सालगिरह
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आज हमारी ईद है, क्योंकि आज उनकी सालगिरह है. और महबूब की सालगिरह से बढ़कर कोई
त्यौहार नहीं होता.
अगर वो न होते, तो हम भी कहां होते. उनके दम से ही हमारी ज़...
मनीष देसाई
भारतीय रुपए के लिए 15
जुलाई, 2010 का दिन एक ऐतिहासिक
दिन
कहलाएगा। इसी दिन भारतीय रुपये
को
भी
विष्व की अन्य प्रमुख मुद्राओं
की
भांति अलग पहचान मिली।
डॉलर, यूरो, पौंड और येन की तरह अब रुपये
को
भी
नया
प्रतीक मिल गया है। रुपये का नया प्रतीक
देवनागरी लिपि के 'र' और रोमन लिपि के 'आर' को मिला कर बना है। अभी तक रुपये
की
अभिव्यक्ति विभिन्न भाषाओं
में
अलग-अलग संक्षिप्ताक्षरों में की जाती थी।
भारतीय
प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी), मुम्बई
के
पोस्ट ग्रेजुएट श्री डी. उदय कुमार
द्वारा रचित रुपये के नए प्रतीक
का
अनुमोदन केन्द्रीय मंत्रिमंडल
ने
15 जुलाई को कर दिया। मंत्रिमंडल
के
निर्णय के बारे में पत्रकारों को जानकारी
देते
हुए
केन्द्रीय सूचना और प्रसारण
मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि भारतीय
मुद्रा के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। यह प्रतीक
भारतीय मुद्रा को एक विषिष्ट
पहचान और चरित्र प्रदान
करेगा। यह भारतीय अर्थव्यवस्था
को
एक
नया वैश्विक चेहरा पेश करने के अतिरिक्त
उसे
सुदृढ़ता भी प्रदान करेगा।
नया प्रतीक न तो नोटों
पर
छापा
जाएगा और न ही उसे सिक्कों में ढाला जाएगा।
इसे
यूनिकोड स्टैंडर्ड' में शामिल किया जाएगा, ताकि यह सुनिष्चित
किया
जा
सके
कि
इसे
इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया
में
आसानी से प्रदर्षित और मुद्रित
किया
जा
सके।
भारतीय मानक में रुपये के प्रतीक
की
इनकोडिंग (कूटांकन)
में
संभवत: 6 महीने का समय लगेगा, जबकि यूनिकोड
और
आई
एस
ओ/आई ई सी 10646
में
इनकोडिंग के लिए डेढ़ से दो साल गने का अनुमान है। भारत में प्रयुक्त
कीबोर्डों और साफ्टवेयर पैकेजों
में
इसे
समाविष्ट किया जाएगा।
पांच मार्च 2009
को
सरकार ने रुपये का प्रतीक
चिह्न तैयार करने के लिए एक प्रतियोगिता
की
घोषणा की। भारतीय संस्कृति
और
स्वभाव को परिलक्षित और प्रतिबिम्बित
करने
वाली
प्रविष्टियां देशभर से आमंत्रित
की
गईं।
तीन
हजार
से
अधिक
प्रविष्टियां प्राप्त हुईं।
जिनका मूल्यांकन भारतीय
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर
की
अध्यक्षता वाले एक निर्णायक मंडल ने किया।
निर्णायक मंडल में कला और अभिकल्पन संस्थाओं
के
तीन
प्रतिष्ठित विशेषज्ञ भी शामिल
थे।
उसने
पांच
प्रविष्टियों का चुनाव कर अपनी टिप्पणियों
के
साथ
अंतिम निर्णय के लिए सरकार
के
पास
भेज
दिया।
उदय कुमार
की
प्रविष्टि को इन पांचों में सर्वश्रेष्ठ
पाया
गया।
उन्हें ढाई लाख रुपये का पुरस्कार
तो
मिलेगा ही, बल्कि
उससे
भी
अधिक
रुपये के प्रतीक चिह्न
की
रचना
करने
वाले
व्यक्ति के तौर पर भारी प्रसिध्दि भी मिलेगी।
अपनी
प्रविष्टि के चयन से प्रसन्न उदय ने कहा कि 'मेरी डिजाइन
(रूपांकन) भारतीय (देवनागरी)
लिपि
के
'र' और रोमन लिपि के 'आर' का आदर्श
मिश्रण है। भारतीय रुपये
का
प्रतिनिधित्व करने वाला यह प्रतीक भारतीय
और
अन्तर्राष्ट्रीय (गुण ग्राहको) सभी को अपील करेगा।
यह
भारतीय तिरंगे से प्रेरित
है।
ऊपर
दो
लाइनें दी गई हैं और बीच में रिक्त स्थान
रखा
गया
है।'
रुपया
शब्द
की
उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द
'रौप्य' से हुई है, जिसका
अर्थ
होता
है, चांदी।
भारतीय रुपये को हिंदी
में
'रुपया,' गुजराती
में
रुपयों, तेलगू
और
कन्नड़ में 'रूपई',
तमिल
में
'रुबाई' और संस्कृत
में
'रुप्यकम' कहा जाता है, परन्तु
पूर्वी भारत में,
बंगाल
और
असमिया में टका/टॉका और तथा ओड़िया
में
'टंका' कहा जाता है।
भारत की गिनती
उन
गिने
चुने
देशों में होती है जिसने सबसे पहले सिक्के
जारी
किए।
परिणामत: इसके इतिहास में अनेक मौद्रिक
इकाइयों (मुद्राओं) का उल्लेख
मिलता है। इस बात के कुछ ऐतिहासिक प्रमाण
मिले
हैं
कि
पहले
सिक्के 2500 और 1750 ईसा पूर्व
के
बीच
कभी
जारी
किए
गए
थे।
परन्तु दस्तावेजी प्रभाव
सातवीं/छठी शताब्दी
ईसा
पूर्व के बीच सिक्कों की ढलाई के ही मिले हैं। इन सिक्कों
के
निर्माण की विशिष्ट तकनीक
के
कारण
इन्हें पंच मार्क्ड सिक्के
कहा
जाता
है।
अगली कुछ सदियों
के
दौरान जैसे-जैसे साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ तथा परम्पराओं
का
विकास हुआ,
देश
की
मुद्राओं में इसका प्रगति-क्रम दिखाई
देने
लगा।
इन
मुद्राओं से प्राय: तत्कालीन
राजवंश, सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, आराहय
देवों और प्रकृति का परिचय
मिलता था। इनमें इंडो-ग्रीक
(भारत-यूनान) काल के यूनानी
देवताओं और उसके बाद के पश्चिमी क्षत्रप
वाली
तांबे की मुद्रायें शामिल
हैं
जो
पहली
और
चौथी
शताब्दी (ईसवीं) के दौरान
जारी
की
गई
थी।
अरबों
ने
712 ईस्वी में भारत के सिंघ प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रमुख
स्थापित किया। बारहवीं
शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क
सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिजाइन को हटाकर
उनके
स्थान पर इस्लामी लिखावटों
को
मुद्रित कराया। इस मुद्रा
को
'टंका' कहा जाता था। दिल्ली
के
सुल्तानों ने इस मौद्रिक प्रणाली
का
मानकीकरण करने का प्रयास किया और फिर बाद में सोने, चांदी
और
तांबे की मुद्राओं का प्रचलन
शुरू
हो
गया।
सन् 1526
में
मुगलों का शासन काल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य
में
एकीकृत और सुगठित मौद्रिक
प्रणाली की शुरूआत हुई। अफगान
सुल्तान शेरशाह सूरी (1540
से
1545) ने चांदी के 'रुपैये' अथवा रुपये
के
सिक्के की
शुरुआत
की।
पूर्व-उपनिवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं
की
ढलाई
करवाई, जो मुख्यत:
चांदी के रुपये जैसे ही दिखती
थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान
(रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषतायें
भर
अंकित होती थीं।
अट्ठाहरवीं
शताब्दी के उत्तरार्ध्द में, एजेंसी
घरानों ने बैंको का विकास
किया। बैंक ऑफ बंगाल,
दि
बैंक
ऑफ
हिन्दुस्तान, ओरियंटल
बैंक
कार्पोरेशन और दि बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया
इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों
ने
अपनी
