अशोक हांडु
जब वाणिज्य मंत्रालय ने पिछले वर्ष अगस्त में के लिए देश की विदेश व्यापार नीति
दस्तावेज जारी किए तो इनमें वर्ष 2010-11 में 200 डॉलर बिलियन के निर्यात लक्ष्य पर
पहुँचना शामिल था। इस वर्ष अगस्त में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में निर्यात
में 22.5 प्रतिशत की वृध्दि हुई। इस वर्ष जुलाई में पिछले वर्ष की तुलना में वृध्दि
सिर्फ 13.8 प्रतिशत थी।
मूल्य के संदर्भो में, अगस्त में निर्यात 16.64
बिलियन डॉलर था। यह आंकड़े अगस्त, 2008 में दर्ज किए गये 17.8 बिलियन डॉलर से कम हो
सकते हैं। लेकिन इसके पीछे एक मुख्य कारण वैश्वितक आर्थिक मंदी रही जो इस अवधि के
शीघ्र बाद हुई थी।
अब इस वर्ष के अप्रैल-अगस्त के आंकड़ों को देखते हैं।
वर्ष दर वर्ष आधार पर निर्यात 28.6 प्रतिशत की वृध्दि के साथ 85.27 बिलियन डॉलर पर
पहुँचा। पहली तिमाही में यह आंकड़े 32 प्रतिशत तक के मजबूत स्तर पर थे। यदि यही
विकास दर जारी रहती है तो यह विश्वा स किया जा सकता है कि 200 बिलियन डॉलर का
लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा। भारतीय निर्यात संघ संगठन को विश्वा स है कि हम इस
लक्ष्य को पार करके 210 बिलियन डॉलर का आंकड़ा छू सकते हैं। यह बेहद शानदार होगा और
इससे एक स्पष्ट संदेश दिया जा सकेगा कि मंदी के दौर में भी हम सफलतापूर्वक आगे बढ़
रहे हैं।
यह वृध्दि विदेश व्यापार नीति में शामिल निर्यात बाजार में
आवश्याक विविधता के कारण हुई। अफ्रीका और लैटिन अमरीका, एशियाई और कोरिया जैसे
देशों में हमारे निर्यात में अमरीका, यूरोप और अन्य देशों के पारंपरिक बाजारों की
तुलना में वृध्दि हुई है। वैश्विरक आर्थिक मंदी ने अमरीका, यूरोप और अन्य देषों के
व्यापारों को अधिक प्रभावित किया और इसी कारण से इन पारंपरिक बाजारों से माल और
सेवा की मांग में कमी हुई।
लेकिन इससे पूर्व कि हम उत्सव मनाना प्रारंभ
करें, हमें अपने आयात पक्ष पर भी एक दृष्टि डाल लेनी चाहिए। इस संदर्भ में स्थिति
यह है कि निर्यात की तुलना में आयात में तेजी से वृध्दि हो रही है। इस वर्ष अगस्त
में, आयात पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 13 बिलियन डॉलर के घाटे को दूर करते
हुए 32.2 प्रतिशत की वृध्दि के साथ 29.7 बिलियन डॉलर रहा। इस वर्ष अप्रैल-अगस्त के
बीच आयात 33 प्रतिशत की वृध्दि के साथ 141.89 बिलियन डॉलर रहा।
अप्रैल और
अगस्त के बीच व्यापार घाटे का अनुमान 56.62 बिलियन डॉलर था यदि यही स्थिति जारी रही
तो इस वर्ष के अंत तक हम 135 बिलियन डॉलर के व्यापार अंतर तक पहुँच सकते हैं। यह
वर्ष 2008 में दर्ज किए गये आंकड़ो से 17 बिलियन डॉलर अधिक होगा।
आयातों के
मामले में अब तक घरेलू जरूरतों को शीघ्र पूरा करने और बढ़ती मुद्रास्फीति की दृष्टि
से माल की आपूर्ति को बढ़ाने की जरूरत थी और इसको अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन
ज्यादा प्रभाव पेट्रोल उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में हुई वृध्दि से पड़ा
जिसे फिर से अनदेखा नहीं किया जा सकता।
मुख्य तथ्यb यह है कि निर्यात में
वृध्दि हो रही है और वर्तमान वित्तीय वर्ष में इस वृद्धि से इस बात के स्प ष्टय
संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यषवस्थाल वैश्विाक मंदी से उबर रही है। गौरतलब है कि
वैश्विेक आर्थिक मंदी के संकट के दौरान दुनियाभर में 50 मिलियन रोजगार समाप्त हुए
और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 12 प्रतिशत की कमी आई।
इस वर्ष अच्छे
प्रदर्शन वाले क्षेत्रों में अयस्क लौह, अभियांत्रिकी, कपास और वस्त्र आदि रहे हैं।
लेकिन रेडीमेट गारमेन्ट, हतकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र पीछे रहे हैं। हाल ही में
सरकार द्वारा निर्यातकों के लिए 100 करोड़ रूपए के नए प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा ने
अनिश्चिात वैश्विरक बाजार से जूझने के लिए बेहतर कार्य किया है। वाणिज्य मंत्री
श्री आनंद शर्मा ने वार्षिक व्यापार नीति की समीक्षा करते हुए कहा, ''हम अभी
समस्याओं से बाहर नहीं निकले हैं।'' उन्होंने कहा,''निर्यातकों के चारों ओर फैली
अनिश्चिातता के संदर्भ में निरंतर विचार-विमर्श करना आवश्यंक है।'' अधिकांश
प्रोत्साहन श्रम निर्यात क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर दिए गये हैं। इनमें जूट और
रेडीमेट गारमेन्ट, चमड़ा, कालीन, हतकरघा आदि शामिल हैं।
हां, यह सत्य है कि
निर्यात क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 20 प्रतिशत से भी कम का प्रतिनिधित्व
करता है लेकिन इसकी पहुंच बहुत व्यापक है लेकिन यह देश के अंदर लाखों लोगों को
रोजगार प्रदान करता है जबकि बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधि तक अभी यह नहीं पहुंच
पाया है। यही बात इस क्षेत्र के प्रदर्शन को महत्वपूर्ण बनाती है।
सरकार
अपनी नीतियों को सही दिशा देने के लिए निर्यात क्षेत्र के प्रदर्शनों की आवधिक
समीक्षा करती रहती है। अगली समीक्षा इस वर्ष के अंत में की जानी है।
चूंकि
एक देश की सकल घरेलु उत्पाद वृध्दि का अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर सीधा
प्रभाव पड़ता है अत: भारत अपनी आर्थिक विकास दर को बनाए रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ
प्रयास कर रहा है और इस वर्ष आर्थिक विकास दर के 8.5 से 9 प्रतिशत के बीच रहने की
संभावना है। आईएमएफ में यह पहले से ही 9.4 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। इसने वर्तमान
वर्ष में वैश्विकक आर्थिक वृध्दि दर को 4.6 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। आईएमएफ ने
इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में मात्र 2;5 प्रतिशत वृध्दि का लक्ष्य रखा था।
हांलाकि इस अधिकांश वृध्दि में मुख्य रूप से चीन और भारत का ही सहयोग है, लेकिन
निर्यात क्षेत्र को इससे ज्यादा लाभ नहीं मिला। इसलिए निर्यात क्षेत्र को बढ़ाने के
लिए प्रयासों को दुगना करने की आवश्यरकता है खासतौर पर उन क्षेत्रों पर जिन्हें
गतिविधि के अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। प्रोत्साहनों में सस्ते
ऋण को शामिल किया जाने की जरूरत है और यहीं पर देश की मौद्रिक एवं वित्तीय नीति को
अपनी भूमिका निभानी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में चिंता का एक प्रमुख कारण
रही मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक मंदी के दौरान अपनी प्रमुख
ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी करने के अलावा आसान धन आपूर्ति नीति पर भी रोक लगाई। ब्याज
दरों में वर्तमान वृध्दि इसी प्रक्रिया का एक अंग है। लेकिन इस उपाय के साथ यह
सुनिश्चिनत किया जाना भी जरूरी है कि अधिक जरूरत के क्षेत्रों को आसान ऋणों की
उपलब्धता बनी रहे। निर्यात क्षेत्र इस सूची में प्रमुखता पर है।