कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी) इसे पूरे देश में चयनित विनियमित बाजारों में तैनाती योग्य आम इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के निर्माण द्वारा लघु किसानों को कृषि व्यवसाय संघ (एसएफएसी) के माध्यम से स्थापित करेगा. इसके तहत साल 2015-16 से साल 2017-18 की परियोजना के लिए 200 करोड़ रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है. इसमें डीएसी की ओर से राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के लिए निःशुल्क सॉफ्टवेयर की आपूर्ति का प्रावधान शामिल है. साथ ही, इसमें डीएसी द्वारा 30 लाख प्रति मंडी (निजी मंडियों के अलावा) तक के लिए केंद्र सरकार की ओर से संबंधित हार्डवेयर व बुनियादी ढांचे की लागत में रियायत देने का प्रावधान भी शामिल है.

इसका लक्ष्य देशभर में चयनित 585 विनियमित बाजारों को कवर करना है. साल 2015-16 में 250 मंडी, 2016-17 में 200 मंडी और 2017-18 में 135 मंडियों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है. किसान और व्यापारी देश भर में पारदर्शी तरीक़े से उचित दामों पर कृषि-पदार्थों की ख़रीद/बिक्री कर सकें, इसके लिए 585 विनियमित बाज़ारों को आम ई-मंच के साथ एकीकृत किया जाएगा. इसके अलावा इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए निजी बाज़ारों को भी इस तरह से ई-मंच के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाएगी. यह योजना अखिल भारतीय स्तर पर लागू होगी. योजना के तहत राज्यवार आवंटन का विकल्प मौजूद नहीं है. हालांकि इच्छुक राज्य को ज़रूरी कृषि-विपणन सुधारों को इस्तेमाल में लाने के लिए पूर्व अपेक्षित मांगों को पूरा करने की ज़रूरत होगी.

एसएफ़एसी कृषि मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ई-बाज़ार का विकास करने के लिए अगुआ एजेंसी होगी और यह खुली बोली (ओपन बिडिंग) के माध्यम से सेवा प्रदाता का चयन करेगी. एक उपयुक्त आम ई-बाज़ार मंच की स्थापना की जाएगी, जो राज्य/संघ प्रशासित केंद्रों में ई-मंच से जुड़ने को इच्छुक चयनित 585 विनियमित थोक बाज़ार में तैनाती योग्य होगा. एसएफ़एसी 2015-16, 2016-17 और 2017-18 की अवधि के दौरान राष्ट्रीय ई-प्लेटफॉर्म को तीन चरणों में लागू करेगी. डीएसी राज्यों के लिए सॉफ्टवेयर और इसके अनुकूलन पर हो रहे ख़र्च को पूरा करेगी और इसे राज्य और संघ शासित प्रदेशों को निःशुल्क उपलब्ध करवाएगी. डीएसी ई-विपणन मंच की स्थापना के लिए, 585 विनियमित बाज़ारों में, संबंधित उपकरण/बुनियादी ढांचे के लिए प्रति मंडी 30 लाख रुपये तक की अंतिम सीमा में एक बार तय की गई लागत के रूप में अनुदान भी देगी. बड़ी और निजी मंडियों को भी मूल्य निर्धारण के लिए ई-मंच के इस्तेमाल की इजाज़त होगी. हालांकि उन्हें उपकरण/बुनियादी ढांचे के लिए किसी भी तरह के धन से मदद नहीं की जाएगी.

ई-मंच के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को पूरे राज्य में वैध एकल लाइसेंस, बाज़ार शुल्क का एकल बिंदु लेवी मूल्य और मूल्य निर्धारण के लिए एक साधन के रूप में इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के प्रावधान के रूप में ये तीन पूर्व सुधारों को अपनाने की ज़रूरत होगी. परियोजना के तहत सहयोग पाने के लिए केवल वही राज्य और केंद्रशासित प्रदेश योग्य होंगे, जो इन तीन पूर्व अपेक्षित मांगों को पूरा करेंगे. ई-विपणन मंच का उद्देश्य कृषि विपणन क्षेत्र में सुधारों को बढ़ावा देना होना चाहिए और देशभर में कृषि-पदार्थों के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देने के अलावा किसानों की संतुष्टि को बढ़ाना भी होना चाहिए, क्योंकि इससे किसान के उत्पादन के विपणन की संभावनाएं काफ़ी बढ़ेंगी. उसकी विपणन संबंधी सूचनाओं तक बेहतर पहुंच होगी और उनके पास अपने उत्पादों की बेहतर क़ीमत पाने के लिए ज़्यादा कुशल पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी विपणन का मंच होगा, जो पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये राज्य के भीतर और बाहर भी बड़ी संख्या में ख़रीददारों तक उनकी पहुंच बनाएगा. इससे किसानों की गोदाम आधारित बिक्री के ज़रिये बाज़ार तक पहुंच में भी बढ़ोतरी होगी और इस तरह मंडी तक अपने उत्पादों को भेजने की ज़रूरत नहीं रहेगी.

क़ाबिले-ग़ौर है कि कृषि-तकनीक मूलभूत सुविधा कोष और राष्ट्रीय विपणन को स्थापित करने के लिए क्रमशः साल 2014 और 2015 में लगातार किए गए बजट की घोषणाओं के बाद, डीएसी ने कृषि-तकनीक मूलभूत सुविधा कोष (एटीआईएफ़) की मदद से राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के संवर्धन के लिए एक योजना तैयार की है. देशभर में ई-मंच के ज़रिये कृषि बाज़ारों के एकीकरण को मौजूदा कृषि बाज़ार व्यवस्था द्वारा पेश की गई चुनौतियों, ख़ासकर बहु-विपणन क्षेत्र में राज्य का विखंडन जिसमें प्रत्येक को अलग अलग एपीएमसी द्वारा व्यवस्थित किया जाता है, मंडी शुल्क के विविध स्तर, विभिन्न एपीएमसीज में व्यापार के लिए बहु लाइसेंस प्रणाली की ज़रूरत, बुनियादी ढांचे की बुरी हालत और तकनीक, सूचना विषमता का कम इस्तेमाल, कीमत निर्धारण की अपारदर्शी प्रक्रिया, बाज़ार परिवर्तन का उच्च स्तर, गति नियंत्रण का कम इस्तेमाल आदि समस्याओं को हल करने के लिए उठाए गए महत्वपूर्ण क़दम के रूप में देखा जा रहा है. यहां राज्य और देश के स्तर पर बाज़ार को एकीकृत करने, स्पष्ट तौर पर किसानों को बेहतर मूल्य प्रदान करने के लिए, आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाने के लिए, बर्बादी को रोकने के लिए और राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत बाज़ार की स्थापना के लिए आम ई-मंच के प्रावधान की ज़रूरत है.

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (एनएएम) के ज़रिये भी कृषि उत्पादों के विपणन को बढ़ावा दिया जा रहा है. केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के मुताबिक़ राष्ट्रीय कृषि बाज़ार एक राष्ट्रीय स्तर का इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल है, जिसे भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा विकसित किया जा रहा है. इसका उद्देश्य देश के विभिन्न राज्यों में स्थित कृषि उपज मंडी श्रृंखला को इंटरनेट के माध्यम से जोड़कर एकीकृत राष्ट्रीय कृषि उपज बाज़ार बनाना है. राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के पीछे स्थानीय कृषि उपज मंडी रहेगी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि बाज़ार को समानांतर कृषि विपणन व्यवस्था के रूप में विकसित नहीं किया जा रहा है. राष्ट्रीय कृषि बाज़ार से जुड़कर कोई भी कृषि उपज मंडी पहले की भांति काम करती रहेगी. राष्ट्रीय कृषि बाज़ार से जुड़कर कोई भी कृषि उपज मंडी राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क में भाग ले सकती है. किसान जब स्थानीय स्तर पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मंडी में लाते हैं, तो उन्हें स्थानीय व्यापारियों के साथ-साथ इंटरनेट के माध्यम से देश के अन्य राज्यों में स्थित व्यापारियों को भी अपने माल बेचने का विकल्प व व्यवस्था होगी. जहां बेहतर भाव मिलेंगे, किसान वहां बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे.

कृषि मंत्री ने  यह भी कहा कि राष्ट्रीय बाज़ार का लक्ष्य है कि पूरा देश एक मंडी क्षेत्र बने, जिसमें किसी भी स्थान से दूसरे स्थान के लिए कृषि उत्पाद की आवाजाही तथा विपणन आसानी से व कम समय में हो. इसका सीधा लाभ कृषकों, व्यापरियों तथा ग्राहकों को मिलेगा, क्योंकि बड़े पैमाने पर कृषि उत्पाद का व्यापार किसानों को बेहतर दाम देगा, वहीं व्यापारियों को भी अधिक अवसर मिलेंगे. यह सब करते वक़्त स्थानीय कृषि उपज मंडी के हित को कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा, क्योंकि पूरा व्यापार उसके माध्यम से ही होगा. इसके साथ कृषि उपज मंडी के कर्मचारी व व्यापारी प्रशिक्षण, आधारभूत संरचना आदि के लिए वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे कृषि उपज मंडी इस व्यवस्था को प्रभावशाली रूप से चलाने के लिए सक्षम हो.
कृषि मंत्री का यह भी कहना है कृषि उपज मंडी के राष्ट्रीय बाज़ार नेटवर्क से जुड़ने से पूर्व उस राज्य की मंडी अधिनियम में तीन प्रावधान होने ज़रूरी हैं. पहला राज्य मंडी अधिनियम में इंटरनेट के माध्यम से व्यापार का प्रावधान होना चाहिए. दूसरा, राज्य मंडी अधिनियम में भारत के अन्य राज्यों के व्यापारियों को लाइसेंस देने का प्रावधान होना चाहिए, जिससे वे किसी भी मंडी में राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के माध्यम से कृषि व्यापार प्रक्रिया में भाग ले सकें. तीसरा, मंडी अधिनियम में यह प्रावधान भी होना चाहिए कि केवल एक लाइसेंस लेकर व्यापारी प्रदेश की सभी मंडी में व्यापार कर सकता है और मंडी शुल्क एक स्थान पर अदा किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि बाज़ार को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में विकसित किया जा रहा है, ताकि इससे जुड़े हर वर्ग को लाभ मिले. किसान को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के माध्यम से कृषि उत्पाद के विक्रय में अधिक दाम मिलने की संभावना है. स्थानीय व्यापारियों को अपने ही प्रदेश के अन्य भागों में तथा अन्य राज्यों में कृषि उत्पाद बेचने के मौक़े मिलेंगे. थोक व्यापारियों को, चावल, दाल, दलहन, मिल संचालकों को सीधे राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के माध्यमों से दूर स्थित मंडी से कृषि उत्पाद ख़रीदने का मौक़ा मिलेगा. ग्राहकों को कृषि उपज आसानी से उपलब्ध होगा और मूल्य भी स्थिर रहेगा. बड़े पैमाने पर ख़रीदारी होने से गुणवत्ता तथा उत्पाद ख़राब होने का अनुपात भी कम होगा. देश की सभी मंडियों के धीरे-धीरे राष्ट्रीय कृषि बाज़ार नेटवर्क से जुड़ने से भारत में पहली बार एक राष्ट्रीय कृषि उपज बाज़ार विकसित होगा. नतीजतन देश में ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के कृषि उत्पादों के विक्रय की सुविधा होगी.

कृषि विभाग द्वारा जगह-जगह प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर किसानों को उनके कृषि उत्पाद से प्रोडेक्ट बनाने और उनकी मार्केटिंग के गुर सिखाए जाते हैं. इस दौरान विशेषज्ञ किसानों को आलू के चिप्स बनाने, अपने घर पशुओं के दूध से विभिन्न क़िस्म की मिठाइयां और पनीर आदि बनाने के तरीक़े बताते हैं. वहीं कृषि उत्पाद का भंडारण से लेकर उसके बिक्री तक उसका सुरक्षित रखरखाव कैसे किया जाए, इसकी जानकारी भी दी जाती है. विशेषज्ञ किसानों को बताते हैं कि अच्छी क़ीमत हासिल करने के लिए वे समूह बनाकर सोसाइटी एक्ट तथा कंपनी एक्ट के तहत अपने उत्पाद की मार्केटिंग करें.
किसान दिन-रात मेहनत करते फ़सल उगाते हैं. उन्हें अपनी फ़सल की सही क़ीमत हासिल करने के लिए जागरूक होना होगा. अगर वो बिचौलिये के चक्कर में न पड़कर ख़ुद अपनी उपज बाज़ार में ले जाकर बेचेंगे, तो उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा होगा. इसके लिए इन्हें जागरूक होना होगा.

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