फ़िरदौस ख़ान
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव का मिज़ाज अलग है. यहां सियासी दल जनता को वोट के बदले क़ीमती वस्तुएं देने का लालच दे रहे हैं. जहां सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के प्रमुख और मुख्यमंत्री एम करुणानिधि जनता को करुणानिधि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए सस्ता अनाज, हर ग़रीब परिवार को मुफ़्त रंगीन टीवी, छात्रों को लैपटॉप, महिलाओं को मंगलसूत्र के लिए सोना देने और विकास के नाम पर समर्थन जुटाने की क़वायद में जुटे हैं, वहीं एआईएमडीएमके की महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने जनता को राशन कार्ड पर 20 किलो चावल म़ुफ्त, छात्रों को लैपटॉप, महिलाओं को पंखे, मिक्सर, ग्राइंडर एवं मिनरल वाटर आदि देने का ऐलान किया है. अगर यही सब चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब खुलेआम वोट ख़रीदे जाएंगे.

इसी देश में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भी हैं, जहां चुनाव मुद्दों और जातियों के नाम पर लड़े जाते हैं. बेशक ये राज्य तमिलनाडु से बेहतर हैं. तमिलनाडु की जनता मजबूर है, क्योंकि उसे भ्रष्टाचारियों में से ही किसी एक को चुनना है, इसके अलावा उसके पास कोई और विकल्प है ही नहीं. आख़िर चुनाव आयोग क्या कर रहा है, उसे तमिलनाडु में बह रही भ्रष्टाचार की गंगा क्यों दिखाई नहीं दे रही है. एक तरफ़ तमिलनाडु के नेता भ्रष्टाचार के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ख़ुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में जुटे हैं. एम करुणानिधि भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हैं. उनके क़रीबी नेता ए राजा 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की भेंट चढ़कर जेल पहुंच गए हैं. राजा की मेहरबानी हासिल करने वाले स्वान टेलीकॉम के मालिक एवं डीबी रिएलिटी के प्रबंध निदेशक शाहिद उस्मान बलवा को भी सीबीआई गिरफ़्तार कर चुकी है. बलवा की डीबी रिएलिटी कंपनी द्वारा तमिल चैनल कलैगनार टीवी को 200 करोड़ रुपये जारी किए जाने के मामले की सीबीआई जांच कर रही है और इसी सिलसिले में कनिमोझी से पूछताछ की गई. बताया जाता है कि कलैगनार टीवी में करुणानिधि की बड़ी हिस्सेदारी है, जबकि कनिमोझी की हिस्सेदारी 20 फ़ीसद है. उनके बेटे एम के स्टालिन और एम के अलागिरी आपस में लड़ रहे हैं. जयललिता द्रमुक के परिवारवाद, भ्रष्टाचार और महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाते हुए मज़बूत सरकार देने का वादा कर रही हैं. जयललिता यह मानकर चल रही हैं कि वाममोर्चे से लेकर एमडीएमके और विजयकांत के मज़बूत गठबंधन को चुनाव में कामयाबी मिलेगी. ए राजा की गिरफ़्तारी से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को बल मिला है. हालांकि जयललिता पर भी भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं, जिनमें करोड़ों रुपये के कलर टीवी स्कैम, तांसी ज़मीन घोटाला और आमदनी से ज़्यादा जायदाद के मामले शामिल हैं.

