रुकनुद्दीन रज़ा 
सुल्तान उल-हिंद हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का ऊर्स मुबारक
आप सब को अता-ए-रसूल, सुल्तान-उल-हिंद हजरत सैयद ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती संजरी अजमेरी हसनी वल हुसैनी अल-मारूफ ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ (कद्दस अल्लाहू सिर्राहु) के 811 वा उर्स मुबारक हो।
 हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) का जन्म 537 एएच (इस्लामिक वर्ष) में सिजिस्तान (वर्तमान ईरान में) के एक क्षेत्र संजर नामक स्थान पर हुआ था।  आपका असली नाम मोइनुद्दीन हसन है और आप प्यारे पैगंबर ﷺ कि आल से हुसैनी सैयद हैं। आपके लक़ब सुल्तान उल-हिंद, ग़रीब नवाज, अता-ए-रसूल, वारिस उन-नबी, हिंद अल-वली, नायब अल-रसूल फिल-हिंद और ख़्वाजा-ए-बुजुर्ग हैं।
 आपने इल्म हासिल करने के लिए 15 साल की छोटी सी उम्र में सफर करना शुरू कर दिया ।  मुक़द्दस इल्म को हासिल करने के लिए आपने समरखंड, बुखा़रा, बग़दाद, मक्का अल-मुकर्रमाह और मदीना अल-मुनव्वराह का सफर किया।
 आप  बाहरी इस्लामी विज्ञानों के माहिर शेख़ बन चुके थे, लेकिन आप को एक पीर ओ मुर्शिद की तलाश थी जो आपको अंदरूनी इस्लामी विज्ञान (मारिफत) सिखा सकें और अल्लाह सुभानहू वा ताआला के क़रीब ले आएँ । 
 बाद में आपने हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारूनी (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) के हाथों पर बैत ली और चिश्ती तरीक़े में दाख़िल हुए ।  आप अपने शेख़ की ख़िदमत में 30 साल रहे।
 हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (कद्दास अल्लाहू सिर्राहु) ने एक बार फरमाया, "जब मैं हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारूनी से मिला, और उनका मुरीद बना, तो मैंने 8 साल इस तरह से गुज़ारे कि मैंने आराम नहीं किया। मेरी सिर्फ़ एक फिक्र होती की मैं अपनी ख़िदमत और अकी़दत से उन्हें ख़ुश कर सकूँ। जब मेरे पीर ओ मुर्शिद दौरों पे जाते, तो मैं उनके बिस्तर और खाने को अपने सिर पर रख के चलता। मेरे पीर ओ मुर्शिद ने मेरी ख़िदमत को क़ुबूल फरमाया। उन्होंने मुझ से ख़ुश हों के मुझे ऐसे तोहफे अता किए जिनको बयान ही नही कर सकते  । मैं उनके तोहफों और मेहेरबानी के लिए उनका शुक्रगुज़ार हूं।"
 हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (कद्दस अल्लाहु सिर्राहु) को नबी ए पाक ﷺ ने मदीना मुनवराह, सऊदी अरब में हुकुम दिया के वह हिंदुस्तान में मोहब्बत, इंसानियत और ईमान फैलाएँ । हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (कद्दस अल्लाहु सिर्राहु) ने अजमेर, हिंदुस्तान के लिए रवाना होने से पहले हज़रत दाता गंज बख़्श अली हिजवेरी (कद्दस अल्लाह सिर्राहु) के मक़ाम  के पास 40 दिन का चिल्ला निकाला।
 आप अजमेर, हिंदुस्तान में एक ज़ालिम हुकुमरान के ख़िलाफ खड़े हुए और वाक़ई में आप गरीब नवाज़ थे। आपने जाति, वर्ग, धर्म के बावजूद किसी के साथ भेदभाव नहीं किया और गरीबों को खिलाने और उनकी मदद करने के लिए आप बेपनाह सख़ावत के लिए जाने जाते थे। आपने अपने मुबारक हाथों से 90 लाख से अधिक लोगों को इस्लाम में दाख़िल किया, और आपके  कई मोजज़ात रहे।
 आप इशा (रात की नमाज़) के वुज़ू  के साथ अपनी फज्र (सुबह की नमाज़) पढ़ने के लिए जाने जाते थे और रोज़ाना क़ुरान ए पाक को दो बार पड़ने के लिए जाने जाते थे।
 आपकी आरामगाह अजमेर शरीफ, हिंदुस्तान में है। आपसे फैज़ ओ बरकात हासिल करने के लिए सभी अलग-अलग जगह से लाखों की तादाद में लोग हाज़री की लिए आपके दरबार में आते हैं।
 अजमेर, हिंदुस्तान में आपकी दरगाह में आज भी आपका लंगर ख़ाने में बड़ी मख़दार में देगों में खाना पकाया जाता है जो बग़ैर किसी से पैसे लिए हर दिन हजारों लोगों को खाना खिलाने के लिए मशहूर है।
 दुआ:
 या मेरे अल्लाह जुमला अंबिया के वास्ते,
 हाजतें बरला मेरी कुल औलिया के वास्ते
 सिलसिला-ए-आलिया ख़ुशहालिया


أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ

أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ
I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam

फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं