अरुण कुमार पानीबाबा
ऋतुचर्या के अनुसार शिशिर को हेमंत का विस्तार माना गया है. ठेठ सर्दी के दो महीनों में शरीर की वैसी ही कफकारक प्रवृत्ति बनी रहती है जैसी कि दीवाली के बाद नजला, खांसी होने लगती है. मध्य फरवरी यानी वसंत के आगमन तक यह ध्यान जरूरी है कि जो कुछ खाएं वह कफनाशक हो, गरमाई देने वाला हो, भूख-प्यास यानी जठराग्नि को सुरक्षित बनाये रखने वाला हो वर्ना वसंत और गर्मी के दौरान संचित कफ नये-नये रोग विकार गले लगा लेगा. इस मौसम में शाम की दावत में बहुत एहतियात जरूरी है.
नवंबर से फरवरी अंत तक यदि शाम की दावत चार-पांच बजे से शुरू नहीं है और स्वागत शाम आठ बजे ही शुरू होना है तो तमाम चटर-पटर व्यंजनों, जिन्हें आजकल स्नैक्स वगैरह कहते हैं, को सिरे से नकार दीजिए. मेहमान का आते ही गर्मा-गरम सूप या रस पपड़म से स्वागत कीजिए और पहला स्टॉल ताजे हलवे का लगाइए. चाहे जो हलवा हो गाजर, मूंग दाल, शकरकंदी, बादाम या आटा बेसन का, ढाक के हरे पत्ते पर ही परोसिये, ताकि पत्ता हथेली पर रखते ही हथेली से हृदय तक गरमाई का अहसास हो जाये.
गर्मा गरम सूप/रसम और हलवे से पहले, एक जरूरी बात- मेहमान के पंडाल में घुसते ही पहली व्यवस्स्था निवाए पानी से हाथ धुलवाने और स्वच्छ नैपकिन से पोंछने की होनी चाहिए. यह कदापि न भूलिए कि हलवे से चावल तक भारतीय भोजन का वाद अंगुलियां चाट कर खाने में ही हैं. िफर हमारी व्यंजन सूची में तो हाथ से खाने के अलावा दूसरा उपाय ही नहीं.
रात्रि में शुरू और अंत की मिठाई के अलावा सिर्फ चार स्टॉल लगवाइए. पहला स्टॉल दक्षिण भारतीय आप्पम, इडियाप्पम और डोसा साथ में सब्जी का कुर्मा, अवियल, सांभर, दो तीन तरह की चटनियां और नारियल दूध. यह बात सही है कि तीनों व्यंजनों मेंे चावल की प्रधानता है. पर बनाने की विधि में जितना नीरा-ताड़ रस और दाना मेथी और उड़द के प्रयोग करते हैं और सहज खमीर उठाते हैं उससे चावल की प्रवृत्ति सम हो जाती है. िफर कुर्मा तो खसखस और गर्म मसालों से ही सुवािसत होता है. विशेषकर छोटी बड़ी लौंग. अवियल का दही भी पानी मिला कर छाैंका जाता है आर्र पर्याप्त मात्रा में. नारियल कस पीस कर मिलाते हैं. एक बात और स्पष्ट कर दें कि देर रात इडली बड़ा परोसना बेतुकी बात है. दूसरा स्टाॅल परंपरागत पूड़ी, बेड़मी, खस्ता कचौरी का होना चाहिए. तयशुदा मीठा कद्दू, रसे के रपटवा आलू और मेथी की चटनी या मेथी-आंवले की सब्जी बस उससे अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं. परोसदारी के लिए ढाक के दोने और सादी सपाट पत्तल ही उपयुक्त है.
