ए एन खान
1674 में,
एंटॉन वन लियुवेनहोक ने एक माइक्रोस्क्रोप के जरिये जीवाणु देखा। 1865
में लुईस पैस्टर ने सूक्ष्मजीव विज्ञान का आधार रखा और सिद्ध किया कि अधिकांश संक्रामक रोग सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं। यह रोग के कीटाणु सिद्धांत के रूप में विख्यात हुआ। अलेकजंडर फ्लेमिंग ने 1928 में पेंसलीन का आविष्कार किया जो संक्रमण से पैदा होने वाले अनेक कीटाणुओँ को मार सकती थी। फ्लेमिंग के आविष्कार ने आगामी समय के दौरान लाखों लोगों के प्राण बचाये। इस औषधि के बिना दूसरे विश्व युद्ध के दौरान घावों के संक्रमण से अनेक सिपाही मर गये होते। पेंसलीन के आविष्कार के कारण स्ट्रेपटोमाइसिन जैसी अनेक एंटीबायोटिक औषद्धियों का आविष्कार हुआ। यह औषधि के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुआ। हम औषधीय उलब्धियों के युग में रहते हैं। उन परिस्थितियों का उपचार करने के लिए नयी आश्चर्यजनक औषधियां उपलब्ध हैं, जो कि कुछ दशक पहले घातक सिद्ध हुई होती। इस विश्व स्वास्थ्य दिवस (7अप्रैल, 2011) को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भावी पीढ़ियों के लिए इन औषधियों की सुरक्षा के लिए एक विश्व व्यापी अभियान चलायेगा। इस विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय है सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोध -(एंटीमाइक्रोबॉयल रजिस्टेन्स)। इसका नारा हैः आज कार्यवाही नहीं तो कल इलाज नहीं। सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोध सूक्ष्मजीव की एंटीमाइक्रोबॉयल औषधियां लेने पर जीवित रहने की योग्यता है। जिन इस योग्यता को एक सूक्ष्मजीव से दूसरे सूक्ष्मजीव में स्थानंतरित कर सकते हैं। सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोध और उसका विश्व में प्रसार आज प्रयोग में लाई जा रही अनेक औषधियों की प्रभावशीलता के लिए खतरा है। इसके साथ-साथ प्रमुख संक्रामक घातक बीमारियों के विरूद्ध किये जा रहे महत्वपूर्ण आविष्कारों के प्रति खतरा है। जब जीव अधिकांश एंटीमाइक्रोबॉयल के प्रति अवरोधक बन जाते हैं तो उन्हें अकसर सुपरबग के रूप में बताया जाता है।
पहले पहल सभी सूक्ष्मजीवों पर सल्फैनीलेमाइड का असर पड़ता था और यह आश्चर्यजनक औषधि समझी जाती थी। जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि कोई भी सूक्ष्मजीव जो अपने आप पैरा - एमीनोबेनजोइक एसिड (पीबीए) पैदा कर सकता है, वह विशाल प्रतिक्रिया के पुराने तरीके से सल्फेनीलेमाइड का स्थान ले सकता है और संशलेषण कर सकता है। बाद में सल्फेनीलेमाइड के काफी समय तक रहने के बाद कुछ सूक्ष्मजीव अपने अधःस्तर के रूप में इसके प्रयोग द्वारा रूपातांतरित हो गये और इसे मिश्रण से हटा सके। इसके परिणाम स्वरूप सल्फेनीलेमाइड ने अपना प्रभाव खो दिया।
लगभग इसी समय फफूंद से उत्पादित एंटीबायोटिक्स का आगमन हुआ। पेन्सिलीन अनेक रोगजनक बैक्टीरिया के प्रति अत्याधिक प्रभावशाली थीं। यह देखा गया कि पेन्सिलीन से गलुटामिक एसिड के प्रकोष्ठ में प्रवेश रोका जा सकता है। लेकिन वे वैक्टीरिया जो अपने गलुटामिक एसिड का संश्लेषण कर सकते थे, उन पर पेन्सिलीन का कोई असर नहीं पड़ता था। सल्फेनीलेमाइड की तरह बड़ी मात्रा में पेन्सिलीन की उपस्थिति से बैक्टीरिया की वृद्धि होती है। जो पेन्सिलीन को मिटाबोलाइज कर सकता है।
स्ट्रपटोमाइसिन पेन्सिलीन से भी अधिक कारगर थी। यह साइट्रिक एसिड चक्र में पाइरूवेट के प्रवेश को रोककर मूल पी एच मान के अधीन सर्वोत्तम परिणाम देता था। कमोवेश प्रभाव वाले अन्य एंटीबायोटिक्स भी हैं। एंटीबोयाटिक्स का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है कि बड़ी मात्रा में एंटीबोयोटिक्स को उपयोग में लाने से बेक्टीरिया उदीप्त होता है जो न केवल प्रतिरोधक है बल्कि अन्न के स्रोत के रूप में एंटीबायोटिक्स के प्रभाव को कम कर सकता है।
गत वर्ष, भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में प्रतिरोधक बैक्टीरिया के फैलने से नई दिल्ली मेटालो-बेटा-लेक्टामेज्स का एक स्वीडन के रोगी में पता चला जो नई दिल्ली से लौटा था। विशेषज्ञ इस तथ्य के बारे में चिन्तित थे कि एन्जाइम लोगों में सर्वाधिक सामान्य रूप से पाये जाने वाला एक बैक्टीरिया था और इस एन्जाइम वाली दस नस्लों में से कम से कम एक नस्ल सभी ज्ञात एंटीबोयोटिक्स की प्रतिरोधक प्रतीत हुई । एंटी बैक्टीरियाई औषधियों के अधिक प्रयोग, दुरूपयोग और कम प्रयोग से इन औषधियों की प्रतिरोधकता में वृद्धि हुई है। खाद्य उद्योग द्वारा एंटी बायोटिक्स के अधिक प्रयोग से प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीन की मौजूदगी बढ़ सकती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
इस समय यूरोपीय संघ में प्रतिवर्ष चार हजार प्रतिरोधी संक्रमण होने का अनुमान है, जिससे लगभग 25 हजार मृत्यु होती है। नये और प्रभावशाली एंटीबोयोटिक्स के बिना, लेकिन अधिक प्रतिरोधक शक्ति से समाज एंटीबोयोटिक से पूर्व के युग की स्थिति में लौट सकता है, जब फेंफड़ों में मामूली संक्रमण से या जब चिकित्सक मेनिनजाइटिस का इलाज नहीं कर सकते थे तो बच्चे की मृत्यु हो जाती थी। स्वास्थ्य के प्रति उभरते हुए इस खतरे का अन्य उदाहरण बहु-औषघि तपेदिक।
एंटीबोयोटिक के उपयोग और उपभोक्ता जानकारी के समन्वित अनुश्रवण और समुदायों तथा अस्पतालों में इसके उपयोग के नियमन से पता चलता है कि एंटीमाइक्रोबॉयल प्रतिरोधन पर नियंत्रण पाना संभव है। तथापि, सुनियमित प्रणालियों में भी, जैसी कि यूरोप में हैं, कुछ रोगाणुओं में प्रतिरोधन का बढ़ना निर्बाद्ध जारी है और पशुओं के खाद्य उत्पादन में एंटीबोयोटिक के प्रयोग में जो समस्याएं बनी हुई हैं उनसे प्रतिरोधक बैक्टीरिया और जीन की उपस्थिति बढ़ सकती है जोकि मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2001 में रोगी सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया था। इससे कुछ देशों में इस समस्या का निदान करने की शुरूआत हुई। सरकार के सामने एक चुनौती है कि एंटीबोयोटिक की बिक्री पर रोक लगाने वाले कानूनों को किस प्रकार लागू किया जाए। यह विशेष रूप से कम और मध्यम स्तर की आय वाले देशों में कठिन है जहां औषधियां बताने वाले चिकित्सक अकसर नहीं हैं। लेकिन लोगों को किसी न किसी तरीके से औषधियां प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। अफ्रीका, एशिया और लातीनी अमरीका में बच्चे निमोनिया. मेनिनजाइटिस अथवा रक्तवाहनियों के संक्रमण से प्रभावित होते हैं और उन्हें अकसर पुरानी दवाइयां दी जाती है जो प्रतिरोधक शक्ति न होने के कारण बेअसर होती हैं क्योंकि उनके पास उपचार का यही एक मात्र विकल्प होता है।