एस. के. बसु     
अपनी मजबूत निर्यात कमाई, रोजगार सृजन और वृद्धि के संदर्भ में भारतीय चमड़ा उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान रखता है। यह क्षेत्र उच्च निर्यात कमाई में अपनी निरंतरशीलता  के लिए जाना जाता है और इसकी कमाई देश के शीर्ष दस विदेशी विनिमयों में से एक है। 11 वीं योजना में 2011-12 तक इस उद्योग के कुल कारोबार को वर्तमान के लगभग सात बिलियन अमेरिकी डॉलर से 13.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। 1970 में परंपरागत, ग्रामीण और कलाकार आधारित अंतरस्थ देखते हुए उद्योग से लेकर इस दशक में आधुनिक, प्रगतिशील और बाह्यस्थ देखते उद्योग के रूप में  पिछले चार दशकों में भारतीय चमड़ा क्षेत्र ने एक प्रभावशाली वृद्धि दर्शायी है। व्यावहारिक सरकारी नीतियों के साथ निजी क्षेत्र द्वारा प्रदर्शित साहसिक उद्यमशीलता ने इस उद्योग को मौजूदा दर्जा दिलाया है।

      विश्व के 21 प्रतिशत गाय-बैलों और भैंसों तथा विश्व की 11 प्रतिशत बकरियों और भेड़ों के साथ  भारत के पास विश्व में सर्वाधिक मवेशियों की संख्या है। इसके साथ हीकुशल मानवशक्ति की ताकत, नवीन प्रौद्योगिकी की शक्ति, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों के प्रति उद्योग अनुपालन में वृद्धि और संबद्ध उद्योगों का समर्पित समर्थन इससे जुड़ा है।


      चमड़ा उद्योग रोज़गार गहन क्षेत्र है, जो कि 2.5 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है इनमें से अधिकांश लोग समाज के कमज़ोर तबके से संबंध रखते हैं।  लगभग तीस प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चमडा उत्पाद क्षेत्र महिला रोजगार का काफी प्रबल साधन है। हालांकि भारत विश्व में फुटवियर और चमड़े के वस्त्रों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है लेकिन 115.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2009) के साथ भारत वैश्विक चमड़ा निर्यात व्यापार में तीन प्रतिशत के आसपास की हिस्सेदारी रखता है।

भारतीय चमडा उद्योग की शक्ति

·         कच्चे माल का अपना स्रोत होना- सालाना 2 अरब वर्ग फीट तैयार चमडे का उत्पादन।
·         भारत में उपलब्ध बकरियों/बछडों/भेडों की कुछ प्रजातियों के चमडे गुणवत्ता में विशिष्ट हैं।
·         मजबूत और पर्यावरण सतत उत्पादन आधार।
·         आधुनिक विनिर्माण इकाइयां
·         प्रतिस्पर्धी वेतन स्तरों पर प्रशिक्षित/कुशल मानवशक्ति     
·         डिजायन और उत्पाद विकास, मानव संसाधन और अनुसंधान एवं विकास के लिए विश्व स्तरीय सांस्थानिक समर्थन।
·         सहायक उद्योगों जैसे चमडा रसायन और समापन सहायक के साथ ही मशीनरीयों का समर्थन।
·         विश्व भर के प्रमुख बाजारों में उपस्थिति।  
   सूक्ष्म लघु और मझौले उद्योग के मंत्रालय (एमएसएमई) द्वारा किए गए चौथे अखिल भारतीय सूक्ष्म लघु और मझौले उद्योग के त्वरित सर्वेक्षण (2006-07) के अनुसार इस क्षेत्र में देश में 26,741 पंजीकृत सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमी और 62,574अपंजीकृत  सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमी हैं।

चमड़ा उत्पाद विभाग
चमडा शोधन क्षेत्र- दो अरब वर्ग फीट वार्षिक उत्पादन यह विश्व के दस प्रतिशत चमडे की मांग की पूर्ति करता है। मोडयूरोप कांग्रेस में लगातार भारतीय रंगों का चयन होता है।फुटवियर क्षेत्र- चीन के बाद फुटवियर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक। 2065 मिलियन जो़ड़ों का वार्षिक उत्पादन। घरेलू बाजार में लगभग 1950 मिलियन जोडों (95 प्रतिशत) की बिक्री होती है। भारतीय चमड़े और चमड़े के उत्पादों के निर्यात में फुटवियर निर्यात की हिस्सेदारी44.32 प्रतिशत की है। फुटवियर उत्पादों में पुरुषों के 54 प्रतिशत, महिलाओं के 37 प्रतिशत और बच्चों के 9 प्रतिशत फुटवियर का सम्मिश्रण है।चमड़ा परिधान क्षेत्र- 16 मिलियन टुकड़ों की वार्षिक उत्पादन क्षमता के साथ दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक। चौथा सबसे बड़ा वैश्विक निर्यातक। भारत के कुल चमड़े और चमड़े के उत्पादों के निर्यात के 12.60 प्रतिशत का हिस्सा रखता है।चमड़े की वस्तुएं और सहायक उपकरण क्षेत्रपांचवा सबसे बड़ा वैश्विक निर्यातक। वार्षिक उत्पादन क्षमता-63 मिलियन चमड़े की वस्तुओं के टुकड़े। औद्योगिक दस्तानों के 52 मिलियन  जोड़े और घोड़ों के जीन और काठी के 12.50 मिलियन टुकड़े। भारत के कुल चमड़े और चमड़े के उत्पादों के निर्यात के 24.68 प्रतिशत हिस्से की हिस्सेदारी।

·         चमड़े और चमड़े के उत्पादों के प्रमुख संकुल       उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब और राजस्थान भारत में चमडे और चमड़ो के उत्पादों के प्रमुख संकुल हैं। इनके अलावा, आंध्र प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश और बिहार राज्यों में कुछ छोटे संकुल हैं।
·         चेन्नई संकुल- चेन्नई संकुल में पल्लवरन, क्रोमोपेट वंदलुर और माधवारम में स्थित चर्म शोधन और उत्पाद विनिर्माण इकाईयां हैं। इन संकुलों में निर्मित चमडा उत्पादों में तैयार चमड़ा, चमडा फुटवियर, फुटवियर घटक, चमड़ा परिधान और चमडे के दस्ताने शामिल हैं। इसके अलावा तमिलनाडु में अंबूर, वेल्लोर, रानीपेट, दिगुल और इरोड में संकुल हैं।
·         आगरा संकुल –आगरा संकुल में निर्मित मुख्य उत्पाद फुटवियर है।आगरा फुटवियर उद्योगमें लगभग 5000 इकाइयां हैं जिनमें से लगभग 60 इकाइयां  पूरी तरह से  मशीनीकृत हैं, 150 इकाइयां अर्द्ध मशीनीकृत और शेष कुटीर और घरेलू श्रेणी के तहत हैं। आगरा फुटवियरउद्योग के पास प्रतिदिन लगभग 2,50,000 - 3,00,000 जूतों के जोड़े (सभी प्रकार) केउत्पादन की स्थापित क्षमता है। आगरा की कुल जनसंख्या का लगभग 35% जूता व्यापारउद्योग पर निर्भर(प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से)  है जो लगभग छह लाख लोगों को रोजगार प्रदानकरता है ।
·          कानपुर संकुल – कानपुर संकुल भारत में तैयार चमड़ों के अलावा घोड़े के जीन और काठी की वस्तुओं और सुरक्षा जूते बनाने का एक प्रमुख केन्द्र है। कानपुर शहर काजजमऊ  क्षेत्र चमड़ा और चमड़े के उत्पाद विनिर्माण और निर्यात संकुल के एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। इस संकुल में निर्मित प्रमुख चमड़ा उत्पादों में तैयार चमड़ा, चमड़े के फुटवियर, बूट के ऊपरी हिस्से और घोड़े के जीन और काठी के सामान हैं।
·         · कोलकाता संकुल - पश्चिम बंगाल में चमड़ा उद्योग मुख्य रूप से कोलकाता में और इसके आसपास केंद्रित है. कोलकाता संकुल की मुख्य शक्ति चमड़े की वस्तुओं  हैं जिसमें हाथ केबैग, बटुए, पर्स, पाउच, फैशन दस्ताने, औद्योगिक दस्ताने, यात्रा और सामान बैग और सभीअन्य छोटे चमड़े के सामान शामिल हैं। कोलकाता में चमड़े की वस्तुओं के क्षेत्र में कुलनिर्यात का 60% भाग है। चमड़े की वस्तुओं के अलावा क्रोम चर्म शोधन के द्वारा तैयार चमडा और चप्पलों तथा सैंडिलों का भी बड़ी मात्रा में निर्माण होता है।
·          मुंबई संकुल - अंधेरी (पूर्व), कोल्हापुर, और भिवंडी के रूप में महाराष्ट्र  में लगभग तीन बड़े चमड़े के संकुल हैं । अंधेरी (पूर्व) जहां बहुत सारी संगठित लघु एसएसआई इकाइयां हैं यह चमड़े के जूते, महिलाओं की  सैंडिल और चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न हैं।कोल्हापुर कोल्हापुरी चप्पलों के लिए प्रसिद्ध है।
·          दिल्ली संकुल – देश में चमड़े के परिधानों के निर्यात का 50% से भी अधिक दिल्ली मेंउत्पादित किया जाता है। इसी तरह भारत के गैर-चमड़े के फुटवियर के कुल उत्पादन के  55% से अधिक का निर्माण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी किया जाता है। इसकेअलावा, चमड़े के जूते, चमड़े के सामान भी इस संकुल में निर्मित किए जाते हैं।

चमड़ा क्षेत्र के लाभ के लिए एमएसएमई द्वारा कार्यान्वित योजनाएं
तकनीकी परामर्श और प्रशिक्षण कार्यक्रम – अपने क्षेत्र कार्यालयों यानी एमएसएमई-डीआईएस के ज़रिए तकनीकी परामर्शी सेवाएं प्रदान करना और देश के विभिन्न स्थानों में चमड़े और चमड़ा उत्पादन क्षेत्र  से संबंधित उत्पाद उन्मुख उद्यमिता विकास कार्यक्रम का आयोजन करना। इसके अलावा, जिला आयुक्त कार्यालय(एमएसएमई) के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आगरा और चेन्नई में दो केन्द्रीय फुटवियर प्रशिक्षण संस्थान (सीएफटीआई) स्वायत्त संस्थानों के रूप में कार्यरत हैं। दोनों सीएफटीआई  राज्यों की अत्याधुनिक मशीनरी और जूतों के डिजाइन के उपकरणों, निर्माण और शिक्षण सुविधाओं के साथ परिपूर्ण हैं। दोनों संस्थान जूतों के डिजाइन और विनिर्माण पर विभिन्न दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों, का आयोजन करते हैं।  इसमें से जूते डिजाइन और उत्पादन में दो वर्षीय डिप्लोमा को अंतर्राष्ट्रीय वस्त्र संस्थान, ब्रिटेन द्वारा मान्यता प्राप्त है। दोनों संस्थान फुटवियर उद्योग को ड़िजायन के विकास, ढांचे को काटने और श्रेणीकरण तथा आम सुविधा सेवाओं के लिए सहायता भी प्रदान करते हैं। इन संस्थानों से सफल होकर निकले  प्रशिक्षु देश में विभिन्न स्तरों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं या इन्होंने अपने स्वयं के उद्यमों को शुरू किया है। संकुल विकास - सूक्ष्म और लघु उद्यम संकुल विकास कार्यक्रम के तहत विकास के लिए बीस चमड़ा और चमड़े के उत्पाद संकुलों की पहचान की गई है।

       प्रौद्योगिकी उन्नयन - राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता कार्यक्रम (एनएमसीपी) के कुछ घटक जैसे डिज़ाइन क्लिनिक, एक ओर प्रवृत्त विनिर्माण, विपणन सहायता आदि चमड़े के क्षेत्र के लिए प्रासंगिक हैं। ऋण संबद्ध पूंजी सहायता योजना (सीएलसीएसएस) के तहत चमड़ा और चमड़े के उत्पादों के क्षेत्र में अच्छी तरह से स्थापित और बेहतर प्रौद्योगिकी की शुरुआत  पर एमएसई को 15 प्रतिशत की पूंजी सहायता (15 लाख रुपयों तक सीमित) प्रदान की जाती है। वर्तमान में, 196 मशीनरी / उपकरणों को  सीएलसीएसएस  के तहत सब्सिडी सहायता प्राप्त करने के लिए मंजूरी दी गई है।

(लेखक निदेशक (चम़डा), विकास आयुक्त कार्यालय सूक्ष्म लघु और मझौले उद्योग का मंत्रालय, नई दिल्ली 
 हैं) 


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