डॉ. सुधीरेन्दयर शर्मा    
सिंचाई क्षेत्र में छह दशकों के निवेश के बावजूद सुनिश्चित सिंचाई के तहत 142 मिलियन हेक्टसयेर कृषि भूमि में से केवल 45 प्रतिशत ही कवर हो पाई है. हाल ही में शुरू हुई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) ‘हर खेत को पानी’ देने पर ध्या न केन्द्रित करने की दिशा में एक सही कदम है. इसके अंतर्गत मूल स्थारन पर जल संरक्षण के जरिए किफायती लागत और बांध आधारित बड़ी परियोजनाओं पर भी ध्यासन दिया जाएगा.
   भारत की अगले पांच वर्षों में सिंचाई योजनाओं पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. इसलिए देश में सूखे के प्रभाव को कम करना कार्यान्वजन प्रक्रिया का केन्द्रम बिन्दुन बन गया है. पिछले दो वर्षों में दस राज्योंर में गंभीर सूखा पड़ा, जिससे कृषि क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा और वस्तु.ओं की कीमते बढ़ी हैं. वर्षा आधारित कृषि भूमि के अतिरिक्तप छह लाख हेक्टेेयर क्षेत्र को सिंचाई के अंतर्गत लाने के लिए योजना के कार्यान्व्यन के पहले एक वर्ष में पांच हजार तीन सौ करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.
वर्तमान में चल रही तीन योजनाओं- त्वीरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, एकीकृत जल ग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम और खेत में जल प्रबंधन योजनाओं का विलय कर पीएमकेएसवाई बनाई गई है. इसका उद्देश्यज न केवल सिंचाई कवरेज बढ़ाना, बल्कि खेती के स्तरर पर जल के उपयोग की दक्षता बढ़ाना भी है. इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि इस योजना से लगभग पांच लाख हेक्टेनयर भूमि में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा मिलेगा.
अतिरिक्तच सिंचित क्षेत्र के लक्ष्यड को हासिल करने के लिए मौजूदा जल निकायों और पारम्प्रिक जल स्रोतों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जाएगी. पानी की बढ़ती आवश्यंकता को पूरा करने के लिए निजी एजेंसियों, भूजल और कमान क्षेत्र विकास के अतिरिक्तआ संसाधनों से पानी लेने का प्रयास भी किया गया. हालांकि यह सुनिश्चित करना गंभीर चुनौती है कि मौजूदा तीस मिलियन कुंओं और टयूबवेल से अतिरिक्तज भूजल स्रोत का दोहन न हो.
 इस संदर्भ में देश के प्रत्ये्क खेत में सिंचाई सुविधा उपलब्ध  कराने के लिए जल संरक्षण और जल की बर्बादी कम करना महत्व्पूर्ण है. इससे स्थावयी जल संरक्षण और जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की आदत बनेगी, जो नई सिंचाई सुविधाओं जितनी ही महत्व पूर्ण है. सिंचाई जल आपूर्ति के लिए कई विधियों से नगर निगम के गंदे पानी का शोधन कर उसे दोबारा उपयोगी बनाने की भी योजना है.
 एक ऐसा देश जहां सूखा पड़ने का इतिहास रहा है, वहां केवल ऐसी पहलो से हीसकल घरेलू उत्पानद में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ाने का मार्ग प्रशस्ता होगा. वर्ष 1801 से लेकर 2012 तक देश में 45 बार गंभीर सूखा पड़ा है. हाल के कमजोर मानसून का असर कृषि क्षेत्र पर पड़ा है और लगातर दूसरे वर्ष कृषि क्षेत्र का योगदान कम दर्ज किया गया. इसका बुरा प्रभाव अर्थव्यऔवस्थाव पर पड़ा है, जिसकी वजह से यह तर्क पुष्टन होता है कि सूखे के असर को कम करने से अर्थव्यसवस्था  पर कृषि का बुरा प्रभाव कम पड़ेगा.
आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 में कृषि में बदलाव की बात करते हुए संकर और उच्च  उपज बीज, प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण पर अनुसंधान में अधिक निवेश कर सूक्ष्म  सिंचाई के जरिए जल का किफायती उपयोग करने का प्रस्ता व किया गया है. जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उत्पा कदता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जलवायु स्मांर्ट कृषि प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान पर निवेश की आवश्यचकता पर ध्याान नहीं दिया गया है.
पानी की कमी बने रहने से भारतीय कृषि क्षेत्र में काफी समय से ‘उच्चध निवेश, उच्च  जोखिम’ की स्थिति है. कृषि क्षेत्र में अधिक पानी की खपत वाली फसलों के कारण जलवायु अनिवार्यता और बढ़ गई है. जब तक अनुकूल समर्थन मूल्य  के साथ कम पानी की खपत वाली फसलों विशेष रूप से दलहनों और तिहलनों पर ध्या न केन्द्रित नहीं किया जाता है, तब तक लगभग 98 मिलियन हेक्टेथयर वर्षा आधारित खेत कृषि क्षेत्र में वृद्धि के लिए योगदान नहीं कर सकते.
इसलिए पानी की दीर्घावधि आवश्यगकता की पूर्ति के लिए समग्र विकास के परिप्रेक्ष्य  में पीएमकेएसवाई के अंतर्गत ‘विकेन्द्रिकृत राज्यि स्त रीय नियोजन और कार्यान्वृयन’को बढ़ाकर व्या पक जिला सिंचाई योजनाओं तक किया जाना चाहिए. यह कार्य केवल स्थाकनीय जल संसाधनों का संरक्षण और सुरक्षित करना ही नहीं है, बल्कि वितरण नेटवर्क को दक्ष बनाना है, ताकि कठिनाई के समय में भी खेतों में फसल की उत्पािदकता को कायम रखा जा सके.
2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पासद का 30 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्स्र्जन कम करने की प्रतिबद्धता के कारण भारत को पीएमकेएसवाई के अनुरूप विकेन्द्रिकृत जल प्रबंधन अपनाकर वृहद सिंचाई परियोजनाओं में कार्बन उत्सुर्जन को कम करना होगा. हालांकि इन योजनाओं का अधिक लाभ तभी मिल पाएगा, जब यर्थावादी खेती के जरिए जैविक कार्बन मिट्टी को बढ़ाए, कार्बन स्टॉ्क मिट्टी की नमी बनाए रखे और जलवायु के प्रभाव से फसल की बर्बादी को कम किया जा सके.
इस संदर्भ में विकेन्द्रिकृत जलागम विकास के माध्य.म से सामुदायिक पानी प्रबंधन,पारम्पररिक टैंक प्रणाली और ‘मिट्टी में नमी बढ़ाने’ के लिए सुधार के जरिए ‘पानी की उपलब्ध ता’ कायम रखना महत्वापूर्ण है. यह प्रयास ग्रामीण इलाकों में सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए महत्विपूर्ण हैं, क्योंणकि भूजल भंडारण मूल स्थाइन पर मिट्टी को वास्त विक जलाशयों में परिवर्तित कर देता है, जो जलवायु के खतरों से असाधारण बचाव करता है.
नीति आयोग के अंतर्गत अंतर मंत्रिमंडलीय राष्ट्रीतय स्था यी समिति का गठन किया गया है, हालांकि यह देखना होगा कि राज्यी स्त र के विभिन्नि विभाग पीएमकेएसवाई के महत्वआकांक्षी परिणाम हासिल करने में जमीनी स्तार पर कैसा सहयोग करते हैं.
(लेखक विकास मुद्दों के अनुसंधानकर्ता एवं लेखक हैं)

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