समीर पुष्प
औद्योगिक  विकास की प्रक्रिया आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन किसी भी औद्योगिक विकास के  साथ-साथ पर्यावरण का ह्रास भी दिखाई पड़ता है। पर्यावरण का नुकसान कम करने के लिए कई दशकों से चले आ रहे परंपरागत तरीक़ों का इस्तेमाल केवल लक्षणों का उपचार साबित हुआ है। विश्व इस समय पर्यावरण क्षति के रोग से जूझ रहा है और इसके असाध्य होने की संभावना का डर है। समय आ गया है कि प्रदूषण की आपात समस्या से निपटने के लिए,  तकनीकी उपायों के मेल से कचरे को उत्पन्न होने से रोकने या उसके बहुमूल्य पदार्थों को पुनः इस्तेमाल के लिए प्रभावी क़दम उठाए जाएं। भारत में, हम, इस बढ़ती समस्या के प्रति सतर्क हैं और जागरूकता बढ़ाने तथा व्यावहारिक समाधान के रूप में पर्यावरण  क्षरण के प्रभाव को कम करने के प्रयास शुरू कर चुके हैं। इस विश्वास  को सुदृढ़ करने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत, राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद  12 से 18 फ़रवरी, 2011 के बीच उत्पादकता सप्ताह मना रहा है, जिसका विषय है- 'सतत ऊर्जा और पर्यावरण के लिए हरित उत्पादकता'। उत्पादकता सप्ताह 'हरित उत्पादकता (जीपी)' की मूल अवधारणा पर केंद्रित होगा। 
एक नया प्रतिमान

हरित उत्पादकता स्थायी निर्माण में एक नया प्रतिमान है जिसमें संसाधन संरक्षण और अपशिष्ट न्यूनीकरण की रणनीति पर्यावरण का प्रदर्शन और उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है। उद्योगों की सततता के प्रति  उत्पादकता का यह दृष्टिकोण, स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकी और उत्पाद के जीवन चक्र को निर्माण के विविध स्तरों पर, निरंतर सुधार की नीति के साथ, पर्यावरण के प्रदर्शन को मापने के लिए उचित संकेतकों और उपकरणों के विकास को अपनाने की मांग करता है। विश्लेषण में समस्त जीवन चक्र के बढ़ते प्रभावों का विस्तार, सुधार रणनीतियों और संकेतकों की जानकारियों को भी शामिल किया जा सकता है। 

हरित उत्पादकता एक बेहतरीन  सामाजिक-आर्थिक विकास है जो कि पर्यावरण को कम से कम या बगैर कोई क्षति पहुंचाए मानव जीवन की गुणवत्ता में सतत सुधार पर जोर देता है।  उपयुक्त उत्पादकता और पर्यावरण प्रबंधन उपकरणों, तकनीकों और प्रौद्योगिकियों, जो कि किसी  संगठन की लाभप्रदता और प्रतिस्पर्धी लाभ को बढ़ाने के साथ उसकी गतिविधियों, उत्पादों और सेवाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते है, उनका यह एक संयुक्त अनुप्रयोग है। 

हरित विकास गतिशीलता 
उत्पादकता सप्ताह का ज़ोर पारिस्थितिकी दक्षता के विचारों और ऊर्जा दक्षता दृष्टिकोणों  के प्रति जागरूकता पैदा करना है, जो कि पारिस्थितिकी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों द्वारा समर्थित और पर्यावरण के वित्तपोषण और निवेश तथा प्रति चक्रों के समीकरणों पर केंद्रित होगा। उपभोक्ताओं सहित कंपनियों और हितधारकों की उद्देश्यपूर्ण कार्रवाई तेजी से उत्पाद सुधार तथा  उत्पाद को नया स्वरूप देने सहित पर्यावरणीय रूपरेखा की पहल पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य भविष्य में हरित उपभोक्तावाद और हरित विकास गतिशीलता तथा हमारे ग्रह की सीमाओं में  पर्यावरणीय संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यावरण अनुकूल शहरों और पर्यावरण अनुकूल औद्योगिक पार्कों को उभारने की संभावनाओं को तलाशना है।

                 एक सिद्धांत और रणनीति के रूप में हरित उत्पादकता को व्यापक समझ और मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है, और अंततः स्थाई सामाजिक -आर्थिक विकास के लिए उत्पादकता और पर्यावरण के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए इसे लागू किया जा रहा है। अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के दोहन के कारण जहां एक ओर प्राकृतिक ऊर्जा की निधियों में कमी आ रही है वहीं, दूसरी ओर इसके अत्यधिक और असंतुलित प्रयोग के कारण, दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग जैसी कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरणीय क्षति के प्रभावों के कुछ उदाहरणों में  समुद्र के स्तर में वृद्धि, वर्षा में उतार चढ़ाव और अक्सर सूखे की स्थिति शामिल हैं। इन सभी चिंताओं ने हमें स्थिति का आकलन करने पर मजबूर किया और इससे सतत विकास के लिए हरित उत्पादकता की अवधारणा के जन्म को दिशा मिली।

पर्याप्त लाभ
 उत्पादकता का मुख्य ध्यान  लागत में कमी के जरिए कीमतों में कमी लाने, गुणवत्ता सुधारने और ग्राहक संतुष्टि को सुनिश्चित करने पर केंद्रित था। अब इन के साथ, उत्पादकता सुधार कार्यक्रमों से पर्यावरण के मुद्दों को एकीकृत करने की भी अपेक्षा है। जीपी कंपनी की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है और यह केवल निर्माण में ही नहीं बल्कि, सेवाओं और सूचनाओं तथा कृषि क्षेत्र के साथ सरकारी और समुदायिक आर्थिक विकास पर भी लागू है। गुणवत्ता के माध्यम से, समृद्धि में बढ़ोतरी के रुप में उत्पादकता, पर्यावरणीय सुरक्षा और सामुदायिक  वृद्धि में तब्दील हो गई है।

ऊर्जा और पर्यावरणीय मुद्दों को समाविष्ट करने वाली सतत विकास की राह पर पर्याप्त चुनौतियां हैं। भविष्य में आकलित, जनसंख्या वृद्धि  से जुड़ी समस्याओं को ऊर्जा प्रबंधन और प्रदूषण में कमी लाने वाली तकनीक काफी हद तक दूर कर देगी। इसलिए, हरित उत्पादकता को लाभ में वृद्धि, स्वास्थ्य और सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण, पर्यावरण संरक्षण को प्रसारित करने, विनियामक अनुपालन, कंपनी की छवि निर्माण और कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने के मुख्य उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया था जिससे अंततः समग्र और पूर्ण विकास को बढ़ावा मिलेगा।

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, " इंसान की जरूरतों की संतुष्टि के लिए प्रकृति पर्याप्त है लेकिन आदमी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं है।" वैश्वीकरण की इस भयंकर दौड़ में, दुनिया के देशों ने जरूरत और लालच के बीच के अंतर  की समझ को  खो दिया है। वे तेजी से भौतिकवाद के रेतीले गर्त में फंसते जा रहे हैं और इस तरह विभाजक रेखा को खींचने में असमर्थ हो रहा हैं। इस धुंधलके के परिणामस्वरुप उपभोक्तावादी अवधारणा अपव्यय को प्रदर्शित कर रही है जिससे माल और सेवाओं में बेतहाशा तरीके से विवेकहीन वृद्धि हुई है।

उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। किसी राष्ट्र की प्रतिस्पर्धा उत्पादकता वृद्धि के साथ जुड़ी होती है और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के लिए राष्ट्र की क्षमता को परंपरागत आर्थिक मापदंड के अलावा पर्यावरणीय  प्रदर्शन से मापा जाता है। पर्यावरण सरंक्षण को एक एकाकी तत्व बनाने की बजाय इसे प्रमुख व्यापार सिद्धांत बनाने में हरित उत्पादकता की अवधारणा एक सरल किंतु सुरुचिपूर्ण समाधान है। उत्पादकता सप्ताह-2011 का चयनित विषय ̎सतत ऊर्जा और पर्यावरण के लिए हरित उत्पादकता̎ समय की आवश्यकता है।


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