प्रमुख आकर्षण और लगभग नया सुझाव तीसरा स्टॉल है- कच्ची हल्दी की विशिष्ट सब्जी और सरल सादा मारवाड़ी फुल्का. इसमें आधे फाल्गुन तक (होली से पंद्रह िदन पहले तक) पंद्रह िदन वसंत के भी जोड़ लीजिए. इन ढाई महीनों में पौष से लेकर मध्य फाल्गुन तक शुद्ध गौघृत में बनी हल्दी लहसुन या हल्दी खसखस में बनी सब्जी से बेहतर न कोई व्यंजन/ पकवान है, न सर्दी से बचने की औषधि, न सिद्ध वाजीकरण रसायन और न अन्य कोई शाही दावत. नुस्स्खे से पहले यह स्पष्ट कर दें कि मारवाड़ी फुल्का, दोनों परत इकसार, बिलकुल बिना काली चित्ती, लेकिन तोड़ने चबाने में कुरकुरा हो.
हल्दी की सब्जी बनाना जान लीजिए और फरवरी तक न्यूनतम चार बार अधिकतम आठ बार इसका प्रयोग कर लीजिये - बुजुर्गों को सर्दी से राहत मिल जायेगी, बच्चों और युवजन के अंगों में तेल पानी लग जायेगा - जोड़ खुल जायेंगे, ठंडी हवा का झोंका अच्छा लगने लगेगा.सामग्री- सवा सेर गौघृत, सवा सेर पंच मेवा (पाव भर किशमिश, बादाम, काजू, मखाना और छुआरा), ढाई सेर गाय के दूध का घर जमाया दही, पाव भर बीज झड़ी सुर्ख लाल मिर्च, पाव भर सूखा साबूत धनिया, आधा पाव सेंधा नमक, सेर पर कच्ची हल्दी, सेर भर लहसुन (जो लहसुन से परहेज करते हों वह पाव खसखस, पाव मगज, पाव बादाम का मसाला बना लें).
तैयारी- बादाम भिगो कर छील लें (उबाल कर नहीं), हल्दी अच्छी तरह धोकर छीलें, लहसुन छील कर धो लें, मिर्च और धनिया धोकर भीगो दें- यह पांचों चीज सिल पर महीन पीसनी चाहिए या दक्षिणी गोल पत्थर में. नयी तरह के दो-तीन पत्त्थर वाले ग्राइंडर में भी पिसाई ठीक हो जाती है. छुआरों की धो िभगोकर कतरन कटेंगी. मखाने पोछ सुखाकर दो टुकड़ों में काटने चाहिए. किशमिश, काजू धोकर फरहरे कर लें.एक सेर हल्दी की सब्जी के लिए दस -बारह सेर अंदाज की कड़ाही या भारी भगोना होना चाहिए. बर्तन या तो कच्चे या पक्के लोहे के, या भरत के या पीतल के कलईदार यह जो आजकल प्रेशर कुकर वाला सफेद मेटल चल पड़ा है- इसके बिलकुल नहीं.
विधि- कड़ाही चढ़ाकर उसमें आधा सेर घी चढ़ाएं- पहले लहसुन या खसखस-मगज की चटनी भूने. गुलाबी हो जाये तो उसमें मिर्च का घोल डालें, मिर्च घी छोड़ दें तब धनिया, वह भी भुन जाये तब दही डालकर भुनाई करें. जाला पड़ जायये तो हल्दी और बादाम की पिट्ठी डाल दें. बीच बीच में जरूरत के हिसाब से घी की मात्रा बढ़ाते रहें. लेकिन पाव भर घी मेवा छौंकने के लिए अवश्य बचा लें. जब हल्दी और बादाम की पिट्ठी भी सिंक जायें तो अंदाज से सेर सवा सेर पानी लगाकर छुआरों की कतरनें डाल कर ढंक दें- मंदी आंच पर कम से कम घंटा भर धीमा-धीमा खदबदाने दें. सब्जी तैयार है बस बचे पाव घी को छोटे भगोने में पकाएं उसमें काजू और मखानों को हल्का गुलाबी भूनकर किशमिश भी फुला लें. यह तड़का लगाते ही सब्जी परोसने के लिए तैयार है. तैयार माल लगभग आठ सेर बैठेगा जो अस्सी से सौ खाने वालों के लिए पर्याप्त होगा.
(शुक्रवार से साभार)