फ़िरदौस ख़ान
खेती के लिए मिट्टी और पानी के अलावा पोषक तत्वों की भी ज़रूरत होती है, जैसे नाइट्रोजन, फ़ास्फ़ोरस, पोटैशियम (पोटाश), कैल्शियम, गंधक या सल्फ़र, मैग्नीशियम, बोरॉन, क्लोरीन, मैगनीज़, लोहा, जस्ता (ज़िंक), तांबा (कॉपर) और मॉलीब्लेडनम आदि. नाइट्रोजन, फ़ास्फ़ोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व हैं, जो ज़्यादातर खेतों में ख़ूब इस्तेमाल किए जाते हैं, बाक़ी पोषक तत्व ज़रूरत के हिसाब से ही इस्तेमाल में आते हैं. इनमें सबसे ज़रूरी पोषक तत्व है नाइट्रोजन, जो यूरिया से मिलता है. यूरिया एक सफ़ेद क्रिस्टलीय पदार्थ है.  इसमें 46 फ़ीसद नाइट्रोजन होती है. यह पानी में अति घुलनशील है और रसायनज्ञों द्वारा संश्लेषित यह पहला ऒर्गेनिक मिश्रण है. यह उपलब्धि 18वीं सदी की शुरुआत में हासिल की गई थी. इसे प्रिल्ड के साथ-साथ दानेदार रूप में उत्पादित किया जाता है. यूरिया से फ़सल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है. इसलिए किसान ज़्यादा पैदावार लेने के लिए यूरिया का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं. इससे मिट्टी और फ़सल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. साथ ही इससे पर्यावरण भी दूषित होता है. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति घटती है. फ़सल में ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल में लाया गया नाइट्रोजन वाष्पीकरण और निक्षालन के ज़रिये ख़त्म हो जाता है. कुछ पानी में बह जाता है, जिससे पानी दूषित होता है. भूजल में नाइट्रोजन की ज़्यादा मात्रा सेहत के लिए नुक़सानदेह हो सकती है. ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादातर भूजल का ही इस्तेमाल किया जाता है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया का ज़्यादा इस्तेमाल नाइट्रोजन की कुशलता को कम करता है. साथ ही इससे उत्पादन की लागत में बढ़ती है और मुनाफ़े में कमी आती है.

यूरिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने से फ़सल के रसीलेपन को बढ़ावा मिलता है, जिससे पौधे बीमारियों और कीट संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं.  उत्तर प्रदेश में ज़्यादा यूरिया के इस्तेमाल से गन्ने की मिठास में कमी आई है. प्रदेश के पश्चिमी इलाक़े में यूरिया का इस्तेमाल बढ़ा है, जिससे गन्ने से चीनी की रिकवरी कम हो रही है. दूसरी तरफ़ जहां प्रदेश के पूर्वी और मध्य इलाक़े में यूरिया का इस्तेमाल संतुलित है, वहां गन्ने की मिठास बढ़ी है. कृषि वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि अगर यहां के किसानों ने उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल नहीं किया, तो आने वाला वक़्त किसानों और चीनी उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा. ग़ौरतलब है कि फ़सल उत्पादन में आए ठहराव का पता लगाने और उसका समाधान करने के लिए केंद्र सरकार ने पोषक तत्व प्रबंधन कार्यक्रम चलाया हुआ रखा है. इसके तहत देश को 15 हिस्सों में बांटा है. विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट्रोजन से पत्ती में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बढ़ जाती है. अगर पर्याप्त मात्रा में पोटाश उपलब्ध नहीं है, तो पौधे का भोज्य पदार्थ महत्वपूर्ण भाग तक नहीं पहुंच पाता है. जो थोड़ा-बहुत पहुंचता है वह शर्करा में परिवर्तित नहीं हो पाता है, जिससे चीनी का परता कम हो जाता है. गन्ने में मिठास बढ़ाने के लिए उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल किया जाना चाहिए. प्रति हेक्टेयर फ़सल में नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फ़ास्फ़ोरस 40-60 किलोग्राम, पोटाश 40-60 किलोग्राम इस्तेमाल करनी चाहिए. ज़रूरत पड़ने पर सल्फ़र 40 किलोग्राम, ज़िंक 20 किलोग्राम और बोरेक्स 5 किलोग्राम इस्तेमाल की जा सकती है. तक़रीबन दस साल पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने में चीनी का परता औसतन 10-10.5 फ़ीसद था, जो अब घटकर औसतन 9 फ़ीसद रह गया है. हाल के पेराई सत्र में यह दर 8.81 फ़ीसद रही. हालांकि पूर्वी उत्तर प्रदेश का परता 9.27 फ़ीसद और मध्य उत्तर प्रदेश का 9.13 फ़ीसद रहा. इसी तरह पिछले दिनों पंजाब में यूरिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने से कपास की फ़सल पर सफ़ेद मक्खी का संकट छा गया था.  राज्य के जिन किसानों ने संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया, वहां सफ़ेद मक्खी का असर काफ़ी कम हुआ.

