रजनीश     
उमस भरी गर्मी के मौसम में 72 साल की मतंगिनी हाजरा लोगों के एक बड़े हुजूम के साथ कचहरी और थाने को घेरने के लिए जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, ब्रितानी हुकूमत की जमीन दरकती जा रही थी. एक बुजुर्ग महिला के साहस ने तामलूक प्रशासन को इस कदर कंपा दिया कि उसे अपने बचाव में फायरिंग के अलावा और कोई उपाय नहीं सूझा. पुलिस की फायरिंग ने मतंगिनी हाजरा को शहीद जरूर कर दिया लेकिन इस बात की मुनादी भी कर दी कि ब्रितानी हुक्मरानों के पास अब 'भारत छोड़ना' ही अंतिम विकल्प था.

ब्रितानी हुकूमत के सामने सीना तान कर खड़े होने का यह कोई अकेला मामला नहीं था.  इससे ठीक एक महीना पहले पटना में छात्रों की एक बड़ी भीड़ सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए 'करो या मरो' की जिद के साथ गेट पर जमी थी. जिला मजिस्ट्रेट डब्लू जी आर्चर के आदेश पर की गयी पुलिसिया फायरिंग में सात छात्रों ने अपनी जान गवां दी. इन सातों में से चार नौवीं कक्षा के और दो दसवीं के छात्र थे. सिर्फ एक छात्र कॉलेज में इंटरमीडिएट की पढाई कर रहा था.

ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ यानी गुलामी के एहसास और उससे मुक्ति की लड़ाई लंबे समय तक चली लेकिन आंदोलनों में कई चरण ऐसे होते हैं तो पूरे आंदोलन के पर्याय के रूप में याद किए जाने लगते हैं. भारत छोड़ो आंदोलन उन्हीं चरणों में एक है, बल्कि यूँ कहा जा सकता है कि ब्रितानी सत्ता के खिलाफ संघर्ष का यह आखिरी बिगुल था जिसके बाद हुक्मरानों के सामने भारत छोड़ने और देश की सत्ता यहां के शासकों को सौपने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

'भारत छोडो' आंदोलन के तहत ब्रितानी साम्राज्यवाद के खिलाफ उमड़ी यह लहर समाज के सभी तबकों को एक ही तरह से सुलगा रही थी. अहमदाबाद में मिल-मजदूरों ने साढ़े तीन महीने तक हड़ताल रखी. बंबई में मजदूरों में एक सप्ताह से भी अधिक समय तक काम-काज ठप्प रखा. यही नहीं,  जमशेदपुर में तेरह दिनों तक हड़ताल रही. लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए तरह-तरह के तरीके आजमाए. थाना, कचहरी, डाकघर, रेलवे स्टेशन समेत सभी किस्म के सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया. सार्वजनिक भवनों पर तिरंगा फहराया गया. रेलवे की पटरियों और टेलीग्राफ- टेलीफोन के खंभों को उखाड़ डाला गया. इन संगठित संस्थानों के मजदूरों के अलावा देश भर में असंगठित क्षेत्र के श्रमिक भी अपने तरीके से हड़ताल कर रहे थे. हड़ताल का मतलब वे अपनी रोजमर्रा के लिए रोटी की चिंता किए बगैर गुलामी की जंजीरों को फेंककर आजादी का एहसास करना चाहते थे.

दरअसल, अन्य आंदोलनों की तरह इस आंदोलन के लिए भी पृष्ठभूमि पूरी तरह से तैयार थी. दूसरे विश्वयुद्ध की आग में दुनिया बुरी तरह झुलस रही थी. ब्रितानी हुक्मरानों ने भारत को भी इसमें लपेट लिया था. नतीजतन, जापानी हमलों का खतरा सिर पर मंडराने लगा था.  भारतीय राजनीतिक नेतृत्व को अपने इस निर्णय में शामिल करने के उद्देश्य से हुकूमत द्वारा भेजा गया 'क्रिप्स मिशन' गुलामी के बोझ से निकलने की कोई उम्मीद नहीं बंधा रहा था. महंगाई आसमान छू रही थी और रोजगार-धंधों की हालत बदतर होती जा रही थी. ऐसे में, माहौल को भांपते हुए गांधीजी ने 26 अप्रैल 1942 को 'हरिजन पत्रिका'  में 'भारत छोड़ो'  शीर्षक से एक लेख लिखा और स्वाधीनता संघर्ष के संबंध में कुछ प्रस्ताव पेश किये. यह आंदोलन के विस्तार का प्रभाव था.

अपनी कार्यसमिति की वर्धा बैठक में 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस पार्टी ने गांधीजी के  सुझाव को सैद्धान्तिक रूप से स्वीकार कर लिया. 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बंबई में संघर्ष के निर्णय पर मुहर लगाते हुए तत्काल प्रभाव से आंदोलन शुरू करने का एलान किया. इसी बैठक मंप बोलते हुए गांधीजी ने 'करो या मरो'  का नारा दिया. पहली बार उन्होंने अपनी अबतक की रणनीति 'संघर्ष - समझौता - फिर संघर्ष' से आगे बढ़ने का संकेत देते हुए 'स्वाधीनता' से कम कुछ भी नहीं का वादा किया. जाहिर था कि ब्रितानी हुकूमत पूरी ताकत के साथ प्रहार करती. 9 अगस्त 1942 की अहले सुबह सभी शीर्ष राजनीतिज्ञों को गिरफ्तार कर लिया गया.

राजनेताओं की गिरफ़्तारी ने जनमानस में घुमड़ रहे आक्रोश को उबाल दे दिया. पूरे देश में लोग स्वतः स्फूर्त रूप से सडकों पर निकल आये. जगह-जगह लोगों ने अपने बीच से स्थानीय नेतृत्व विकसित किया और संघर्ष को परवान चढ़ाया. इतिहासकार बिपिन चंद्रा के शब्दों में, शहरों-कस्बों से लेकर गांवों तक में लोगों का गुस्सा दिखाई दिया. सरकारी और पुलिस अधिकारियों को उनके घर- दफ्तरों से निकालकर पिटाई की गयी. सरकारी दफ्तरों, भवनों पर कब्ज़ा ज़माने से लेकर उन्हें आग के हवाले करने के नज़ारे सामने आये.

ऐसा नहीं है कि आंदोलन के दौरान सिर्फ तोड़-फोड़ की ही कार्रवाइयां हुईं. इसके उलट, देश के कई हिस्सों, खासकर उड़ीसा, महाराष्ट्र और बंगाल, में स्वायत्त सरकारें स्थापित करने जैसा विशुद्ध राजनीतिक काम भी हुआ. मसलन, महाराष्ट्र में गांव के स्तर पर 'प्रति सरकार'  (समानान्तर सरकार) की स्थापना की गयी. यह 'प्रति सरकार' तीन विभागों से लैस थी. जन-अदालतों पर आधारित एक न्याय विभाग था जिसके फैसले सर्वसम्मति से लिये जाते थे. विभिन्न ग्रामीण समितियों से बना एक विभाग था जिसका काम सकारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना था. इसके तहत सहकारी समितियों का गठन , पुस्तकालयों एवं चिकित्सा केन्द्रों की स्थापना जैसे काम किये गए. युवकों को जोड़कर एक तीसरा विभाग भी बनाया गया था जिसकी मुख्य जिम्मेदारी किसानों को जमींदारों के हाथों उत्पीड़न से बचाना था. तामलूक में भी, 17 दिसंबर 1942 को अजय मुख़र्जी ने एक 'राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की. उन्होंने एक 'भगिनी सेना'  के नाम से महिलाओं का एक विशेष संगठन बनाया.

एक बात और,  शीर्ष नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद आंदोलन को भूमिगत रूप से दिशा देने के लिए राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्द्धन, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जैसे समाजवादी विचार के नेताओं ने अपना सक्रिय योगदान दिया. फैलाव और तीव्रता के लिहाज से इस आंदोलन का सबसे ज़्यादा असर बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में दिखा. इन इलाकों में लोगों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरीकों से अपना योगदान दिया. आंदोलनकारियों को छुपने की जगह देने से लेकर संदेशवाहक का कार्य कर लोगों ने परोक्ष रूप से भी अपनी भागीदारी दिखाई. इन कामों में महिलाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

इस आंदोलन की खासियत रही कि यह सांप्रदायिक- धार्मिक दंगों से मुक्त रहा और जनता द्वारा की गयी हिंसक प्रतिक्रिया के प्रति कोई आलोचनात्मक स्वर नहीं सुनाई दिया. नतीजतन,  आज़ादी का लक्ष्य थोड़ा और करीब आता दिखा.

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सूफ़ियाना बसंत पंचमी... - *फ़िरदौस ख़ान* सूफ़ियों के लिए बंसत पंचमी का दिन बहुत ख़ास होता है... हमारे पीर की ख़ानकाह में बसंत पंचमी मनाई गई... बसंत का साफ़ा बांधे मुरीदों ने बसंत के गीत ...
  • ग़ुज़ारिश : ज़रूरतमंदों को गोश्त पहुंचाएं - ईद-उल-अज़हा का त्यौहार आ रहा है. जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं. तीन दिन तक एक ही घर में कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं. इन घरों म...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • देश सेवा... - नागरिक सुरक्षा विभाग में बतौर पोस्ट वार्डन काम करने का सौभाग्य मिला... वो भी क्या दिन थे... जय हिन्द बक़ौल कंवल डिबाइवी रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन त...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं