सन 1965 का अगस्त का महीना।
भारत पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ते तनाव की वजह से अचानक युद्ध की स्थिति आ गयी थी. पाकिस्तान से अगस्त के महीने में घुसपैठियों ने लगातार घुसना शुरू कर दिया था. इसे पाकिस्तान ने “ऑपरेशन जिब्राल्टर” का नाम दिया था.
बदले की कार्रवाई करते हुए भारत ने 26 से 28 अगस्त 1965 के बीच चली लड़ाई में POK में आने वाले “हाजी पीर दर्रे” पर कब्ज़ा कर लिया। ये इलाका POK में आठ किलोमीटर अंदर था. एक सितम्बर को पाकिस्तान ने “ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम” शुरू कर दिया.
सन 1965 की इस लड़ाई के जब आसार बन रहे थे, तब हवलदार अब्दुल हमीद ग़ाज़ीपुर ज़िले के अपने गाँव धामूपुर आये हुए थे. अचानक टेलीग्राम मिला और उन्हें ड्यूटी पर वापस बुला लिया गया. अब्दुल हमीद 27 दिसंबर 1954 को सेना में शामिल हुए थे. वो ग्रेनेडियर्स इन्फैंट्री में थे. सन 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान उनकी बटालियन ने “नमका चू” की एक बहुत भीषण लड़ाई में हिस्सा लिया था. वो गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस वीरता के लिए उन्हें राष्ट्रीय सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
बहरहाल, जब 1965 की लड़ाई छिड़ी तो हवलदार अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन ज़िले में खेमकरण सेक्टर में तैनात थे. जो सीमा से पांच किलोमीटर अंदर है. पाकिस्तान के पास उस वक़्त अमेरिका में बनाये हुए पैटन टैंक थे. उस समय ये माना जाता था कि इन टैंकों के सामने किसी भी फ़ौज का टिकना नामुमकिन है. अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी उसी दौरान उन्हें टैंकों के आने की आवाज सुनाई दी और कुछ ही देर में टैंक दिखने भी लग गया।
पैटन टैंकों के इस हमले के दौरान अब्दुल हमीद अपनी जीप पर खड़े हो गये और उन्होंने पंजाब के गन्ने के खेतों के बीच अपनी 106 mm recoilless gun से आठ और नौ सितंबर को अकेले ही पकिस्तान के तकरीबन आठ टैंकों को तबाह कर दिया. जबकि उनकी बटालियन ने कुल 13 टैंकों को तबाह किया. इस लड़ाई को “असल उत्तर” के नाम से जाना जाता है. 1965 के युद्ध में टैंकों की सबसे बड़ी लड़ाई थी.
पाकिस्तानी सेना में हड़कंप मच गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हमला कहाँ से हो रहा है. इस लड़ाई में 10 सितम्बर को एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आकर गिरा और वो वीरगति को प्राप्त हुए.
अब्दुल हमीद को इस लड़ाई में अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 28 जनवरी 2000 को भारत सरकार के डाक विभाग ने वीर अब्दुल हमीद की वीरता की अमर कहानी को याद करते हुए 3 रुपए मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया.
हवलदार अब्दुल हमीद की समाधि खेमकरण में चीमा खुर्द गाँव में मौजूद है. और 7th Infantry Division इसका रखरखाव करती है.
नमन।।
(लेखक विविध भारती के जाने माने उद्घोषक हैं)
भारत पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ते तनाव की वजह से अचानक युद्ध की स्थिति आ गयी थी. पाकिस्तान से अगस्त के महीने में घुसपैठियों ने लगातार घुसना शुरू कर दिया था. इसे पाकिस्तान ने “ऑपरेशन जिब्राल्टर” का नाम दिया था.
बदले की कार्रवाई करते हुए भारत ने 26 से 28 अगस्त 1965 के बीच चली लड़ाई में POK में आने वाले “हाजी पीर दर्रे” पर कब्ज़ा कर लिया। ये इलाका POK में आठ किलोमीटर अंदर था. एक सितम्बर को पाकिस्तान ने “ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम” शुरू कर दिया.
सन 1965 की इस लड़ाई के जब आसार बन रहे थे, तब हवलदार अब्दुल हमीद ग़ाज़ीपुर ज़िले के अपने गाँव धामूपुर आये हुए थे. अचानक टेलीग्राम मिला और उन्हें ड्यूटी पर वापस बुला लिया गया. अब्दुल हमीद 27 दिसंबर 1954 को सेना में शामिल हुए थे. वो ग्रेनेडियर्स इन्फैंट्री में थे. सन 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान उनकी बटालियन ने “नमका चू” की एक बहुत भीषण लड़ाई में हिस्सा लिया था. वो गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस वीरता के लिए उन्हें राष्ट्रीय सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
बहरहाल, जब 1965 की लड़ाई छिड़ी तो हवलदार अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन ज़िले में खेमकरण सेक्टर में तैनात थे. जो सीमा से पांच किलोमीटर अंदर है. पाकिस्तान के पास उस वक़्त अमेरिका में बनाये हुए पैटन टैंक थे. उस समय ये माना जाता था कि इन टैंकों के सामने किसी भी फ़ौज का टिकना नामुमकिन है. अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी उसी दौरान उन्हें टैंकों के आने की आवाज सुनाई दी और कुछ ही देर में टैंक दिखने भी लग गया।
पैटन टैंकों के इस हमले के दौरान अब्दुल हमीद अपनी जीप पर खड़े हो गये और उन्होंने पंजाब के गन्ने के खेतों के बीच अपनी 106 mm recoilless gun से आठ और नौ सितंबर को अकेले ही पकिस्तान के तकरीबन आठ टैंकों को तबाह कर दिया. जबकि उनकी बटालियन ने कुल 13 टैंकों को तबाह किया. इस लड़ाई को “असल उत्तर” के नाम से जाना जाता है. 1965 के युद्ध में टैंकों की सबसे बड़ी लड़ाई थी.
पाकिस्तानी सेना में हड़कंप मच गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हमला कहाँ से हो रहा है. इस लड़ाई में 10 सितम्बर को एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आकर गिरा और वो वीरगति को प्राप्त हुए.
अब्दुल हमीद को इस लड़ाई में अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 28 जनवरी 2000 को भारत सरकार के डाक विभाग ने वीर अब्दुल हमीद की वीरता की अमर कहानी को याद करते हुए 3 रुपए मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया.
हवलदार अब्दुल हमीद की समाधि खेमकरण में चीमा खुर्द गाँव में मौजूद है. और 7th Infantry Division इसका रखरखाव करती है.
नमन।।
(लेखक विविध भारती के जाने माने उद्घोषक हैं)