उमर कैरानवी
पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते दानवीर कर्ण की नगरी कैराना में 17वीं सदी के मुगलकालीन नवाब तालाब न केवल खंडहर बनता जा रहा है, बल्कि पूरे शहर का कूड़ेदान बनकर रह गया है. इतना ही नहीं, यहां अवैध कब्जों की भी भरमार है. हैरानी की बात यह भी है कि जहांगीर के समय की ऐतिहासिक महत्व की इमारतों पर जरा भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है. महाबलि कर्ण और जहांगीर बादशाह से अपने रिश्तों पर कैराना ही नहीं पूरे देश को गर्व होना चाहिए था, लेकिन आज यह बातें ही इसे रुसवा कर रही हैं.
आज कोई उस बाग और तालाब की दुर्दशा को आसानी से आकर नहीं देख सकता, क्योंकि इसका जो आसान रास्ता था हाईवे से तालाब तक जाता था, वह जहांगीर के समय के बाद अब पक्का हो रहा था, लेकिन उस रास्ते के दोनों तरफ एक कब्रिस्तान आ रहा था. कुछ लोगों ने अपनी जमीन बताकर यहां दीवारें खड़ी कर लीं. अब कितनी ही कब्रें भी दिखाई दे रही हैं. जब तक इस बारे में कोई कार्यवाही होगी, कब्रों की नकली और असली संख्या बढ़ने से समस्या का समाधान निकलना मुश्किल है.
कैराना जो कभी कर्ण की राजधानी थी. मुजफ़्फ़रनगर से करीब 50 कि. मी. पश्चिम में हरियाणा सीमा से सटा यमुना नदी के पास करीब 90 हज़ार की आबादी वाला यह कस्बा कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से विख्यात था जो बाद में बिगड़कर किराना नाम से जाना गया और फिर किराना से कैराना में परिवर्तित हो गया. कैराना में महाबली कर्ण, नकुड़ में नकुल, तथा थानाभवन में भीम आदि के शिविर थे. इसी प्रकार क अक्षर से नाम शुरू होने वाले कस्बों में करनाल, कैराना, कुरुक्षेत्र, कांधला आदि में कुरुवंश के युवराज दुर्योधन ने अंगदेश बनाकर कर्ण को सौंपा था.
जहांगीर बादशाह ने इस तालाब और बाग़ को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहा था- बाग में ऐसे फल लगे पेड़ भी हैं जो कि गर्मी में या सर्दी में मिलते हैं. मेवादार दरख्त जो कि ईरान और ईराक में होते हैं यहां तक कि पिस्ता के पौधे भी सरसब्जी की शक्ल में और खुश कद और खुश बदन सर्व, सनूबर के पेड़ इस किस्म के देखे कि अब तक कहीं भी ऐसे खूबी और लताफत वाले सरू (पेड़) नहीं देखे गए. अफ़सोस की बात तो यह भी है कि मुज़फ्फरनगर जिले की सरकारी वेबसाइट के मुगलकाल की ऐतिहासिक इमारतों की सूची में इसका ज़िक्र तक नहीं है. गौरतलब है कि इस सेक्शन में केवल जानसठ की इमारतों के चित्र दिए गए हैं. जिस इमारत का ज़िक्र स्वयं मुगल बादशाह जहांगीर ने किया, उसे भी इस सेक्शन में स्थान नहीं दिया गया. हालांकि सरकार द्वारा बार-बार इस ऐतिहासिक तालाब के सौन्दर्यीकरण के लिए लाखों रुपयों की घोषणा की गई. यह अलग बात है कि अभी तक इन घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है.