फ़िरदौस ख़ान
देश में आंदोलन न सिर्फ़ उग्र रूप धारण कर रहे हैं, बल्कि अमानवीयता की भी सारी हदें पार कर रहे हैं. हाल के हरियाणा के जाट आंदोलन को ही लें. आंदोलनकारियों ने जहां करोड़ों की सरकारी और निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया, वहीं जबरन मुनक नहर का पानी भी रोक दिया, जिससे दिल्ली के बाशिन्दे पानी को तरस गए. रेल और बस यातायात ठप होने से हज़ारों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. आंदोलन के दौरान हुई झड़पों में कई लोगों की मौत हो गई, जबकि कई महिलाएं और बच्चे बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए. हालात इतने बिगड़ गए कि सेना बुलानी पड़ी. कई शहरों में कर्फ़्यू लगा, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ. दरअसल, कोई भी आंदोलन एक न एक दिन ख़त्म हो ही जाता है. उस आंदोलन से हुए माली नुक़सान की भरपाई भी कुछ बरसों में हो जाती है, लेकिन जानी नुक़सान की भरपाई कभी नहीं हो पाती.
यह कहना ग़लत न होगा कि देश में आंदोलन के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाए जाने का ’फ़ैशन’ बन गया है. आंदोलनकारी इतने हिंसक हो जाते हैं कि उन्हें जो भी नज़र आता है, उसी को नुक़सान पहुंचाना शुरू कर देते हैं. रेलवे स्टेशनों पर उत्पात मचाते हैं, रेलवे लाइनों को उखाड़ देते हैं, पटरियों पर लेट जाते हैं, बस अड्डों पर जाकर बसों को आग के हवाले कर देते हैं, सरकारी इमारतों और सरकारी वाहनों को आग लगा देते हैं. उनका तांडव यहीं ख़त्म नहीं होता. वे निजी संपत्तियों को भी बहुत नुक़सान पहुंचाते हैं. वे दुकानों में तोड़फोड़ करते हैं और फिर उनमें आग लगा देते हैं. इससे करोड़ों की सरकारी और ग़ैर सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचता है. हाल के जाट आंदोलन की वजह से हरियाणा समेत राज्य के समीपवर्ती पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के उद्योग भी ठप हो गए. इन राज्यों के करोबारियों को भी ख़ासा नुक़सान उठाना पड़ा है. हरियाणा की सीमाएं दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लगती हैं. कई राष्ट्रीय राजमार्ग और रेल लाइनें हरियाणा से होकर गुज़रती हैं. इसलिए आंदोलन का असर इन राज्यों पर भी पड़ा है.
उद्योग मंडल (एसोचैम) के मुताबिक़ हरियाणा में जाट आंदोलन की वजह से उत्तर भारत के राज्यों को 34 हज़ार करोड़ रुपये के नुक़सान होने का अनुमान है. पर्यटन क्षेत्र, परिवहन एवं वित्तीय सेवाओं समेत सेवा गतिविधियों को 18 हज़ार करोड़ रुपये के नुक़सान का अनुमान है. इसके अलावा विनिर्माण, बिजली, निर्माण गतिविधियों एवं खाद् वस्तुओं को नुक़सान की वजह से औद्योगिक एवं कृषि कारोबार गतिविधयों को 12 हज़ार करोड रुपये का नुक़सान हुआ है. साथ ही सडक, रेस्तरां, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन समेत अन्य ढांचागत सुविधाओं को हुए नुक़सान की वजह से 4 हज़ार करोड रुपये का नुकसान हो सकता है.
आंदोलनकारियों ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं. उन्होंने हरियाणा की मुनक नहर पर क़ब्ज़ा कर लिया और पानी आपूर्ति रोक दी. ये नहर दिल्ली की जीवनरेखा कही जाती है, क्योंकि 102 किलोमीटर लंबी इस नहर से दिल्ली के 70 फ़ीसद इलाक़ों को पानी की आपूर्ति की जाती है. नहर बंद होने से दिल्ली में पानी के लिए हाहाकार मच गया. बोतल बंद पानी की कालाबाज़ारी शुरू हो गई और पानी दस गुना दाम पर बेचा जाने लगा. इससे पहले यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा ज़्यादा होने की वजह से दिल्लीवासियों को पानी की क़िल्लत का सामना करना पड़ रहा था.
इस आंदोलन से पर्यावरण और वन विभाग को भी नुक़सान हुआ है. हरियाणा वन विभाग के अधिकारियों के मुताबि़क़ आंदोलनकारियों ने हाईवे, राज्य राजमार्गों और संपर्क मार्गों का रास्ता रोकने के लिए सैकड़ों पेड़ काट डाले, जिनकी क़ीमत लाखों रुपये है. ड़्रेन की पटरियों और कच्चे रास्तों तक पर पेड़ काटकर डाले गए.
आंदोलनकारी ये भूल जाते हैं, जिसे वे सरकारी संपत्ति मानकर नुक़सान पहुंचा रहे हैं, वे जनता की संपत्ति है यानी उनकी अपनी संपत्ति है. ये संपत्ति जनता से लिए गए कई तरह के करों से ही बनाई जाती है. आंदोलनकारी जिस संपत्ति को नु़कसान पहुंचाते हैं, सरकार उस नु़कसान की भरपाई जनता से ही करती है. ऐसे में जनता पर करों का बोझ बढ़ जाता है. आंदोलनकारी एक बार भी ये नहीं सोचते कि वे जिस निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचा रहे हैं, उसे उसके मालिक ने कितनी मुश्किल से कमाया होगा. लोग बरसों अपने ख़ून-पसीने की कमाई से पाई-पाई जोड़कर अपनी दुकान खोलते हैं, कोई कारोबार शुरू करते हैं. अगर किसी वजह से उनका कारोबार बर्बाद हो जाए, तो वे ताउम्र उसकी भरपाई करने में गुज़ार देते हैं.
“अहिंसा परमो धर्मः" यानी अहिंसा परम धर्म है, में विश्वास करने वाले राष्ट्रपिता महत्मा गांधी ने अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेज़ों से देश को आज़ाद करा लिया था. दुनिया उनका लोहा मानती है, लेकिन महात्मा गांधी के अपने ही देश के लोग हिंसा के रास्ते पर चल पड़े हैं, जो बेहद चिंता का विषय है. हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकती. हिंसा नई समस्याओं को ही जन्म देती है. इस हिंसक आंदोलन के और भी कई बुरे नतीजे आने वाले दिनों में सामने आएंगे.