अनीता पटनायक
किशोरियों का सशक्तिकरण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (आरजीएसईएजी) के विस्तार को मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृति प्रदान किया जाना इसी दिशा में एक अन्य महत्वपूर्ण कदम है। 11 से 18 वर्ष की आयु वर्ग वाली किशोरियों के सशक्तिकरण हेतु इस योजना को देश भर के 200 चुंनिदा जिलों में समन्वित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) परियोजनाओं और आंगनवाड़ी केंद्रों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। पोषण और आर्थिक स्तर में वृध्दि के लक्ष्य के लिए मंत्री समूह (जीओएम) की सिफारिशों के बाद इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली है। इस योजना के तहत किशोरियों को घर ले जाने के लिए राशन (टेक होम राशन) मुहैया कराया जाएगा। इसमें  यह प्रावधान भी है कि यदि कोई राज्य गर्म पका पकाया भोजन उपलब्ध कराने पर जोर देना चाहे, तो भी मानदंड वही रहेंगे। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय 100 अन्य जिलों में किशोरियों को एक विकल्प के रूप में सशर्त नकदी स्थानांतरण योजना कार्यान्वित करने की संभावनाओं का पता लगाएगा। ग्यारहवीं योजना में इस योजना से 11 से 18 वर्ष के आयुवर्ग की 92 लाख से 1 करोड़ 15 लाख किशोरियों के लाभान्वित होने की संभावना है।

प्रमुख विशेषताएं
योजना के तहत स्कूल जाने वाली 11 से 14 वर्ष के आयुवर्ग वाली लड़कियों तथा 15 से 18 वर्ष के आयुवर्ग वाली  सभी लड़कियों को साल के 300 दिन पांच रुपये प्रति लाभार्थी की दर पर पोषण संबंधी प्रावधान (600 कैलोरी और 18 से 29 ग्राम प्रोटीन) है जिसकी आधी-आधी (50:50 प्रतिशत) जिम्मेदारी केंद्र और राज्य वहन करेंगे।  आईसीडीएस की एक परियोजना के लिए प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र में एक प्रशिक्षण किट, राष्ट्रीय स्वास्थ्य शिक्षा,
जीवन कौशल शिक्षा, माताओं के लिए ऑयरन फॉलिक एसिड गोलियों की खरीद जैसे योजना के विभिन्न अंगों के लिए सालाना 3.8 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है। सबला के कोष के लिए नियत जिलों से बचे हुए जिलों में किशोरी शक्ति योजना (केएसवाई) जारी रखने तथा केएसवाई और आरजीएसईएजी-सबला के तहत 200 जिलों में उपलब्ध बचत का उपयोग इस योजना की अन्य प्रमुख विशेषताएं हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 11 से 18 वर्ष के आयुवर्ग वाली किशोरियों की बहु-आयामी समस्याओं के निराकरण के लिए सबला योजना शुरू की है। वर्ष 2010-11 में इस योजना के तहत 1000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। सरकार ने देश भर में कुल मिलाकर  7075 आईसीडीएस परियोजनाओं और 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों को मंजूरी दी है।  इनमें से कुल 7012 परियोजनाओं और 13.67 लाख आगनवाड़ी केंद्रों को 31 मई 2010 तक स्वीकृति मिल चुकी है। स्वीकृत आईसीडीएस में से 6560 चल रही हैं। इस योजना के तहत विस्तार को ध्यान में रखते हुए आईसीडीएस के लिए आबंटन बढ़ाया गया है और वर्ष 2009-10 के  6,705 करोड़ रुपये के बजट अनुमान को बढ़ाकर 8,162 करोड़ रुपये कर दिया गया है। वर्ष 2010-11 के लिए 8,700 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष के आबंटन से ज्यादा है।

कुपोषण पर सर्वेक्षण
कुपोषण प्रमुख मसला है। राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (एनएनएमबी) ने नौ राज्यों -केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओड़ीसा और पश्चिम बंगाल की ग्रामीण (2005-06) एवं जनजातीय आबादी में (2007-09) आहार और पोषण की स्थिति पर नमूना सर्वेक्षण किया था। शून्य से चार वर्ष की उम्र में होने वाली मौतों के कारणों पर भारतीय महापंजीयक की 2001-03 की रिपोर्ट के अनुसार पोषण संबंधी कमियों की वजह से होने वाली मौतें 2.8 प्रतिशत हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, तीन वर्ष से कम आयु के कम वजन वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। वर्ष 1988-89 में यह संख्या 42.7 प्रतिशत थी जो 2005-06 में घटकर 40.04 प्रतिशत रह गई। हालांकि रक्त की कमी (अनीमिया) के मामलों में वृध्दि हुई है। बच्चों में (6 महीने से 35 महीने ) अनीमिया 74.3 प्रतिशत से बढ़कर 78.9 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में अनीमिया के मामले 51.8 प्रतिशत से बढ़कर 56.2 प्रतिशत हो गए हैं। कुपोषण शिशुओं की मौत का प्रमुख कारण नहीं है लेकिन इसकी वजह से संक्रमणों के प्रत िप्रतिरोध क्षमता कम होने से बीमारियां और मौतों की संख्या बढ़ सकती हैं। भारतीय महापंजीयक की नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के अनुसार शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। वर्ष 2006 में एक हजार शिशुओं पर 57 मौतों से घटकर वर्ष 2008 में  एक हजार शिशुओं पर 53 मौतें दर्ज की गईं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पांच वर्ष तक की आयु वाले बच्चों को विटामिन-ए की खुराक की आपूर्ति, 10 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ऑयरन फॉलिक एसिड की खुराक, आयोडीन युक्त नमक को प्रोत्साहन, दो महीने से ज्यादा आयु के बच्चों के लिए अतिसार के इलाज के लिए जिंक की खुराक जैसे कई उपाय किए गए हैं।
कुपोषण से मुकाबला

कुपोषण की समस्या विभिन्न क्षेत्रों और सभी स्तरों पर समन्वयन एवं तालमेल कायम करने की जरूरत के लिहाज से बहु आयामी और बहु-वर्गीय समस्या है। सरकार, जो हमेशा से कुपोषण, विशेष तौर पर बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण के मसले को सर्वोच्च प्राथमिकता देती आई है, विविध योजनाएं लागू कर रही है, जिनका लोगों की पोषण की स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा। आईसीडीएस परियोजनाओं के अतिरिक्त इन योजनाओं में किशोरी शक्ति योजना(केएसवाई) और किशोरियों के लिए पोषण संबंधी कार्यक्रम (एनपीएजी), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम), मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएम), पेयजल एवं संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी), स्वर्णजयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) शामिल हैं। आईसीडीएस योजना में छह सेवाओं का पैकेज उपलब्ध कराया जाता है- पूरक पोषाहार, स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और रैफरल सेवाएं । इनमें से तीन सेवाएं (टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और रैफरल सेवाएं) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती हैं। सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनमें योजना का सार्वभौमिकरण किया जाना शामिल है। इनमें अनुसूचित जाति#अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के इलाकों, लागत मानकों की समीक्षा करने के साथ ही साथ आईसीडीएस के पूरक पोषण अंग के तहत पोषण एवं पोषाहार संबंधी मानकों पर विशेष ध्यान दिया गया है।  केंद्र सरकार ने बच्चों में कुपोषण की पहचान करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा प्रस्तावित मानकों को 15 अगस्त 2008 से अंगीकार किया है। 1993 की राष्ट्रीय पोषण नीति और 1995 की राष्ट्रीय पोषण कार्ययोजना में राज्यों में राज्य पोषण परिषदों की स्थापना की परिकल्पना की गई है। हाल ही में राज्यों के साथ बैठकों के दौरान इस पर जोर दिया गया है। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि आईसीडीएस के तहत एडब्ल्यूसी के माध्यम से उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं में राज्य पोषण कार्ययोजना तो शामिल हो साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि विस्तार इस तरीके से हो कि वह अन्य बातों के साथ-साथ लाभार्थियों विशेष तौर पर अधिक गरीबी और अभाव वाले इलाकों के उपेक्षित वर्गों की पोषण एवं स्वास्थ्य मांगों को पूरा कर सके। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कुछ विशिष्ट शर्तों को पूरा किए जाने के बदले नकद हस्तांतरण मुहैया कराने के लिए इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई) के नाम से दिए जाने वाले मातृत्व लाभों के लिए प्रायोगिक आधार पर सशर्त नकदी हस्तांतरण योजना पर विचार किया है। इस योजना का उद्देश्य गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति में सुधार लाना है। चालू वित्त वर्ष में इस योजना के लिए 390 करोड़ रुपये का बजट आबंटित किया गया है।

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं