रोहतक के टीपू सुल्तान रिसालदार बशारत अली राव, राव बाबर खाँ और राव साबर खाँ, जिन्होंने रोहतक जेल पर अपना झंडा फहरा दिया था!
रोहतक ज़िले के रांघड़ मुस्लिम बड़ी संख्या में ईस्ट इंडिया कंपनी की रेगुलर रेजिमेंट में बतौर सैनिक काम कर रहे थे। वो छुटियों में अपने अपने गाँव आ कर लोगों को अंग्रेज़ों के खिलाफ बग़ावत के लिए तैयार करने लगे, जिसकी भनक लगते ही रोहतक के कलेक्टर 'जॉन एडम लोच' ने छुट्टी पर गये सभी सैनिकों को हेडक्वार्टर में वापस आने के आदेश जारी कर दिए।
लेकिन तब तक लोगों में बग़ावत ज़ोर पकड़ने लगी और इस आग में घी का काम बहादुर शाह ज़फर के दूत तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ने किया जो एक छोटी फ़ौज की टुकड़ी लेकर रांघड़ो से मिल गया। रोहतक के कलेक्टर जॉन एडम लोच ने बागियों का सामना न कर पाने की हालत में अपने अधिकारियों सहित वहाँ से भाग जाना ज़्यादा मुनासिब समझा।
अँगरेज़ अफसरों के भागने के बाद अपने सामने खुला मैदान देख रोहतक के राँघड़ो ने सरकारी ऑफिस और बंगलो में आग लगा दी और रोहतक जेल से कैदियों को आज़ाद करा लिया। राँघड़ो के हाथों कोई अंग्रेज़ तो मारा नहीं गया लेकिन उन्होंने अंग्रेजी सरकार के संस्थानों को काफी नुक़सान पहुँचा कर अपना झंडा फहरा दिया।
बागियों को क़ाबू करने के लिए थॉमस सीटोन के नेतृत्व में जॉन एडम लोच 60th regiment native infantry के साथ रोहतक पहुंचा, उन्होंने रेजिमेंट के साथ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट रोहतक में कैंप बनाया। बाग़ी हालातों को देख कर अँगरेज़ अधिकारियो को सैनिकों पर भरोसा नहीं था और हुआ भी वही रेजिमेंट में बग़ावत हो गयी
रांघड़ो ने इस मौक़े का फायदा उठाया व राव बाबर खाँ की क़यादत में बग़ावत को और सख़्त कर दिया। रंघड़ो का विद्रोह सबसे खतरनाक दो वजहों से रहा एक तो बड़ी तादाद में रांघड़ सैनिकों की रेजिमेंट का विद्रोहियों के साथ शामिल हो जाना और दूसरा उन्हें बशारत अली और बाबर खाँ जैसे अच्छे लीडर मिल जाना।
बशारत अली की क़यादत में रंघड़ो ने रोहतक का बड़ा हिस्सा अंग्रेज़ों से आज़ाद करा लिया, दिल्ली पंजाब जीटी रोड पर बढ़ने से रोकने लिए मेजर जनरल विल्सन ने लेफ्टिनेंट हडसन को 6 अँगरेज़ अधिकारियों और हथियारबंद 361 सिपाहियों के साथ रोहतक भेजा।
इस खबर के मिलते ही रिसालदार बशारत अली राव ने राँघड़ो के साथ खरखौदा के लंबरदार की हवेली में पोजीशन बना ली। और यहीं हडसन की फ़ौज से रांघड़ो का सामना हुआ।
ख़ुद हडसन का कहना है कि रांघड़ रिसालदार की क़यादत में बेमिसाल बहादुरी से लड़े (They fought like devil) लेकिन रिसालदार बशारत अली, अंग्रेजों के अच्छे हथियार और ज़्यादा तादाद में होने की वजह से अपने 25 साथियों के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए।
मुश्किल से हडसन ने ये लड़ाई ख़त्म ही की थी, उसे ख़बर मिली कि राव साबर खाँ की क़यादत में रांघड़ कभी भी हमला कर सकते हैं। हडसन इस ख़बर के मिलते ही राव साबर खाँ का सामना करने के लिए निकल पड़ा। तड़के ही लेफ्टिनेंट हडसन की सेना पर 300 रांघड़ घुड़सवार और 1,000 रांघड़ बाग़ी बिजली की तरह टूट पड़े। इस भीषण हमले के बाद हडसन और उसके बचे खुचे साथियों को जींद के राजा और जाटों की मदद से दिल्ली भगाना पड़ा।
प्रस्तुति : आमिर ख़ान मेव
Source: Haryana state Gazetteer