क़ाबिले-ग़ौर है कि लगातार बढ़ती महंगाई की वजह से किसान सस्ते यूरिया का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. वैज्ञानिक ढंग से आधुनिक कृषि के लिए संतुलित मात्रा में यूरिया फ़ास्फेट और पोटाश का इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है, लेकिन साल 2009-10 से 2012-13 के दौरान देश के विभिन्न हिस्सो में उत्पादन बढ़ाने के लिए अंधाधुंध यूरिया का इस्तेनाल किया गया. असंतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से ज़मीन बंजर जो जाती है. इस दौरान फ़सलों के लिए ज़रूरी पोषक तत्व फ़ास्फेट और पोटाश का इस्तेमाल कम होता चला गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2009-10 के दौरान देश में जहां 266.74 लाख टन यूरिया की खपत हुई थी, वहीं साल 2012-13 के दौरान यह बढ़कर 300.03 लाख टन हो गई. साल 2013-14 के दौरान देश में यूरिया का कुल उत्पादन तक़रीबन 227 लाख टन हुआ, जबकि इसकी खपत क़रीब 306 लाख टन हुई. किसानों की मांग को पूरा करने के लिए इस दौरान तक़रीबन 70 लाख टन यूरिया आयात किया गया. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में यूरिया के दाम में भारी इज़ाफ़ा हो रहा है. साथ ही रुपये के कमज़ोर पड़ने की वजह से यूरिया की सब्सिडी का बोझ बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार ने पिछले बजट में उर्वरकों की सब्सिडी को दो हज़ार करोड़ रुपये बढ़ाकर क़रीब 72,968 करोड़ रुपये कर दिया.  इसमें से यूरिया के घरेलू उत्पादन को 38,200 करोड़ रुपये की सब्सिडी और यूरिया के आयात पर 12,300 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का प्रावधान है. ग़ौरतलब है कि यूरिया के दाम में सरकार द्वारा पिछले कई सालों से बढ़ोतरी नहीं की गई. साल 2002 से 2010 तक के आठ सालों में यूरिया की के दाम लगातार लगभग 4,830 रुपये प्रति टन रखे गए.  साल 2010 में 10 फ़ीसद की बढ़ोतरी हुई थी, जिससे इसकी क़ीमत 5,310 रुपये प्रति टन हो गई. फिर दो साल बाद 2012 में 50 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी के बाद इसके दाम 5,360 रुपये प्रति टन रखे गए.   

केंद्र सरकार के उर्वरक विभाग ने पिछले एक साल के दौरान उर्वरकों से संबंधित कई ज़रूरी क़दम उठाए.  नई यूरिया नीति-2015 सीसीईए के फ़ैसले के आधार पर उर्वरक विभाग ने 25 मई, 2015 को नई यूरिया नीति-2015 (एनयूपी-2015) अधिसूचित की है. इसका मक़सद देश में यूरिया का उत्पादन बढ़ाना, यूरिया के उत्पादन में ऊर्जा की दक्षता को बढ़ावा देना और सरकार पर सब्सिडी के बोझ को कम करना है. उम्मीद जताई जा रही है कि तीन साल के दौरान घरेलू यूरिया क्षेत्र ऊर्जा दक्षता के मामले में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगा. वास्तविक ऊर्जा खपत और वर्तमान मानदंडों के आधार पर यूनिटों को तीन समूहों में बांटा गया है और अगले तीन वित्तीय वर्षों के लिए संशोधित ऊर्जा खपत मानदंड निर्धारित किए गए हैं. इसके अलावा साल 2018-19 के लिए ऊर्जा मानदंडों का भी लक्ष्य रखा गया है. इससे यूरिया इकाइयों को बेहतर प्रौद्योगिकी का चयन करने और ऊर्जा की खपत घटाने के विभिन्न प्रयास करने में मदद मिलेगी. इसके कारण उच्च ऊर्जा दक्षता से सब्सिडी बिल कम करने में मदद मिलेगी. यह उम्मीद है कि सरकार का सब्सिडी भार दो तरीक़ों से कम हो जाएगा, यानी निर्दिष्ट ऊर्जा खपत मानदंडों में कटौती और अधिक घरेलू उत्पादन के कारण आयात में कमी आना. उम्मीद है कि नई यूरिया नीति से अगले तीन वर्षों के दौरान 1.7 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त वार्षिक उत्पादन होगा. उर्वरक विभाग द्वारा यूरिया के सभी देसी उत्पादकों के लिए यह ज़रूरी बना दिया गया है कि वे अपने रियायती यूरिया का शत-प्रतिशत उत्पादन नीम चढ़े यूरिया के तौर पर करें, क्योंकि एनसीयू को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता. इसलिए रियायती यूरिया का ग़ैर-क़ानूनी इस्तेमाल संभव नहीं होगा. सरकार का ग़ैर-कृषि उद्देश्यों के लिए यूरिया के ग़ैर-क़ानूनी इस्तेमाल पर रोक लगाने का मक़सद सब्सिडी में हेराफेरी को रोकना है.

ग़ौरतलब है कि नई निवेश नीति (एनआईपी)-2012- सरकार ने यूरिया क्षेत्र में नये निवेश को प्रोत्साहित करने और यूरिया क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2 जनवरी, 2013 को नई निवेश नीति-2012 जारी की थी. इसके बाद एनआईपी-2012 में विभाग ने 7 अक्टूबर, 2014 को संशोधन अधिसूचित किया, जिसमें यह प्रावधान शामिल किया गया कि केवल वे इकाइयां जिनका उत्पादन इस संशोधन के अधिसूचित होने की तारीख़ से 5 सालों के भीतर शुरू हो जाता है, वे इस नीति के तहत आएंगी. सब्सिडी उत्पादन शुरू होने की तारीख़ से 8 वर्षों की अवधि के लिए वर्तमान रूप में केवल घरेलू बिक्री पर ही दी जाएगी. इसके बाद इकाइयां उस वक़्त प्रचलित यूरिया नीति द्वारा नियंत्रित होंगी. इस नीति के मुताबिक़ एनआईपी-2012 के तहत परियोजना प्रस्ताव की गंभीरता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने और परियोजनाओं के समय पर निष्पादन के लिए सभी परियोजना प्रस्ताव से हर परियोजना के लिए 300 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी (बीजी) जमा करवाना ज़रूरी होगा. एलएसटीके/ईपीसीए ठेकेदारों को अंतिम रूप देने के बाद 100 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जारी कर दी जाएगी और अग्रिम राशि ठेकेदार के खाते में जारी कर दी जाएगी. 100 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी के आदेश दिए गए उपकरणों को पूरा करने और उनकी कार्य स्थल या परियोजना चरण के मध्यबिंदु पर आपूर्ति करने पर जारी कर दी जाएगी तथा 100 करोड़ रुपये की बकाया बैंक गारंटी परियोजना के पूरी होने पर वापस की जाएगी. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बैंक गांरटी जमा करने से छूट है.

नेफ्था से फीड स्टॉक के रूप में यूरिया का उत्पादन जारी है. अधिसूचना 17 जून 2015 के द्वारा सीसीईए के फ़ैसले के आधार पर उर्वरक विभाग ने तीन नेफ्था आधारित यूरिया इकाइयों मद्रास फर्टिलाइजर लिमिटेड-मनाली, मैंगलोर फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल्स लिमिटेड-मैंगलोर और सदर्न पेट्रोकैमिकल्स इंडस्ट्रीज कारपोरेशन-तूतीकोरिन को उत्पादन जारी रखने की इजाज़त दी गई है. इन संयंत्रों में उत्पादन पाइप लाइन या अन्य किसी माध्यम से गैस की आपूर्ति सुनिश्चित होने तक जारी रहेगा. नामरूप (असम) में 8.6 एलएमटीटीए  यूरिया संयंत्र की स्थापना : केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 21 मई, 2015 को आयोजित अपनी बैठक में निजी भागीदारी (परियोजना में 52 इक्विटी के लिए सार्वजनिक/निजी क्षेत्र से बोलियां आमंत्रित करके) के आधार पर बीबीएफसीएल के वर्तमान परिसर के साथ नामरूप में 8.646 एलएमटीपीए की न्यूनतम क्षमता का न्यू ब्राउन फील्ड अमोनिया-यूरिया कॉम्पलेक्स स्थापित करने की मंज़ूरी दी थी.

तलचर, रामागुंडम, सिंदरी, गोरखपुर और बरौनी इकाइयों का पुनरुद्धार किया जाएगा. सीसीईए ने अगस्त, 2011 में एफसीआईएल और एचएफसीएल की सभी इकाइयों का मनोनयन और बोली प्रणाली द्वारा पुनरुद्धार करने की मंज़ूरी दे दी है. सीसीईए/मंत्रिमंडल के नये फ़ैसलों के मुताबिक़ एफसीआईएल की तलचर और रामागुंडम इकाइयों का पुनरुद्धार मनोनयन तरीक़े से और एफ़सीआईएल की गोरखपुर तथा सिंदरी इकाइयों तथा एचएफसीएल की बरौनी इकाई का बोली के तरीक़े से पुनरुद्धार किया जाएगा. ग़ौरतलब है कि पिछले वर्षों के मुक़ाबले देश में 2015-16 के दौरान (अप्रैल 2015 से अक्टूबर 2015 तक की अवधि के दौरान) यूरिया का सर्वाधिक 141.66 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ. अक्टूबर 2015 में यूरिया का सर्वाधिक 21.58 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ.

केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है कि किसानों को उत्पादन बढ़ाने और उत्पादन लागन कम करने के लिए नीम चढ़ा यूरिया का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. नीम चढ़ा यूरिया जल, मिट्टी तथा वायु प्रदूषण कम करने में सहायक है. उन्होंने बताया कि भारत हर साल 70 लाख टन यूरिया का आयात करता है, जिससे विदेशी मुद्रा पर असर पड़ता है.

ग़ौरतलब है कि पिछले साल सरकार ने देश में नीम चढ़े यूरिया का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाने के लिए इसके उत्पादन से पाबंदी हटा दी थी. रसायन एवं उर्वरक मंत्री अनंत कुमार का कहना था कि नीम चढ़े यूरिया से न केवल फ़सलों की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों की कच्चे माल संबंधी लागत भी घट जाएगी. इससे महंगे उर्वरकों के आयात में कमी सुनिश्चित होगी और इसके साथ ही भूमि एवं मिट्टी का प्रदूषण भी घट जाएगा. उनके मुताबिक़ मौजूदा वक़्त में भारत केवल 60 लाख मीट्रिक टन नीम चढ़े यूरिया का इस्तेमाल करता है, जिसे बढ़ाकर 310 लाख मीट्रिक टन की पूर्ण मांग के स्तर पर पहुंचाया जा सकता है. सामान्य यूरिया के मुक़ाबले नीम चढ़ा यूरिया 5 फ़ीसद महंगा है. हालांकि इससे नाइट्रोजन का नुक़सान तक़रीबन 10 फ़ीसद घट जाता है, जिससे किसानों को प्रति बोरी (बैग) 13.5 रुपये की शुद्ध बचत होती है. नाइट्रोजन के उपयोग की क्षमता बढ़ जाने पर नाइट्रोजन चढ़े यूरिया का इस्तेमाल यूरिया के आयात की ज़रूरत भी ख़त्म कर सकता है. ऐसे में विदेशी मुद्रा की भारी-भरकम बचत होगी. मौजूदा वक़्त में भारत तक़रीबन 71 लाख मीट्रिक टन यूरिया का आयात करता है. नीम चढ़े यूरिया के इस्तेमाल से किसानों को भी फ़ायदा होगा. इससे जहां एक तरफ़ उत्पादन बढ़ेगा, वहीं यूरिया का कम इस्तेमाल होने से कीटों का हमला भी घट जाएगा.

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फ़सलें यूरिया में पाए जाने वाले नाईट्रोजन का ज़्यादा उपयोग नहीं कर पातीं और इसके बहुत सारे अवयव बेकार हो जाते हैं. नीम चढ़े यूरिया के ज़रिये नाईट्रोजन की उपयोगिता बढ़ाकर यूरिया की खपत में कमी की जा सकती है. भारत किसी न किसी प्रकार से सदियों से नीम का इस्तेमाल कर रहा है. नीम प्राचीन काल से ही किसानों का सच्चा मित्र रहा है. नीम चढ़ा यूरिया विकसित किया गया है. इस यूरिया में नीम तेल मिला होता है और पूरे देश में किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. नीम चढ़े यूरिया का इस्तेमाल करके नाईट्रोजन की उपयोग क्षमता 10 से 15 फ़ीसद बढ़ाई जा सकती है. उर्वरकों के संतुलित उपयोग से मिट्टी की सेहत लंबे वक़्त तक बनाई रखी जा सकती है.

देश के कई इलाक़ों में किसानों को यूरिया की क़िल्लत से जूझना पड़ता है. इतना ही नहीं, यूरिया को ज़्यादा दाम पर बेचने के मामले भी सामने आते हैं. अगर किसान यूरिया का संतुलित इस्तेमाल करें, तो इससे जहां उनकी लागत में कमी आएगी, वहीं ज़मीन की उपजाऊ शक्ति भी लंबे वक़्त तक बनी रहेगी.


फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • अच्छा इंसान - अच्छा इंसान बनना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी. एक अच्छा इंसान ही दुनिया को रहने लायक़ बनाता है. अच्छे इंसानों की वजह से ही दुनिय...
  • कटा फटा दरूद मत पढ़ो - *डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी *रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो। इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे क...
  • Good person - It is most important to be a good person, for yourself and for others. A good person makes the world worth living in. The world exists because of good pe...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • संग्रहणीय पुस्तक है नवगीत कोश - *फ़िरदौस ख़ान*सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार डॉ. रामनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ द्वारा लिखित ‘नवगीत कोश’ पढ़ने का मौक़ा मिला। इसे पढ़कर लगा कि अगर इसे पढ़ा नहीं हो...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं