एल.एस.हरदेनिया
यह एक आम धारणा है कि मुसलमान, परिवार नियोजन नहीं अपनाते और इसके विरोधी हैं। मुसलमान यह मानते हैं कि परिवार नियोजन, इस्लाम के विरुद्ध है। कुरान इसकी इजाजत नहीं देती।

मुसलमानों के इस रवैये को गलत बताते हुए तथा कुरान की आयतों का उल्लेख करते हुए मुसलमानों के बीच परिवार नियोजन का धुआंधार प्रचार करने में लगे हैं असम के एक उच्च शिक्षा प्राप्त मुस्लिम डॉक्टर।

अभी हाल में मेरी असम यात्रा के दौरान इनसे मुलाकात हुई। इनका नाम है डॉ. इलियास अली। आप गौहाटी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। डॉ. अली को असम सरकार ने परिवार नियोजन के कार्य की विशेष जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे तो वे समाज के सभी वर्गों में अपना संदेश लेकर जाते हैं परंतु उनका विशेष प्रयास है कि वे अपने मुस्लिम भाईयों तक अपना संदेश पहुंचाएं और उन्हें जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रम से जोड़ें।

इन पंक्तियों के लेखक ने उनसे लंबी बातचीत की। डॉ अली के अनुसार, जनसंख्या में तीव्र गति से हो रही वृध्दि हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा एवं चुनौती है। यह खतरा सैंकड़ों हाईड्रोजन बमों से भी ज्यादा खतरनाक है। डॉ. अली के अनुसार बीसवीं सदी के आरंभ में भारत की जनसंख्या 25 करोड़ थी। सन् 1947 यह 37 करोड़ हो गई। सन् 1965 में भारत की आबादी 50 करोड़ हो गई और इसके अगले 36 वर्षों में अर्थात सन् 2001 में यह 102 करोड़ हो गई। गत 10 अप्रैल 2009 को हमारी अनुमानित जनसंख्या 114 करोड़ थी। जनसंख्या के मामले में विश्व में चीन के बाद भारत का स्थान है किन्तु विशेषज्ञों के अनुसार सन् 2025 तक भारत, चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। हमारे देश में अन्य कारणों के अतिरिक्त जनसंख्या नियंत्रण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हमारे देश में गरीबी के रेखा के नीचे रहने वालों का प्रतिशत चीन से कहीं ज्यादा है। इसके साथ ही, हमारा क्षेत्रफल चीन के क्षेत्रफल का केवल एक तिहाई है। हमारे देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर है। अन्य देशों, विशेषकर चीन की तुलना में हमारे देश में कृषि योग्य भूमि दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। यदि हमनें आबादी पर नियंत्रण नहीं पाया तो हमारी आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। डॉ अली का कहना है कि जनसंख्या पर नियंत्रण उसी समय पाया जा सकता है जब समाज के सभी वर्गों की इसमें भागीदारी हो।

इस संदर्भ में मुसलमानों के बीच जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता का प्रचार-प्रसार काफी महत्वपूर्ण है। आमतौर पर यह आरोप लगाया जाता है कि मुसलमान, जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सहयोग नहीं देते हैं। परंतु, डॉ अली दावे के साथ कहते हैं कि यह आरोप सही नहीं है। उनका अनुभव इसके ठीक विपरीत है। आवश्यकता उन्हें सही ढंग से समझाने की है। दकियानूसी धर्मगुरू उन्हें गुमराह करते हैं। उनसे कहते हैं कि परिवार नियोजन के साधन अपनाना इस्लाम के विरूध्द है। कुरान में कहा गया है कि आबादी पर नियंत्रण पाना मुसलमानों के लिए न तो आवश्यक है और न ही उचित। डॉ अली कहते हैं कि यह प्रचार पूरी तरह से भ्रामक एवं असत्य है। वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।

         सच पूछा जाए तो इस्लाम एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें जनसंख्या नियंत्रण के तौर तरीकों का उल्लेख है। इसको अज़ाल कहा जाता है। इसे आबादी नियंत्रित करने का सर्वाधिक प्रभावशाली साधन बताया गया है।

डॉ अली के अनुसार ईरान एक ऐसा मुस्लिम देश है जहां जनसंख्या नियंत्रण पर काफी जोर दिया जा रहा है। जिस प्रक्रिया से ईरान में जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रम पर अमल हो रहा उस प्रक्रिया का प्रचार असम के मुसलमानों में भी किया जा रहा है। सघन प्रयास के कारण जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रम में मुसलमानों की दिलचस्पी बढ़ी है। ईरान में जनसंख्या नियंत्रण की उपयोगिता का प्रचार-प्रसार करने का उत्तरदायित्व धार्मिक नेताओं को सौंपा गया है। वे कुरान की सही व्याख्या करते हुए ईरानी दंपत्तियों को परिवार नियोजन के कार्यक्रम की ओर आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं। लगभग उसी तरीके से डॉ अली भी प्रचार कर रहे हैं। डॉ अली स्वयं अत्यंत धार्मिक हैं। वे सच्चे मुसलमान हैं। अत: उनके द्वारा दिए गए संदेश को आम मुसलमान स्वीकार कर रहा है।

डॉ अली असम के गांवों में भी प्रचार कार्य के लिए जाते हैं। गांवों में जाने के लिए वे यातायात के किसी भी साधन का प्रयोग करने में हिचकिचाते नहीं हैं। वे कभी मोटरसाईकिल से और कभी आवश्यक होने पर बैलगाड़ी तक का उपयोग करते हैं। वे लोगों को बताते हैं कि आबादी में अंधाधुंध बढ़ोत्तरी, देश के विकास में बाधक तो है ही यह परिवार की खुशहाली की राह में भी एक बड़ा रोड़ा है। यदि परिवार छोटा होता है तो परिवार के सभी सदस्यों का पालन-पोषण ठीक से किया जा सकता है, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि का बेहतर ढंग से ख्याल रखा जा सकता है। इस संदर्भ में वे केरल का उदाहरण देते हैं जहां सभी धर्मों के अनुयायियों के साक्षरता के उच्च स्तर ने वहां के समाज पर जादुई प्रभाव डाला है। इसके कारण सभी धर्मों के मानने वाले परिवार नियोजन को अपनाते हैं, परिणामस्वरूप उनका जीवन स्तर बेहतर है। डॉ अली के सघन प्रचार के नतीजे सामने आने लगे हैं। यह बात असम का मीडिया भी स्वीकार कर रहा है। मैंने असम के अनेक अखबार देखे जिनमें बड़ी संख्या में महिलाओं के डॉ. अली द्वारा आयोजित सेमीनार व अन्य कार्यकलापों में भाग लेने के छायाचित्र प्रकाशित हुए थे। डॉ की तर्कक्षमता और धार्मिक ज्ञान का सकारात्मक प्रभाव महिलाओं पर पुरूषों दोनों पर समान रूप पड़ रहा है। नतीजे में मुस्लिम पुरूष और महिलाएं अधिकाधिक संख्या में परिवार नियोजन अपना रहे हैं।

डॉ. अली के मिशन का न सिर्फ अखबारों में उल्लेख होता है वरन् उनके कार्य की प्रशंसा भी होती है। जैसे एक अंग्रेजी दैनिक ने अपने दिनांक 29 मई 2010 के अंक में डॉ अली के कार्य को ''मानवीय मिशन'' बताया। इसी तरह एक अन्य अंग्रेजी दैनिक ने डॉ अली के प्रचार के तरीके का विस्तृत विवरण प्रकाशित किया है। समाचार पत्र ने लिखा है कि डॉ अली ऐसे दूरदराज के गांवों में तक अपना प्रचार कार्य करने जाते हैं जहां इसके पहले कभी कोई डॉक्टर गया ही नहीं। इस अखबार ने डॉ अली के उन तर्कों को भी प्रकाशित किया है जो वे यह सिध्द करने के लिए देते हैं कि इस्लाम में परिवार नियोजन को गलत नहीं बताया गया है। गौहाटी से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ''टेलीग्राफ'', हिन्दी समाचार पत्र ''खबर'' व दैनिक ''पूर्वांचल'' ने डॉ. अली की इस चेतावनी को कि ''बम विस्फोट से खतरनाक है जनसंख्या विस्फोट'' विशेष रूप से प्रकाशित किया है। कुल मिलाकर, डॉ. अली की लगन, प्रतिबध्दता और तर्कशैली अपना रंग दिखा रही है।

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