कल्पना पालखीवाला 
दुनियाभर में वनों को महत् देने के लि हर साल 21 मार्च को विश् वानिकी दिवस मनाया जाता है। वसंत के इस दि दक्षिणी गोलार्ध में रात और दि बराबर होते हैं। यह दि वनों और वानिकी के महत् और समाज में उनके योगदान के तौर पर मनाया जाता है। रियो में भू-सम्मेलन में वन प्रबंध को मान्यता दी गई थी तथा जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के तापमान में वृद्धिसे निपटने के लि वन क्षेत्र को वर्ष 2007 में 25 प्रतिशत तथा 2012 तक 33 प्रतिशत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

संयुक् राष्ट्र महासभा ने 2011 को अंतर्राष्ट्रीय विश् वन वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है। इसलि दुनियाभर की सरकारों, स्वयं सेवी संगठनों, निजी क्षेत्र और सार्वजनि क्षेत्र को संयुक् राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने को कहा गया है। कुल मिलाकर अंतर्राष्ट्रीय विश् वन वर्ष का उद्देश् वन संरक्षण के प्रतिजागरूकता बढ़ाना तथा वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लि सभी तरह के वनों के टिकाऊ प्रबंध, संरक्षण और टिकाऊ विकास को सुदृढ़ बनाना है। वर्ष के दौरान जल ग्रहण क्षेत्र संरक्षण, पौधों को पर्यावास उपलब् कराने, पुनर्सृजन के लि क्षेत्रों, शिक्षा और वैज्ञानि अध्ययन तथा लकड़ी एवं शहद सहि अनेक उत्पादों के स्रोत जैसे समुदाय को होने वाले लाभ पर बल दिया जाएगा। विश् वानिकी दिवस का लक्ष् लोगों को यह अवसर उपलब् कराना भी है किवनों का प्रबंध कैसे किया जाए तथा अनेक उद्देश्यों के लि टिकाऊ रूप से उनका कैसे सदुपयोग किया जाए।

      जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद ने हरि भारत के लि भारत के राष्ट्रीय मिशन को फरवरी 2011 में स्वीकृतिदे दी यह मिशन जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आठ मिशनों में से एक है। इस मिशन का उद्देश् वन क्षेत्र की गुणवत्ता तथा मात्रा को बढ़ाकर 10 मिलियन हेक्टेयर करना तथा कार्बन डाई ऑक्साइड के वार्षि उत्सर्जन को 2020 तक 50 से 60 मिलियन टन तक लाना है।

     इसके तहत अपने वन क्षेत्र की गुणवत्ता को बढ़ाने के लि वन क्षेत्र की मात्रा बढ़ाने  पर ध्यान देने के पारंपरि नजरि में बुनियादी बदलाव लाने का प्रस्ताव है। वन क्षेत्र या वनों का दायरा बढ़ाने एवं अपने मध्यम दर्जे का वन घनत् बढ़ाने तथा विकृत वन क्षेत्र को दुरूस् करने पर मुख् रूप से ध्यान दिया जा रहा है।

     इस मिशन के तहत यह प्रस्ताव है किकार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष् हासि करने के लि केवल वृक्षारोपण के बजाय वानिकी को समग्र दृष्टिकोण के रूप में लिया जाए। जैव विविधता को संरक्षि रखने और बढ़ाने तथा चारागाह/झाड़ियों, मैनग्रोव वनों तथा दलदली भूमिसहि अन् पारिस्थितिकी एवं पर्यावासों को पहले जैसी स्थितिमें लाने पर भी स्पष् रूप से ध्यान देने का प्रस्ताव है।

      मिशन के कार्यान्वयन में स्थानीय प्रशासन संस्थाओं को शामि करने के लि विकेंद्रीकृत एवं सूझ-बूझ भरा प्रयास करने पर मुख् रूप से ध्यान दिया जाएगा। हम यह नहीं भूल सकते किवन हमारे देश में 20 करोड़ से भी अधि लोगों की आजीविका का मुख् स्रोत हैं। इसलि हमारे वनों के संरक्षण तथा उनकी गुणवत्ता में सुधार का कोई भी प्रयास स्थानीय समुदायों की सक्रि भागीदारी के बिना कामयाब नहीं हो सकता।

इस मिशन के डिज़ाइन में आम नागरिकों एवं नागरि संस्थाओं को भी जोड़ने की योजना है। इस मिशन के तीन प्रमुख उद्देश् हैं:-
भारत में वनरोपण/पर्यावरण अनुकूल ढंग से वनों को पहले की स्थितिमें लाने के लि क्षेत्र को बढ़ाकर अगले दस वर्षों में दुगुना करना और कुल वनरोपण/ पर्यावरण अनुकूल ढंग से वनों को पहले की स्थितिमें लाने के लि क्षेत्र को 2 करोड़ हेक्टेयर करना (अर्थात एक करोड़ हेक्टेयर वन/ गैर-वन क्षेत्र को अतिरिक् माना जाएगा, जबकिएक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को विभिन् कार्यक्रमों के तहत वन विभाग और अन् एजेंसियों का कार्य होगा)
भारत के वार्षि कुल ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को वर्ष 2020 तक 6.35 प्रतिशत करने के लि भारत के वनों द्वारा ग्रीन हाउस गैस को दूर करने की प्रक्रिया में वृद्धिकरना। इसके लि एक करोड़ हेक्टेयर वनों/पारिस्थितिकी के भूमिके ऊपर और नीचे जैव ईंधन को बढ़ाने की ज़रूरत होगी, जिसके फलस्वरूप हर साल एफ 43 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के कार्बन पर रोक लगाने की प्रक्रिया में वृद्धिहोगी।
मिशन के तहत शामि वनों/पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को बढ़ाना जलवायु में हो रहे बदलाव को आत्मसात करने के लि स्थानीय समुदायों की मदद करने के लि समावेश, भूजल संभरण, जैव विविधता, सेवाओं (ईंधन लकड़ी, चारा, एनटीएफपी इत्यादि‍) का प्रावधान बढ़ाना।

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