फ़िरदौस ख़ान  
हाल में ‘हिन्दू’ अख़बार में राज्यसभा सदस्य और कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी का एक लेख शाया हुआ है. इस लेख में उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद पैदा हुए सियासी हालात का ज़िक्र किया है. सियासी गलियारे में सोनिया गांधी के इस लेख को बहुत ही गंभीरता से लिया जा रहा है. कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में उतना करिश्मा नहीं कर पाई है, जिसकी उससे उम्मीद की जा रही थी. लेकिन 99 सीट जीतकर वह विपक्ष नेता का पद ज़रूर हासिल कर पाई है. इससे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों में उत्साह का माहौल है. कार्यकर्ता जोश से भरे हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो उन्हें कामयाबी ज़रूर मिलेगी.      
सोनिया गांधी ने लिखा है- “अभी 4 जून 2024 को आए चुनावी नतीजों में हमारे देश के मतदाताओं ने स्पष्ट और मज़बूती के साथ अपना फ़ैसला सुनाया है. यह एक ऐसे प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार का संकेत है, जिसने चुनाव प्रचार के दौरान ख़ुद को दैवीय दर्जा दे दिया था. इस फ़ैसले ने न केवल ऐसे दावों-दिखावों को नकार दिया है, बल्कि विभाजनकारी, कलह पूर्ण और नफ़रत की राजनीति को स्पष्ट रूप से ख़ारिज करते हुए नरेंद्र मोदी के शासन की प्रकृति और शैली दोनों का परित्याग किया है. फिर भी प्रधानमंत्री के हाव-भाव वैसे ही नज़र आते हैं जैसे कि कुछ नहीं बदला है. वे आम सहमति के महत्व का उपदेश तो देते हैं, लेकिन टकराव को ही अहमियत देते हैं. चुनावी नतीजों या जनादेश से उन्हें कोई सबक़ मिला है, इसका कोई संकेत नहीं मिलता कि देश के करोड़ों मतदाताओं ने उन्हें कोई संदेश दिया है.”

18वीं लोकसभा के पहले कुछ दिन दुखद रूप से निराशाजनक रहे. ऐसी कोई भी उम्मीद या अपेक्षा कि हमें कोई बदला हुआ रवैया देखने को मिलेगा, वह धराशायी हो गई. आपसी सम्मान और सामंजस्य की नई भावना, या सौहार्द की बात तो दूर, इस बाबत कोई कदम उठाने की उम्मीद भी ग़लत ही साबित हुई.
मैं पाठकों को याद दिलाना चाहती हूं कि जब स्पीकर पद पर प्रधानमंत्री के दूतों ने इंडिया जनबंधन के लोगों से सहमति की बात की थी तो गठबंधन के दलों ने प्रधानमंत्री को क्या कहा था. साफ़ और सीधे शब्दों में कहा गया था कि “हम सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन परम्परा और प्रथा के मुताबिक़ डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाना उचित होगा.” यह एक तार्किक आग्रह था जिसे उस शासन ने ठुकरा दिया जिसने 17वीं लोकसभा में लोकसभा उपाध्यक्ष के संवैधानिक पद को ख़ाली ही छोड़ दिया था.

इसके अलावा प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी द्वारा आश्चर्यजनक रूप से फिर से उछाला गया. यहां तक कि लोकसभा अध्यक्ष ने भी इसका ज़िक्र किया, जिनकी स्थिति निष्पक्षता के अलावा किसी भी सार्वजनिक राजनीतिक के रुख़ या झुकाव से अलग होनी चाहिए. यह प्रयास संविधान, उसके मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों, और उसके द्वारा बनाई गई और सशक्त की गई संस्थाओं पर हमले से ध्यान हटाने का तरीक़ा था जो कि संसद के सुचारू कामकाज के लिए क़तई अच्छा नहीं है.

दरअसल यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मार्च 1977 में देश के लोगों ने इमरजेंसी पर स्पष्ट जनादेश दिया था जिसे निस्संकोच और सदाशयता से स्वीकार किया गया था. यह भी तथ्य और इतिहास में दर्ज है कि तीन साल बाद ही उस पार्टी की सत्ता में वापसी हुई थी, जिसे देश ने ख़ारिज कर दिया था, वह भी ऐसे बहुमत के साथ जिसे श्री मोदी और उनकी पार्टी कभी हासिल नहीं कर पाए.

हमें आगे की ओर देखना होगा. संसद की सुरक्षा में हुई निंदनीय चूक पर चर्चा की वैध मांग कर रहे 146 सांसदों का बेहद अटपटा और अभूतपूर्व निलंबन स्पष्ट रूप से यह सुनिश्चित करने का एक तरीक़ा था कि बिना किसी चर्चा के तीन ऐसे आपराधिक न्याय क़ानून पारित किए जा सकें जिनके दूरगामी परिणाम होंगे. कई क़ानूनी विशेषज्ञों और अन्य लोगों ने इन क़ानूनों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है. क्या इन क़ानूनों को तब तक लागू होने से नहीं टाला जा सकता है जब तक कि इनकी स्थापित संसदीय प्रक्रियाओं द्वारा जांच नहीं हो जाती, ख़ासतौर से जबकि 2024 के चुनावी नतीजे स्पष्ट संदेश देते हैं. इसी तरह वन संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण क़ानूनों को भी बीते साल उस दौरान ज़बरदस्ती पास करा दिया गया जब संसद में हंगामा हो रहा था. ग्रेटर निकोबार प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया गया जिससे कि पर्यावरण, पारिस्थिकीय और मानविकी आपदा की आशंका है. क्या इसकी भी समीक्षा नहीं होनी चाहिए जिससे कि प्रधानमंत्री जो सहमति का दावा करते हैं, वह अर्थपूर्ण साबित हो सकता और क़ानूनों को संसद में पूरी चर्चा के बाद ही पास कराया जाता?

लाखों युवाओं के जीवन पर क़हर ढाने वाले नीट घोटाले पर शिक्षा मंत्री की त्वरित और पहली प्रतिक्रिया तो यही थी कि जो कुछ हुआ है इसका खंडन करते हुए उसकी गंभीरता को ही नकार दिया जाए. प्रधानमंत्री जो ख़ुद ‘परीक्षा पे चर्चा’ करते रहे हैं, पेपर लीक के पूरे मामले पर संदिग्ध रूप से ख़ामोश हैं जिसने देश के तमाम परिवारों को परेशान करके रख दिया है. एक कथित ‘उच्चाधिकार वाली समिति’ तो बना दी गई है, लेकिन असली मुद्दा यह है कि एनसीईआरटी, यूजीसी और विश्वविद्यालयों जैसी शैक्षणिक संस्थाओं की व्यवसायिकता को बीते दस वर्षों में काफ़ी नुक़सान पहुंचाया गया है.

इस बीच देश के अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं में फिर से वृद्धि हो गई है. भाजपा शासित राज्यों में मात्र आरोपों पर ही क़ानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते ए अल्पसंख्यकों के घरों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें सामूहिक सजा दी जा रही है. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने लोगों पर साम्प्रदायिक अपशब्दों और ख़ालिस झूठ के ज़रिये जो हमले किए थे, उसके बाद जो कुछ हो रहा है, वह सब आश्चर्यजनक नहीं है. उन्होंने इस डर से भड़काऊ बयानों को और बढ़ावा दिया क्योंकि चुनाव उनके हाथ से निकल रहा था, इस तरह उन्होंने अपने पद की गरिमा और मर्यादा का पूरी तरह से अनदेखा किया.

फ़रवरी 2022 में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मणिपुर के विधानसभा चुनाव में साफ़ बहुमत मिला था. फिर भी तीन महीने के अंदर ही मणिपुर जल उठा, या कहें कि इसे जलने दिया गया. सैकड़ों लोगों की जान गई और हज़ारों लोग बेघर हो गए. इस बेहद संवेदनशील राज्य में सामाजिक तानाबाना तहस-नहस हो गया. लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री को न तो राज्य का दौरा करने या वहां के नेताओं से मिलने का वक़्त मिला. और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी पार्टी वहां दोनों लोकसभा सीटें हार गई, लेकिन इससे मणिपुर के विविधतापूर्ण समाज में व्याप्त संकट के प्रति उनके असंवेदनशील रवैये पर कोई असर नहीं पड़ता दिखता.

प्रधानमंत्री ने चालीस दिनों से ज़्यादा समय तक चले चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ख़ुद बेहद कमतर साबित किया. उनके शब्दों ने हमारे सामाजिक ताने-बाने और उस पद की गरिमा को बहुत नुक़सान पहुंचाया है जिस पर वे गर्व करते है. उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए और यह पहचानना चाहिए कि 400 से ज़्यादा संसदीय सीटों के लिए उनके आह्वान को अस्वीकार करके, हमारे करोड़ों लोगों ने - जिनसे वे सबका साथ, सबका विकास का वादा करते हैं - एक शक्तिशाली संदेश दिया है कि अब बहुत हो चुका.


इंडिया गठबंधन के दलों ने साफ़ कर दिया है कि वे टकराव वाला रवैया नहीं अपनाना चाहते. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सहयोग की पेशकश की है. गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे संसद में रचनात्मक सहयोग देना चाहते हैं और संसद की कार्यवाही के संचालन में निष्पक्षता चाहते हैं. हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इस पर सकारात्मक रुख़ अपनाएगी. लेकिन शुरुआती लक्षण अच्छे नहीं हैं, फिर भी विपक्ष में हम इस बात को लेकर कटिबद्ध हैं कि संसद में संतुलन बना रहे ताकि देश के उन करोड़ों लोगों की आवाज़ और चिंताओं का प्रतिनिधित्व हो सके जिन्होंने हमें इस सदन में अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजा है. हम उम्मीद करते हैं कि सत्ता पक्षा हमारे लोकतांत्रिक दायित्वों को पूरा करने में आगे आएगा.”

बहरहाल सोनिया गांधी पूरे जोश के साथ मैदान में डटी हुई हैं. वे हर पल अपने बेटे राहुल गांधी और पार्टी के साथ खड़ी नज़र आती हैं. जिस उम्र में लोग सिर्फ़ आराम करना चाहते हैं, उस उम्र में भी वे देश की अवाम के बारे में सोच रही हैं, उनके हक़ के लिए लड़ रही हैं. उनका यही जज़्बा कार्यकर्ताओं में में उत्साह बनाए रखता है.  


फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • अच्छा इंसान - अच्छा इंसान बनना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी. एक अच्छा इंसान ही दुनिया को रहने लायक़ बनाता है. अच्छे इंसानों की वजह से ही दुनिय...
  • कटा फटा दरूद मत पढ़ो - *डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी *रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो। इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे क...
  • Good person - It is most important to be a good person, for yourself and for others. A good person makes the world worth living in. The world exists because of good pe...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • संग्रहणीय पुस्तक है नवगीत कोश - *फ़िरदौस ख़ान*सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार डॉ. रामनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ द्वारा लिखित ‘नवगीत कोश’ पढ़ने का मौक़ा मिला। इसे पढ़कर लगा कि अगर इसे पढ़ा नहीं हो...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं