डॉ. प्रवीण तोगड़िया
श्रीराम जन्मभूमि के प्रश्न पर गत 450 वर्षों से निरन्तर संघर्ष चल रहा है। जो स्थान श्रीराम जन्मभूमि है और हिन्दू उसकी श्रद्धा से निरन्तर पूजा करते आया है, तब से जब बाबर के मजहब का जन्म भी नहीं हुआ था। उसी स्थान पर मस्जिद बनाने और हिन्दुओं को उस स्थान पर पूजा करने से रोकने का षड्यंत्र गत् 450 वर्षों से चल रहा है।

प्राचीन काल से अयोध्या मोक्षदायिनी सप्त नगरियों में से एक रही है। हिन्दुओं के लिए अयोध्या का महत्व धार्मिक रहा है, जिनके प्रमाण स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण, पद्मपुराण तथा अन्य कइयों जगह भलीभांति मिलते हैं। वहीं अयोध्या मुसलमानों के लिए कभी धार्मिक महत्व का स्थान रहा हो, ऐसा नहीं है। पवित्र सरयू नदी के तट पर प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर था और हिन्दू श्रद्धा से उस की एवं सम्पूर्ण अयोध्या नगरी की पूजा-परिक्रमा भी करते थे तथा आज भी कर रहे हैं।

उसी पवित्र स्थान पर भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर तोड़कर और कई जगह उस मंदिर के स्तम्भ का उपयोग कर वहाँ मस्जिद बनाने का प्रयास बाबर के सेनापति मीर बाँकी ने किया। परन्तु वहाँ कभी मीनारें नहीं बनीं। भगवान श्रीराम की शक्ति और हिन्दुओं की अटूट श्रद्धा की शक्ति ही थी कि उस ढाँचे के मीनार बांधकर बाबर कभी भी वहाँ मस्जिद नहीं बना पाया। इस्लाम के नियमानुसार जिस ढाँचे की मीनारें नहीं होती वह कभी मस्जिद नहीं हो सकता, अर्थात् उस ढाँचे का इस्लाम में कोई धार्मिक महत्व नहीं।

450 वर्षों तक हिन्दुओं ने यह पवित्र स्थान कभी नहीं त्यागा। पवित्र श्रीराम जन्मभूमि होने के कारण, हिन्दुओं ने उस स्थान पर पूजा कभी नहीं त्यागी। बाबर ने विकृत ढाँचा बना भी लिया, किन्तु हिन्दू उस स्थान पर पूजा और उस स्थान की परिक्रमा करते ही रहे। जब उन्हें अन्दर जाने से रोका गया, तब उन्होंने बाहर राम चबूतरे से उस स्थान की पूजा प्रारंभ कर दी।

भगवान श्रीराम की पवित्र जन्मभूमि के लिए गत् 450 वर्षों में उसी स्थान पर निरन्तर हिन्दू पूजा-परिक्रमा करते आये और उस स्थान के लिए आज तक 78 संघर्षों में चार लाख हिन्दू शहीद हुए। हिन्दू कोई मूर्ख नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में शताब्दियों से इतने प्राण यूँ ही गंवाएँ। हिन्दुओं में युगों-युगों से चली आयी पूजा-परम्पराओं के कई स्थान हैं। कई युग बीत गए फिर भी उन्हीं जगहों पर हिन्दू उस तय समय पर करोड़ों की संख्या में जाते हैं, स्नान पूजा करते हैं। जैसे कुम्भ, 12 ज्योतिर्लिंग, 52 शक्तिपीठ, नदी तटों पर स्नान के विशिष्ट पर्व आदि।

अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर युगों-युगों से चली आयी हुई ऐसी ही यह निरन्तर परम्परा है जो इस्लाम के जन्म के कई युगों पहले से चली आ रही है। अयोध्या के अलावा कोई दूसरा स्थान भगवान श्रीराम का जन्मस्थान कहीं भी नहीं। युगों की यह निरन्तर पूजा परम्परा हिन्दुओं ने जतन से की है। प्रश्न केवल मंदिर का ही नहीं, उसी स्थान पर भव्य मंदिर बनाने का है। जहाँ श्रीरामलला विराजमान है, जहाँ युगों-युगों से 4 लाख प्राणों की आहुति देकर भी हिन्दू पूजा करते आये, उसी श्रीराम जन्मभूमि पर ही भव्य मंदिर बने, यह महत्व का है।

आप में से कोई अपना जन्म स्थान किसी भी कानूनी कागजों में जो सच है उसके अलावा दूसरा लिख सकते हैं? नहीं ना! तो फिर भगवान् श्रीराम की जन्मभूमि पर उनका अस्तित्व और उनका मंदिर कैसे नकारा जा सकता है? जन्मस्थान नहीं बदला जा सकता, आम आदमी का भी नहीं बदला जा सकता, तो भगवान् श्रीराम के जन्मस्थान से हटकर मंदिर कैसे बन सकता है? जन्मस्थान कैसे बदल सकता है? हिन्दुओं की श्रद्धा के साथ मजाक, बिलम्ब, विश्वासघात अब बहुत हुए। अब भगवान् श्रीराम का भव्य मंदिर उनकी उसी जन्मभूमि पर बनेगा जहाँ युगों-युगों से हिन्दू पूजा-परिक्रमा करते आए हैं। अब इसमें किसी भी प्रकार का विलम्ब याने हिन्दुओं की अटूट श्रद्धा का घोर अपमान।

अयोध्या में मस्जिद नहीं बनाने दी जायेगी। हिन्दुओं के लिए केवल प्राण-प्रतिष्ठापित मूर्ति ही नहीं वह स्थान भी देवता है। अयोध्या की यह सम्पूर्ण पवित्र भूमि हिन्दुओं के लिए देवता है। भारत के आज के कानून ने भी देवता का भूमि पर का यह अधिकार मान्य किया है। तो फिर जिस पवित्र भूमि पर भगवान् श्रीराम का ही केवल अधिकार है, उस पवित्र भूमि पर कोई मस्जिद कैसे बन सकती है? इसलिए अयोध्या में पवित्र श्रीराम जन्मभूमि पर और अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में कोई भी मस्जिद अब नहीं बनाने दी जायेगी।

बाबर के नाम पर भारत में मस्जिद कहीं भी बनाने नहीं दी जायेगी। भारत के संविधान की मूल पुस्तक में भारत के राष्ट्र-पुरुषों में भगवान् श्रीराम का चित्र दिया है। बड़ा सुन्दर चित्र है जिसमें भगवान् श्रीराम पुष्पक विमान से आते हुए दिखते हैं। ऐसे राष्ट्र-पुरुष भगवान् श्रीराम का मंदिर तोड़कर वहाँ कोई विकृत ढाँचा बाँधने वाला विदेशी बाबर और उस विदेशी आक्रांता बाबर की कोई इमारत भारत में कैसे बन सकती है?

भारत के मुसलमान जो अपनी राष्ट्रीयता की बार-बार दुहाई देते रहते हैं, उनका प्यार भारत के संविधान में दिए हुए श्रीराम से नहीं बल्कि विदेशी आक्रांता बाबर से है? जब भारत से अंग्रेज भगाए गए, तब राष्ट्रीय कंलक मानकर उनके कई स्मारक हटाए गए। किंग्स पथ का नाम बदलकर जनपथ किया गया, बॉम्बे का मुम्बई, वेलिंग्टन अस्पताल का डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल किया गया और ऐसे कइयों उदाहरण हैं जहाँ केवल नाम परिवर्तन ही नहीं, अंग्रेजों के पुतले भी हटाए गये। फिर उनके पहले जिन विदेशियों ने भारत पर अत्याचार किये, जिनमें से बाबर भी एक है, उसके नाम का स्मारक भारत में रखना और नए सिरे से भी बाँधना, यह तो केवल देशद्रोह है।

इसलिए जो कोई बाबर के नाम के किसी भी ढाँचे का जिसने हमारे संविधान में जिन भगवान् श्रीराम का सम्मान से चित्र दिया है, उनका भव्य मंदिर उनकी जन्मभूमि पर का तोड़ा था, वे लोग निश्चित ही भारत में अराष्ट्रीय विचार फैलाना चाहते हैं और भारत में बाबर के नाम का कोई भी ढाँचा कहीं भी बाँधने का राष्ट्रद्रोही कृत्य हिन्दू भारत में कभी भी होने नहीं देंगे।

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