गुलज़ार साहब ने लता मंगेशकर और आशा भोसले की तुलना के बारे में एक दिलचस्प बात कही है. वो कहते हैं, “मेरे लिए लता जी और आशा जी नील आर्मस्ट्रांग और एडविन आल्ड्रिन की तरह हैं, चाँद पर क़दम दो दोनों ने रखा है. यूं समझ लीजिये कि अगर लता जी “विंडो” सीट पर थीं. तो आशा उनके ठीक बग़ल में थीं”.
ये एक शानदार बात है.
आज आशा भोसले के जन्मदिन पर मैं “गुलज़ार और आशा भोसले” के कॉम्बिनेशन की बात कर रहा हूँ. गुलज़ार का लिखा और आशा भोसले का गाया पहला बड़ा गाना था फिल्म परिचय का--सारे के सारे गा मा को लेकर गाते चले”. इससे पहले 1968 में “आशीर्वाद” में “साफ़ करो इन्साफ करो” जैसा गाना आया था, पर वो उतना मशहूर नहीं हुआ. बहरहाल… आशीर्वाद का गाना गुलज़ार, पंचम और आशा भोसले की टोली का कमाल था. अदायगी कमाल की, “सरगम के साथी सरगम की धुन पे गाते चले”. इसके बाद आयी सोलो गाने की बारी. साल 1975. गुलज़ार निर्देशित फिल्म “खुशबू” में पंचम की धुन पर आशा जी ने गाया--
”घर जायेगी, तर जायेगी, डोलियां चढ़ जायेगी/
मेहदी लगाइके, काजल सजाइके रे
दुल्हनिया मर जायेगी”
आज से पचास बरस पहले आया ये अपनी ही तरह का अलग ही गाना है. अन्तरे की लाइनें लम्बी हैं और पंचम ने उन्हें बाहर खूबसूरती से धुन में ढाल दिया है. “खुशबू” के चार गानों में से दो आशा जी के हिस्से आये हैं. बाक़ी दो लता और किशोर के गाने हैं. “दो नैनों में आंसू भरे हैं” और “ओ मांझी रे”. कहना ना होगा कि आशा इन गानों की हक़दार थीं और उन्होंने क्या अद्भुत रंग दिया है दोनों गानों को. इस फिल्म का आशा का दूसरा गाना है, “बेचारा दिल क्या करे”. खूब शोख़ी से भरा गाना। फरीदा जलाल और हेमा मालिनी एक नदी के किनारे आयी हैं. हाथों में मटकी है.
“गाँव गाँव में घूमे रे जोगी
रोगी चंगे करे.
मेरे ही मन का ताप न जाने हाथ ना धरे”
इस गाने को आशा जी की आवाज़ के उजाले ने चमका दिया है.
इसके अगले बरस फिल्म “मौसम” में एक ही गाना था आशा का--”मेरे इश्क़ में लाखों लटके, बलम ज़रा हटके”. बाक़ी गाने भूपी और लता मंगेशकर की आवाज़ में हैं. ये गाना कभी ज़्यादा बजता भी नहीं है. 1976 में आयी अरुणा विकास की फिल्म “शक़”. संगीत वसंत देसाई का था. इस फिल्म में आशा के दो गाने थे. “मेहा बरसने लगा है आज की रात/आज की रात मेहा बरसने दो”... दादरा शैली के इस गीत को आशा ने बहुत गाढ़ी आवाज़ में गाया है. ये राग मल्हार पर आधारित गाना है. इस फिल्म का दूसरा गाना इसके ठीक उलट बिलकुल मॉडर्न है. कैबरे सॉन्ग, जिसे बिंदु पर फिल्माया गया है--”ये कहाँ आ गयी मैं”.
1978 में फिल्म “घर” में गुलज़ार के गीत है और संगीत था पंचम का. इस फिल्म में आशा का एक ही गाना था--”बोतल से एक बात चली है/काग उड़ा के रात चली है”...
1980 में आयी फिल्म “सितारा” के निर्देशक थे गुलज़ार साब के सहायक मेराज. इसमें आशा के चार गाने थे. पर हम सिर्फ एक गाने की बात करेंगे--जो मेरा सबसे पसंदीदा है.
ये साये हैं ये दुनिया है परछाइयों की
भरी भीड़ में खाली तन्हाइयों की
एक तो कमाल की लेखनी, क्या तो धुन और उस पर आशा की गायकी. चमकती दमकती दुनिया की हक़ीक़त बयां करता है ये गाना।
1980 में आयी फिल्म “खूबसूरत” में आशा भोसले के तीन गाने हैं. गुलज़ार, पंचम और आशा की टोली का कमाल हैं ये गाने। “सुन सुन सुन दीदी” तो जैसे हमारे घर-परिवारों में शरारत का गीत ही बन गया था.
“अच्छे घर का लड़का है पर हक हकलाता है
मुंह पर दाग हैं चेचक के और पान चबाता है
पान चबाता है जब थोड़ी पीकर आता है
पीता है जब जूए में वो हारके आता है”
एक शरारती छोटी बहन की शोखी को आशा जी ने इस गाने में शानदार तरीके से उतार दिया है”... और दीदियों को चिढ़ाने का एक ज़रिया भी दिया है. इस फिल्म का दूसरा गाना है-”सारे नियम तोड़ दो….” इंक़लाबी गाना है ये. और फिल्म का तीसरा गाना तो सबसे कमाल है--”पिया बावरी”...राग बिहाग पर आधारित गाना। ये कतई आसान गाना नहीं रहा होगा।
डार डार पिया फूलों की चादर बनी
फूलों की चादर रंगों की झालर बनी
भई बावरी, हुई बावरी
पिया बावरी।।
इसके बाद “थोड़ी सी बेवफाई” में आया “बरसे फुहार” जैसा नायाब गाना। इस बार संगीतकार थे खय्याम. सन 1981 में फिल्म “नरम गरम” आयी. जिसमें आशा जी ने गाया--हमें रास्तों की ज़रुरत नहीं है/ हमें तेरे पांवों के निशाँ मिल गए हैं”. इस धुन को आप कई गानों में सुन चुके हैं. बाहर कुछ लिखा जा चुका है इस दिन पर. इस फिल्म का एक और गाना मुझे बहुत पसंद है--
”मेरे चेहरे में छिपा है मेरी माँ का चेहरा
मेरी आँखों से मेरी माँ की महक आती है”
इस फिल्म में आशा का तीसरा गाना था--”मेरे अंगना आये रे घनश्याम”.
शास्त्रीय राग पर आधारित गीत.
1981 में आयी फिल्म “बसेरा” में फिर आशा का एक कमाल का शरारती गाना था--”आऊंगी एक दिन आज जाऊं”.. कभी भी इसे सुनिये, आप मुस्कुरा देंगे.
आशा और गुलज़ार के गानों की ऊँगली पकड़ कर अब हम आ गए हैं साल 1982 में. जब आयी फिल्म “अंगूर”. इस फिल्म में आशा के दो शानदार गाने आये. “होठों पे बीती बात आयी है/वादा निभाने की रात आयी है” और “रोज़ रोज़ डाली डाली”. दूसरा गाना फिर शास्त्रीय गीत है जिसे दीप्ति नवल पर फिल्माया गया है. और क्या गायकी है आशा जी की.
आशा गुलज़ार और पंचम की टीम लेकर आयी थी एक नॉन फिल्म एल्बम “दिल पडोसी है” . 1987 में आये इस अल्बम में सभी गाने आशा जी ने गाये।
भीनी भीनी भोर आयी.
जाने दो मुझे जाने दो
शाम से आँख में नमी सी है
कोई दिया जले कहीं
ए ज़िन्दगी
सातों बार बोले बंसी
रिश्ते बनते हैं
उम्मीद होगी कोई
जूठे तेरे नैन
रात क्रिसमस की थी
रात चुपचाप दबे पाँव
ये सही मायनों में एक दुर्लभ काम है। संगीत के दीवानों के लिए एक ज़रूरी तोहफ़ा।
अभी आशा और गुलज़ार के साथ आये गानों की दास्ताँ बाकी है.
जल्दी ही इस लेख का दूसरा भाग लिखता हूँ.
आशा ताई को जन्मदिन की शुभकामनाएं।।
ये एक शानदार बात है.
आज आशा भोसले के जन्मदिन पर मैं “गुलज़ार और आशा भोसले” के कॉम्बिनेशन की बात कर रहा हूँ. गुलज़ार का लिखा और आशा भोसले का गाया पहला बड़ा गाना था फिल्म परिचय का--सारे के सारे गा मा को लेकर गाते चले”. इससे पहले 1968 में “आशीर्वाद” में “साफ़ करो इन्साफ करो” जैसा गाना आया था, पर वो उतना मशहूर नहीं हुआ. बहरहाल… आशीर्वाद का गाना गुलज़ार, पंचम और आशा भोसले की टोली का कमाल था. अदायगी कमाल की, “सरगम के साथी सरगम की धुन पे गाते चले”. इसके बाद आयी सोलो गाने की बारी. साल 1975. गुलज़ार निर्देशित फिल्म “खुशबू” में पंचम की धुन पर आशा जी ने गाया--
”घर जायेगी, तर जायेगी, डोलियां चढ़ जायेगी/
मेहदी लगाइके, काजल सजाइके रे
दुल्हनिया मर जायेगी”
आज से पचास बरस पहले आया ये अपनी ही तरह का अलग ही गाना है. अन्तरे की लाइनें लम्बी हैं और पंचम ने उन्हें बाहर खूबसूरती से धुन में ढाल दिया है. “खुशबू” के चार गानों में से दो आशा जी के हिस्से आये हैं. बाक़ी दो लता और किशोर के गाने हैं. “दो नैनों में आंसू भरे हैं” और “ओ मांझी रे”. कहना ना होगा कि आशा इन गानों की हक़दार थीं और उन्होंने क्या अद्भुत रंग दिया है दोनों गानों को. इस फिल्म का आशा का दूसरा गाना है, “बेचारा दिल क्या करे”. खूब शोख़ी से भरा गाना। फरीदा जलाल और हेमा मालिनी एक नदी के किनारे आयी हैं. हाथों में मटकी है.
“गाँव गाँव में घूमे रे जोगी
रोगी चंगे करे.
मेरे ही मन का ताप न जाने हाथ ना धरे”
इस गाने को आशा जी की आवाज़ के उजाले ने चमका दिया है.
इसके अगले बरस फिल्म “मौसम” में एक ही गाना था आशा का--”मेरे इश्क़ में लाखों लटके, बलम ज़रा हटके”. बाक़ी गाने भूपी और लता मंगेशकर की आवाज़ में हैं. ये गाना कभी ज़्यादा बजता भी नहीं है. 1976 में आयी अरुणा विकास की फिल्म “शक़”. संगीत वसंत देसाई का था. इस फिल्म में आशा के दो गाने थे. “मेहा बरसने लगा है आज की रात/आज की रात मेहा बरसने दो”... दादरा शैली के इस गीत को आशा ने बहुत गाढ़ी आवाज़ में गाया है. ये राग मल्हार पर आधारित गाना है. इस फिल्म का दूसरा गाना इसके ठीक उलट बिलकुल मॉडर्न है. कैबरे सॉन्ग, जिसे बिंदु पर फिल्माया गया है--”ये कहाँ आ गयी मैं”.
1978 में फिल्म “घर” में गुलज़ार के गीत है और संगीत था पंचम का. इस फिल्म में आशा का एक ही गाना था--”बोतल से एक बात चली है/काग उड़ा के रात चली है”...
1980 में आयी फिल्म “सितारा” के निर्देशक थे गुलज़ार साब के सहायक मेराज. इसमें आशा के चार गाने थे. पर हम सिर्फ एक गाने की बात करेंगे--जो मेरा सबसे पसंदीदा है.
ये साये हैं ये दुनिया है परछाइयों की
भरी भीड़ में खाली तन्हाइयों की
एक तो कमाल की लेखनी, क्या तो धुन और उस पर आशा की गायकी. चमकती दमकती दुनिया की हक़ीक़त बयां करता है ये गाना।
1980 में आयी फिल्म “खूबसूरत” में आशा भोसले के तीन गाने हैं. गुलज़ार, पंचम और आशा की टोली का कमाल हैं ये गाने। “सुन सुन सुन दीदी” तो जैसे हमारे घर-परिवारों में शरारत का गीत ही बन गया था.
“अच्छे घर का लड़का है पर हक हकलाता है
मुंह पर दाग हैं चेचक के और पान चबाता है
पान चबाता है जब थोड़ी पीकर आता है
पीता है जब जूए में वो हारके आता है”
एक शरारती छोटी बहन की शोखी को आशा जी ने इस गाने में शानदार तरीके से उतार दिया है”... और दीदियों को चिढ़ाने का एक ज़रिया भी दिया है. इस फिल्म का दूसरा गाना है-”सारे नियम तोड़ दो….” इंक़लाबी गाना है ये. और फिल्म का तीसरा गाना तो सबसे कमाल है--”पिया बावरी”...राग बिहाग पर आधारित गाना। ये कतई आसान गाना नहीं रहा होगा।
डार डार पिया फूलों की चादर बनी
फूलों की चादर रंगों की झालर बनी
भई बावरी, हुई बावरी
पिया बावरी।।
इसके बाद “थोड़ी सी बेवफाई” में आया “बरसे फुहार” जैसा नायाब गाना। इस बार संगीतकार थे खय्याम. सन 1981 में फिल्म “नरम गरम” आयी. जिसमें आशा जी ने गाया--हमें रास्तों की ज़रुरत नहीं है/ हमें तेरे पांवों के निशाँ मिल गए हैं”. इस धुन को आप कई गानों में सुन चुके हैं. बाहर कुछ लिखा जा चुका है इस दिन पर. इस फिल्म का एक और गाना मुझे बहुत पसंद है--
”मेरे चेहरे में छिपा है मेरी माँ का चेहरा
मेरी आँखों से मेरी माँ की महक आती है”
इस फिल्म में आशा का तीसरा गाना था--”मेरे अंगना आये रे घनश्याम”.
शास्त्रीय राग पर आधारित गीत.
1981 में आयी फिल्म “बसेरा” में फिर आशा का एक कमाल का शरारती गाना था--”आऊंगी एक दिन आज जाऊं”.. कभी भी इसे सुनिये, आप मुस्कुरा देंगे.
आशा और गुलज़ार के गानों की ऊँगली पकड़ कर अब हम आ गए हैं साल 1982 में. जब आयी फिल्म “अंगूर”. इस फिल्म में आशा के दो शानदार गाने आये. “होठों पे बीती बात आयी है/वादा निभाने की रात आयी है” और “रोज़ रोज़ डाली डाली”. दूसरा गाना फिर शास्त्रीय गीत है जिसे दीप्ति नवल पर फिल्माया गया है. और क्या गायकी है आशा जी की.
आशा गुलज़ार और पंचम की टीम लेकर आयी थी एक नॉन फिल्म एल्बम “दिल पडोसी है” . 1987 में आये इस अल्बम में सभी गाने आशा जी ने गाये।
भीनी भीनी भोर आयी.
जाने दो मुझे जाने दो
शाम से आँख में नमी सी है
कोई दिया जले कहीं
ए ज़िन्दगी
सातों बार बोले बंसी
रिश्ते बनते हैं
उम्मीद होगी कोई
जूठे तेरे नैन
रात क्रिसमस की थी
रात चुपचाप दबे पाँव
ये सही मायनों में एक दुर्लभ काम है। संगीत के दीवानों के लिए एक ज़रूरी तोहफ़ा।
अभी आशा और गुलज़ार के साथ आये गानों की दास्ताँ बाकी है.
जल्दी ही इस लेख का दूसरा भाग लिखता हूँ.
आशा ताई को जन्मदिन की शुभकामनाएं।।
(लेखक विविध भारती के जाने माने उद्घोषक हैं)