तमिलनाडु में एम करुणानिधि के नेतृत्व में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन, जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक -एमडीएमके- डीएमडीके गठबंधन और डॉ. रामदौस की अगुवाई में पट्टाली मक्कल काचि और भारतीय जनता पार्टी आदि चुनाव मैदान में हैं. सियासी दल नाराज़ पार्टियों को मनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम से अलग हुए मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कषगम को लुभाने की ख़ातिर एम करुणानिधि ने अपनी अगुवाई वाले गठबंधन को विजयी बनाने के लिए सभी द्रविड़ दलों से एक मंच पर आने की अपील की है. एमडीएमके नेता वाइको के अन्ना द्रमुक से अलग होने के ऐलान के बाद उनके लिट्टे के प्रति झुकाव की तरफ़ इशारा करते हुए करुणानिधि ने कहा कि हमें टाइगर्स का स्वागत करना चाहिए. एमडीएमके विधानसभा की 234 में से 35 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, जिसे घटाकर 30 कर दिया गया. इसके बाद एआईएमडीएमके ने इसमें और कटौती करते हुए इसे छह सीटों तक समेट दिया. विरोध करने पर यह सीटें बढ़ाकर नौ कर दी गईं. एमडीएमके ने अब 35 के बजाय 21 सीटें मांगी, लेकिन जयललिता नहीं मानीं. आख़िरकार वाइको ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया. पिछले चुनाव में करुणानिधि ने दो वादे किए थे, पहला दो रुपये किलो चावल और ऐसे हर घर को एक मुफ्त रंगीन टेलीविज़न देना, जिसके पास नहीं है. इन वादों ने असर दिखाया और करुणानिधि को कामयाबी मिली. करुणानिधि ने 50 और 60 के दशक में तमिल आंदोलनों का नेतृत्व किया और आपातकाल के दौरान जेल भी गए. उन्हें सिद्धांतवादी नेता के रूप में जाना जाता था, लेकिन अपनी संतानों के मोह में पड़कर उन्होंने तमाम आदर्शों को ता़ख पर रख दिया. द्रमुक के मंत्रियों को मलाईदार महकमे दिलाने के लिए केंद्र को समर्थन वापसी की धमकी देने और दूरसंचार मंत्रालय अपनी पार्टी के पास रखने की उनकी ज़िद ने उनके लालच को जगज़ाहिर कर दिया. सीटों को लेकर द्रमुक और कांग्रेस भी आमने-सामने आ गई थीं. यहां तक कि द्रमुक ने यूपीए सरकार से अपने मंत्रियों को हटाने तक का फ़ैसला कर लिया था. द्रमुक कांग्रेस को 60 सीटें देना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस को ज़्यादा सीटें चाहिए थीं. आख़िर द्रमुक को कांग्रेस को 63 सीटें देनी पड़ीं. दरअसल कांग्रेस तमिलनाडु में अपना प्रभाव ब़ढाना चाहती है.

पिछले दिनों राहुल गांधी ने राज्य में कई दौरे किए और कार्यकर्ताओं से ताक़त बढ़ाने को कहा था. पिछले डेढ़ दशक में कांग्रेस ने कभी इतनी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा. वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अन्ना द्रमुक के साथ गठबंधन करके 64 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव में इस गठबंधन को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. हालांकि इसके बाद कांग्रेस राज्य में तीसरे दर्जे की पार्टी बन गई, लेकिन वह अपने दम पर चुनाव लड़ने की हालत में नहीं है. द्रमुक सीटों के बंटवारे को लेकर नहीं, बल्कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच को लेकर यूपीए से ख़फ़ा थी. वह सरकार और कांग्रेस पर दबाव बनाना चाहती थी, लेकिन बाज़ी पलट गई. सोनिया गांधी के सख्त रुख़ के सामने द्रमुक की एक न चली. उसकी समझ में आ गया कि कांग्रेस को उसकी उतनी ज़रूरत नहीं, जितनी उसे कांग्रेस की है. तमिलनाडु में द्रमुक का सब कुछ दांव पर लगा है, जबकि कांग्रेस के पास उसका विकल्प मौजूद है. द्रमुक की सियासी दुश्मन जयललिता कांग्रेस से कह चुकी हैं कि वह द्रमुक के 18 सांसदों की फ़िक्र न करे, क्योंकि सरकार बचाने के लिए सांसद जुटाने की ज़िम्मेदारी उनकी है. मगर कांग्रेस शायद ही जयललिता पर भरोसा करे. जयललिता 1991 में कांग्रेस के साथ थीं. वर्ष 1998 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चाय पार्टी दी और भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया. उन्होंने 2001 में सत्ता हासिल की और भाजपा से नज़दीकियां भी क़ायम रखीं. उन्होंने कांग्रेस और सोनिया पर शब्द बाण चलाने शुरू कर दिए. उन्होंने यहां तक कह दिया कि जिस दिन सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनेंगी, वह दिन देश के लिए बहुत बुरा होगा. मगर सियासत में कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जाए. तमिलनाडु की सियासत में एक बार द्रमुक तो दूसरी बार अन्ना द्रमुक का शासन रहा है. द्रमुक ने कांग्रेस के समर्थन से लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की है.


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