नई दिल्ली.
आम आदमियों में भी सिगरेट पीने से पड़ने वाले असर से सभी वाकिफ हैं।
डायबिटीज मेलीटस के मरीज जो धूम्रपान करते हैं,
उमनें मैक्रोवैस्कुलर (कोलेस्ट्रॉल का जमना) और माइक्रोवैस्कुलर
(आंख, किडनी शामिल) बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
हार्ट
केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया
के अध्यक्ष डॉ.
के के अग्रवाल के मुताबिक़ हृदय संबंधी बीमारी की वजह से धूम्रपान सभी कारणों से मौत का एक
स्वतंत्र आशंकित खतरा है।
मधुमेह की शिकार महिलाओं में वर्तमान में पीने वाली सिगरेट की स्थिति और
कोरोनरी डिसीज के खतरे के बीच की स्थिति के लिए डोज जिम्मेवार होती है। रोजाना एक
से 14
सिगरेट वालो में यह खतरा 1.7 गुना होता
है, जबकि 15 से ज्यादा सिगरेट
लेने वालों में यह खतरा 2.68 गुना होता है। जो लोग
10 सालों तक सिगरेट पीना छोड़ देते हैं, उनमें धूम्रपान से होने वाला खतरा खत्म हो जाता
है।
मधुमेह की शिकार वे महिलाएं जो सिगरेट पीने की तादाद बढ़ाती
हैं,
उनमें मौत का खतरा बढ़ जाता है। जो रोजाना 1-14 सिगरेट लेते हैं, उनमें यह खतरा 1.4
गुना होता है जबकि 35 से ज्यादा सिगरेट
लेने वालों में यह खतरा 2.1 गुना होता है। धूम्रपान छोड़ने
के दस साल बात यह खतरा धीरे-धीरे घटकर 1.1 गुना रह जाता
है।
धूम्रपान से टोटल कोलेस्ट्रॉल के सीरम कंसन्ट्रेशंस में बढ़ोतरी हो जाती
है साथ ही बहुत ही कम घनत्व का लीपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल जो सीरम हाई डेंसटी
लीपोप्रोटीन में कमी से एक चिंता विषय है। इसके अलावा इंसुलिन रुकावट में भी व्यापक
असर होता है।
धूम्रपान करने वालों में ग्लाइसेमिक पर काबू पाने की क्षमता भी
सुनिश्चित नहीं होती। टाइप 1
डायबिटीज के रोगियों में यूरीनरी एल्ब्युमिन एग्जर्शन का खतरा बढ़
जाता है और गैर धूम्रपान करने वाले अगर धूम्रपान को जारी नहीं रखते है। तो उनमें
नॉनप्रोलाइफ्रेटिव रेटिनोपैथी जो कि एल्ब्युमिन्यूयरिया के गिरने का स्तर होता
है।
धूम्रपान करने वाले चाहे वे टाइप 1
या टाइप 2 डायबिटीज के शिकार हों,
उनमें न्यूरोपैथी का खतरा बढ़ जाता है जिसमें ग्लाइसेमिक कंट्रोल
पर निरंतर असर होता है। धूम्रपान से रीनल डिसीज का भी खतरा बढ़ जाता है और एक बार डायलसिस करवाने
के बाद इसमें कमी आ जाती है।