फ़िरदौस ख़ान
गेहूं की फ़सल पककर तैयार हो चुकी है. कई जगह कटाई का काम भी शुरू हो गया है. किसानों को फ़सल की कटाई से लेकर फ़सल को बाज़ार तक ले जाने में काफ़ी सावधानियां बरतने की ज़रूरत होती है. गेहूं की फ़सल की कटाई के दौरान जान और माल के नु़क़सान के अनेक मामले सामने आते रहते हैं. गेहूं की थ्रेशिंग करते वक़्त मशीन की चपेट में आने से हाथ कट जाते हैं. इसी तरह आगज़नी से खेतों में खड़ी या खलिहान में एकत्रित फ़सलें का जलकर राख हो जाती हैं. ऐसे में किसानों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. फ़सल की भरपाई, तो देर-सवेर पूरी हो भी सकती है, लेकिन अगर हाथ कट गया, तो उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती. गेहूं की फ़सल को बीज से लेकर भंडारण तक सही देखभाल की ज़रूरत होती है, ऐसा न करने पर जहां उत्पादन प्रभावित होता है, वहीं अनाज ख़राब हो जाता है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ किसानों को गेहूं की कटाई और कढ़ाई में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि जान और माल का नुक़सान न हो. फ़सल की कटाई से पहले यह देख लेना चाहिए कि फ़सल पक चुकी है या नहीं. फ़सल की जांच करना बहुत आसान है. गेहूं की बाली से दाने निकाल कर उसे चबाएं. अगर दाने सख़्त हों और आवाज़ के साथ टूटें, तो समझ लें कि फ़सल तैयार है, इसे काटा जा सकता है. अगर गेहूं के दाने नरम हों, तो फ़सल को कुछ और दिनों के लिए खेत में पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. गेहूं की बाली को तोड़कर भी फ़सल के पकने का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. अगर फ़सल पक चुकी होगी, तो उसकी बाली आसानी से टूट जाएगी, जबकि अधपकी फ़सल की बाली मुड़ जाएगी, लेकिन टूटेगी नहीं.
गेहूं की फ़सल पककर तैयार हो चुकी है. कई जगह कटाई का काम भी शुरू हो गया है. किसानों को फ़सल की कटाई से लेकर फ़सल को बाज़ार तक ले जाने में काफ़ी सावधानियां बरतने की ज़रूरत होती है. गेहूं की फ़सल की कटाई के दौरान जान और माल के नु़क़सान के अनेक मामले सामने आते रहते हैं. गेहूं की थ्रेशिंग करते वक़्त मशीन की चपेट में आने से हाथ कट जाते हैं. इसी तरह आगज़नी से खेतों में खड़ी या खलिहान में एकत्रित फ़सलें का जलकर राख हो जाती हैं. ऐसे में किसानों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. फ़सल की भरपाई, तो देर-सवेर पूरी हो भी सकती है, लेकिन अगर हाथ कट गया, तो उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती. गेहूं की फ़सल को बीज से लेकर भंडारण तक सही देखभाल की ज़रूरत होती है, ऐसा न करने पर जहां उत्पादन प्रभावित होता है, वहीं अनाज ख़राब हो जाता है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ किसानों को गेहूं की कटाई और कढ़ाई में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि जान और माल का नुक़सान न हो. फ़सल की कटाई से पहले यह देख लेना चाहिए कि फ़सल पक चुकी है या नहीं. फ़सल की जांच करना बहुत आसान है. गेहूं की बाली से दाने निकाल कर उसे चबाएं. अगर दाने सख़्त हों और आवाज़ के साथ टूटें, तो समझ लें कि फ़सल तैयार है, इसे काटा जा सकता है. अगर गेहूं के दाने नरम हों, तो फ़सल को कुछ और दिनों के लिए खेत में पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. गेहूं की बाली को तोड़कर भी फ़सल के पकने का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. अगर फ़सल पक चुकी होगी, तो उसकी बाली आसानी से टूट जाएगी, जबकि अधपकी फ़सल की बाली मुड़ जाएगी, लेकिन टूटेगी नहीं.
गेहूं की कटी हुई फ़सल को एक जगह खलिहान में इकट्ठा करने की बजाय अलग-अलग खेतों में सुखाना चाहिए. ऐसा करने से फ़सल जल्दी सूखेगी. अगर फ़सल को एक ही खलिहान में एकत्रित करके गेहूं निकालना हो, तो खलिहान को सुरक्षित जगह पर बनाना चाहिए. खलिहान के पास पानी और रेत का पूरा इंतज़ाम किया जाना चाहिए, ताकि आग लगने पर फ़ौरन उस पर क़ाबू पाया जा सके. फ़सल की कटाई और गेहूं निकालते वक़्त किसी भी तरह का धूम्रपान नहीं करना चाहिए. फ़सल को अच्छी तरह सुखाकर ही गेहूं निकालना चाहिए. कंबाइन से काटी गई फ़सल के अनाज को अच्छी तरह साफ़ करके सुखा लें. उसके बाद ही थ्रेशर मशीन से गेहूं निकालें. थ्रेशिंग दिन में ही करनी चाहिए. दिन ढलने पर थ्रेशिंग करने पर दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. थ्रेशर के पतनाले का दो तिहाई हिस्सा कवर करके थ्रेशिंग करनी चाहिए, ताकि हाथ को संभावित दुर्घटना से बचाया जा सके. थ्रेशिंग करते वक़्त ढीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए. महिलाओं को चाहिए कि वे थ्रेशिंग करते वक़्त साड़ी का पल्लू या चुनरी वग़ैरह को अच्छी तरह से लपेट लें. ऐसा करने से वे संभावित दुर्घटना से बची रहेंगी. गेहूं कटाई और बालियों से गेहूं निकालते वक़्त मुंह पर मलमल का कपड़ा बांध लेना चाहिए, ताकि हवा में मौजूद अवशेष सांस के साथ फेफड़ों के अंदर न जाएं. जिन लोगों को श्वास संबंधी कोई भी बीमारी है, उन्हें इन कामों से और उन जगहों से दूर ही रहना चाहिए, जहां गेहूं निकालने का काम हो रहा हो.
थ्रेशिंग समतल जगह पर ही करनी चाहिए, ताकि उसमें ज़्यादा कंपन न हो. हवा के रुख़ का ख़्याल रखना भी ज़रूरी है. अगर थ्रेशर से गहराई का काम करने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है, तो धुंआ निकलने वाली नली के ऊपर चिंगारी रोधक यंत्र लगा देना चाहिए, ताकि चिंगारी न निकले. खलिहान के आसपास भी किसी तरह की आग या चिंगारी का काम नहीं किया जाना चाहिए. ट्रैक्टर को फ़सल के ढेर से कुछ दूरी पर रखें, ताकि कोई चिंगारी निकले भी, तो वह फ़सल के ढेर तक न पहुंच पाए. अकसर एक छोटी सी चिंगारी पूरी फ़सल को जलाकर राख कर देती है.
अकसर यह देखा जाता है कि फ़सल कटाई के बाद खतों में बचे अवशेषों को आग लगाकर जला दिया जाता है. इससे मिट्टी में मौजूद मित्र कीट यानी फ़ायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं और मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं. इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के साथ कार्बन की मात्रा घट जाती है. सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी के अंदर पौधे को भोजन मुहैया कराते हैं. इनके नष्ट होने से पौधों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है. मिट्टी में कार्बन की मात्रा 6 से 8 फ़ीसद होनी चाहिए, जो अब घटकर महज़ दो फ़ीसद ही रह गई है.
अगर फ़सलों के अवशेषों को हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाए, तो इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में बढ़ोतरी होगी. इससे मिट्टी की जलग्रहण क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की फ़सल की कटाई के बाद खेत में बची फ़सल की पराती को जलाना नहीं चाहिए. डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई के बाद आठ किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ खेत में डालकर हल्की सिंचाई कर देना चाहिए. इससे अवशेष पूरी तरह सड़कर उर्वरक का काम करेंगे. इससे मिट्टी में जीवांश और कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी. इतना ही नहीं, फ़सलों के अवशेषों को जलाने से आसपास की फ़सलों को ख़तरा पैदा हो जाता है. इसकी चिंगारियां आसपास के खेतों में खड़ी फ़सल या खलिहानों में एकत्रित फ़सल को अपनी चपेट में ले लेती हैं, जिससे फ़सल जलकर राख हो जाती है. इसके अलावा धुएं से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है. खेत में फ़सलों के अवशेष जलाना क़ानूनन अपराध भी है, जिसके लिए दोषी को सज़ा देने का प्रावधान है.
फ़सल के अवशेष जला देने से पशुओं के समक्ष चारे का संकट खड़ा हो जाता है. किसान इन अवशेषों के भूसे का इस्तेमाल पशु चारे के तौर पर भी कर सकते हैं. गेहूं के अवशेष की बाज़ार में काफ़ी मांग हैं. खुम्बी उत्पादन और बिना मिट्टी की खेती में इनका इस्तेमाल होता है. इन्हें जलाने की बजाय किसान इन्हें बेचकर कुछ रक़म हासिल कर सकते हैं.
गेहूं को साफ़ करके और सुखाकर ही भंडार गृह में भंडारण करना चाहिए. अगर गेहूं में दस फ़ीसद से ज़्यादा नमी है, तो उसे धूप में सुखा लेना चाहिए. इसके बाद गेहूं को छाया में कुछ वक़्त के लिए छोड़ देना चाहिए, ताकि धूप की गरमाहट से गेहूं में जो भाप बनी है, वह उड़ जाए. ख़्याल रखें कि भंडार गृह साफ़-सुथरा, खुला और हवादार हो. इसमें सूरज की रौशनी आती हो और नमी बिल्कुल भी न हो, वरना अनाज ख़राब हो जाएगा. जिस जगह गेहूं का भंडारण करना हो, एक लीटर पानी में दस मिलीलीटर मैलाथियान मिलाकर उसकी दीवारों और फ़र्श को अच्छी तरह से साफ़ करना चाहिए. फिर इसे कुछ दिन के लिए छोड़ देना चाहिए.
गेहूं को सीधा फ़र्श पर नहीं रखा जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर ज़मीन की नमी से अनाज ख़राब हो सकता है. पहले फ़र्श पर ईंटे रखनी चाहिए और फिर उन पर लकड़ी के तख़्ते रखने चाहिए. तख़्तों पर नीम की सूखी पत्तियां बिछा देनी चाहिए, ताकि गेहूं को कीड़ा न लगे. अब इन तख़्तों पर गेहूं की बोरियां रखी जानी चाहिए. इससे गेहूं की बोरियां ज़मीन की नमी से बची रहेंगी. अनाज को अगर बोरियों में भरा जाना हो, तो बोरियों को कीटनाशी दवाओं से उपचारित कर लेना चाहिए. बोरियां भी साफ़-सुथरी और सूखी होनी चाहिए. अगर बोरियों में नमी हो, तो उसे पहले धूप में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर उनमें गेहूं भरें. बोरियों को सही तरीक़े से क़तार में रखना चाहिए, ताकि बोरियों को उठाने में आसानी रहे और उनकी गिनती में भी कोई दिक़्क़त न हो.
गेहूं बाज़ार में ले जाने से पहले गेहूं की अच्छी तरह से जांच कर लेनी चाहिए कि उनमें ज़्यादा नमी न हो. गेहूं में नमी की मात्रा 12 फ़ीसद से कम ही होनी चाहिए. नमी की मात्रा ज़्यादा होने पर ख़रीद एजेंसियां गेहूं नहीं ख़रीदतीं. किसानों को मंडी में भी अपनी फ़सल की देखभाल करनी चाहिए. अनाज को शेड के नीचे रखना चाहिए. अगर शेड न हो, तो प्लास्टिक शीट साथ लेकर जानी चाहिए, ताकि फ़सल को आंधी और बारिश से बचाया जा सके. अनाज को तुलवाकर मंडी में लेकर जाना चाहिए. मंडी में अनाज की तुलवाई अपने सामने करवानी चाहिए. अनाज की बिक्री की पक्की रसीद ज़रूर लेनी चाहिए. किसी भी तरह की कोई भी गड़बड़ी होने पर फ़ौरन संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए.
बहरहाल, किसान फ़सल की बिजाई से लेकर बाज़ार तक सावधानी बरत कर न सिर्फ़ ज़्यादा उत्पादन पा सकते हैं, बल्कि फ़सल की अच्छी क़ीमत भी हासिल कर सकते हैं.