अलग-अलग कागजी मुद्रायें-उर्दू,
बंगला
और
देवनागरी लिपियों में मुद्रित
करवाई।
लगभग सौ वर्षों
तक
निजी
और
प्रेसीडेंसी बैंकों द्वारा
जारी
बैंक
नोटों का प्रचलन बना रहा, परन्तु
1961 के पेपर करेंसी कानून
बनने
के
बाद
इस
पर
केवल
सरकार का एकाधिकार रह गया। ब्रिटिश
सरकार ने बैंक नोटों के वितरण
में
मदद
के
लिए
पहले
तो
प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट
के
रूप
में
नियुक्त किया,
क्योंकि
एक
बड़े
भू-भाग में सामान्य नोटों
के
इस्तेमाल को बढ़ाया देना एक दुष्कर
कार्य था। महारानी विक्टोरिया
के
सम्मान में 1867 में पहली बार उनके चित्र की श्रृंखला
वाले
बैंक
नोट
जारी
किए
गए।
ये
नोट
एक
ही
ओर
छापे
गए
(यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे।
बैंक नोटों के मुद्रण
और
वितरण का दायित्व 1935 में भारतीय
रिजर्व बैंक के हाथ में आ गया। जार्ज पंचम के चित्र
वाले
नोटों के स्थान पर 1938
में
जार्ज षष्ठम के चित्र
वाले
नोट
जारी
किए
गए, जो 1947
तक
प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ
के
सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों
ने
इन
का
स्थान ले लिया।
भारतीय रुपया 1957
तक
तो
16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु
उसके
बाद
(1957) में ही उसने मुद्रा की दशमलव
प्रणाली अपना ली और एक रुपये का पुनर्गन
100 समान पैसों में किया गया। महात्मा
गांधी वाले कागजी नोटों
की
श्रृंखला की
शुरुआत
1996 में हुई,
जो
आज
तक
चलन
में
है।
नकली मुद्रा
की
चुनौती से निपटने के लिए भारतीय
रुपये के नोटों में सुरक्षा
संबंधी अनेक विशेषताओं को समाहित
किया
गया
है।
नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी
का
जल
चिन्ह् (वाटर मार्क) बना हुआ है। सभी नोटों
में
चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर अंग्रेजी
में
आर
बी
आई
और
हिंदी में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है। पांच सौ और एक हजार रुपये
के
नोटों में उनका मूल्य प्रकाश में परिवर्तनीय स्याही
से
लिखा
हुआ
है।
धरती
के
समानान्तर रखने पर ये संख्या हरी दिखाई
देती
हैं
परन्तु तिरछे या कोण से देखने
पर
नीले
रंग
में
लिखी
हुई
दिखाई देती हैं।
भारतीय रुपये
के
नोट
के
भाषा
पटल
पर
भारत
की
22 सरकारी भाषाओं में से 15
में
उनका
मूल्य मुद्रित है। ऊपर से नीचे इनका क्रम इस प्रकार
है-असमिया,
बंगला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी
संस्कृत, तमिल, तेलुगु
और
उर्दू।
सरकारी
मुद्रा को रुपया कहा जाता है, जो भारत, भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरिशस, मालदीव
और
इंडोनेशिया सहित कई देशों में प्रचलित
हैं।
इन
सभी देशों में भारतीय रुपया, मूल्य, स्वीकार्यता
और
लोकप्रियता के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण
माना
जाता
है।
नया प्रतीक चिन्ह
पाने
के
साथ
ही
भारतीय रुपया अब विश्व की प्रमुख मुद्राओं-डॉलर,
यूरो, पौंड और येन के साथ आ खड़ा हुआ है। नया प्रतीक
आत्म विश्वास से परिपूर्ण
नए
भारत
के
अभ्युदय का भी प्रतीक है, जो अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक विशेष जगह बना चुका है।