अनूप भटनागर
      अदालतों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या और इनके निबटारे में हो रहे विलंब से उत्पन्न चुनौतियों से निबटने के लिए न्यायपालिका में सुधार के लिए सतत् प्रयास हो रहे हैं। अदालतों में लंबित मुकदमों का तेजी से निबटारा करने के लिए विशेष अभियान भी चलाये जा रहे हैं। अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ कम करने की दिशा में किए जा रहे न्यायिक सुधारों की कड़ी में ही अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने जेलों में रात्रि अदालतें लगाने का सुझाव दिया है। यह सुझाव बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि इस समय देश की 1,393 जेलों में करीब तीन लाख 69 हजार कैदी हैं जबकि इन जेलों की क्षमता तीन लाख 20 हजार 450 कैदियों को ही रखने की है। इन कैदियों में विचाराधीन बंदियों की संख्या काफी ज्यादा है। छोटे-मोटे अपराधों में बंद विचाराधीन कैदियों के मामलों की सुनवाई जेल में बनी रात्रि अदालत में की जा सकती है। ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेटों को कुछ मानद राशि दी जा सकती है। यह रणनीति अपनाने से जेलों में बंदियों की संख्या में अपेक्षित कमी लाना संभव होगा। जेल में ही मुकदमों का निबटारा होने से अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ भी कम होगा। जेल अदालतों में मुकदमों के निबटारे से जेलों में कैदियों की संख्या घटने की स्थिति में इन बंदियों पर होने वाले खर्च में भी कमी लाई जा सकेगी।

अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के प्रयासों के अंतर्गत ही देश में  करीब 20 साल पहले लोक अदालतों की स्थापना हुई। इसके बाद देश के कुछ राज्यों में प्रातः कालीन और सांध्य अदालतों की स्थापना के साथ ही पालियों में अदालतों का काम करने का अभिनव प्रयोग किया गया जो काफी सफल रहा। यही नहीं, इस दौरान आपराधिक मामलों का निबटारा तेजी से करने के इरादे से केन्द्रीय सहायता के साथ विभिन्न राज्यों में त्वरित अदालतों की भी स्थापना हुई थी। इन अदालतों ने बड़ी संख्या में आपराधिक मामलों का निबटारा भी किया।

      सरकार ने गांवों में जमीन विवाद और खेत-खलिहान तथा घरों की चैहद्दी को लेकर होने वाले मुकदमों का गांव में ही निबटारा कराने के लिए ग्रामीण अदालतों गठन किया। ग्राम न्यायालयों की स्थापना का उद्देश्य था कि किसानों को अपने विवादों के निबटारे के लिए बाहर या कस्बे की अदालत तक न जाना पड़े।

      जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या कम करने के इरादे से जनवरी, 2010 में तत्कालीन विधि एवं न्याय मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने मिशन अंडरट्रायल शुरू किया था। इस अभियान के तहत दो लाख से भी अधिक विचाराधीन कैदियों की रिहाई हो चुकी है। इनमें से अधिकांश कैदी छोटे-मोटे अपराधों के आरोप में सालों से जेल में बंद थे और अधिकतम सजा से भी ज्यादा समय जेल में गुजार चुके थे। जेल में ऐसे कैदी भी थे जो जमानत मिलने के बाद जमानती की व्यवस्था नहीं कर पाने के कारण रिहा नहीं हो सके थे।

      इसी तरह नागरिकों, विशेषकर ग्रामीणों को उनके द्वार पर ही त्वरित एवं सुलभ न्याय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए बने ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 को दो अक्तूबर, 2009 से लागू करने की अधिसूचना जारी हुई। इस योजना के अंतर्गत 31 जनवरी, 2012 की स्थिति के अनुसार मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडीशा और कर्नाटक में 151 ग्राम न्यायालयों ने काम करना भी शुरू कर दिया है। सरकार ने इन ग्राम न्यायालयों के बारे में आवर्ती व्यय को पूरा करने के लिए केन्द्रीय सहायता के रूप में राज्यों को 25.29 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की थी। वर्ष 2011-12 के लिए इस मद में 150 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। सरकार ग्राम न्यायालयों के कामकाज की समीक्षा के लिए अब एक अध्ययन करायेगी ताकि 12वीं योजना के दौरान इसके कार्यान्वयन को अधिक कारगर बनाया जा सके।

      अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने की दिशा में 20 साल से लोक अदालतें भी अहम भूमिका निभा रही हैं। एक अप्रैल 2011 से 30 सितंबर, 2011 की अवधि में देश में 53,508 लोक अदालतों का आयोजन किया गया जिनमें 13 लाख 75 हजार से अधिक मामलों का निबटारा किया गया। यही नहीं, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी जेलों में बंद 26 हजार से अधिक विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के साथ ही उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के निबटारे के लिए जेलों में लोक अदालतें लगाई जिनमें 15 हजार सात सौ से अधिक मामलों का निबटारा किया गया।

      न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पद बड़ी संख्या में रिक्त होना भी अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या में निरंतर वृद्धि का एक कारण है। उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों तथा न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने और नए पदों के सृजन की प्रक्रिया को भी गति प्रदान की गई है।

      अधीनस्थ तथा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त स्थानों को भरने के लिए जुलाई-सितंबर, 2011 से विशेष अभियान शुरू किया गया। इस अभियान की प्रगति के बाद इसे जनवरी 2012 से छह महीने के लिए बढा दिया गया है। एक अनुमान के अनुसार अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के तीन हजार से अधिक पद रिक्त हैं।

      न्यायपालिका में बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए केन्द्र सरकार की सहायता से एक योजना चल रही है जिसके अंतर्गत अदालतों की इमारतों के साथ ही न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए मकानों का निर्माण हो रहा है। इस योजना पर अमल के लिए केन्द्र सरकार और राज्यों को 75:25 के अनुपात में खर्च वहन करना है। इस योजना के अंतर्गत 31 मार्च 2012 तक 1,841 करोड़ रुपए खर्च किये गए हैं।

      अधीनस्थ अदालतों में लंबे समय से लंबित मुकदमों के तेजी से निबटारे के लिए सरकार ने 11वें वित्त आयोग की सिफारिश पर केन्द्रीय सहायता के साथ राज्यों में त्वरित अदालतें गठित कीं। इस योजना के तहत 1,734 त्वरित अदालतें गठित की गई थीं। गत वर्ष 31 मार्च 2011 तक देश में 1,192 त्वरित अदालतें काम कर रही थीं। सन 2000 में शुरू हुए इस अभिनव प्रयोग के अंतर्गत 11 सालों में त्वरित अदालतों ने करीब 33 लाख मुकदमों का निबटारा किया।

      अब 13वें वित्त आयोग ने 2010-15 की अवधि में राज्‍यों में न्यायिक सुधार के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए पांच हजार करोड़ रुपए के अनुदान की सिफारिश की। केन्द्रीय सहायता से इस अवधि के दौरान राज्यों को कई महत्वपूर्ण कदम उठाने हैं। इनमें राज्यों में अदालतों में उपलब्ध सुविधाओं के साथ ही अदालत के काम के घंटे बढ़ाने और पालियों में अदालतों की बैठक आयोजित करना, नियमित अदालतों का काम का बोझ कम करने के लिए लोक अदालतों को अधिक सक्रिय करना, विवादों के समाधान के लिए वैकल्पिक विवाद निबटान तंत्र को बढ़ावा देना और प्रशिक्षण के माध्यम से न्यायिक अधिकारियों और लोक अभियोजकों की कार्य क्षमता में वृद्धि करना जैसे उपाय शामिल हैं।

इस दिशा में काफी तेजी से काम हो रहा है और उम्मीद की जाती है कि न्यायिक सुधारों के इन प्रयासों से जहां एक ओर अदालतों में काम का बोझ कम होगा वहीं दूसरी ओर नागरिकों को तेजी से न्याय सुलभ हो सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

रमज़ान की मुबारकबाद

रमज़ान की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • फ़िरदौस ख़ान का परिचय - फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से जाना जाता है. वे शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं. वे कई भाषाओं की जानकार हैं. उन्होंने दूरदर्शन केन्द्...
  • ग़ुज़ारिश : ज़रूरतमंदों को गोश्त पहुंचाएं - ईद-उल-अज़हा का त्यौहार आ रहा है. जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं. तीन दिन तक एक ही घर में कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं. इन घरों म...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • देश सेवा... - नागरिक सुरक्षा विभाग में बतौर पोस्ट वार्डन काम करने का सौभाग्य मिला... वो भी क्या दिन थे... जय हिन्द बक़ौल कंवल डिबाइवी रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन त...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं