अंबरीश कुमार
लखनऊ (उत्तर प्रदेश). उत्तर प्रदेश में दागी और बागी उम्मीदवार मायावती के गले की हड्डी बन गए है। सूबे के दर्जनों जिलों में टिकट को लेकर हो रही बगावत से सत्तारूढ़ दल के रणनीतिकारों के हाथ पांव फूल गए है। पूरब से लेकर पश्चिम तक बहुजन समाज पार्टी बागियों से जूझ रही है। कानपुर, बहराइच, बरेली, जौनपुर, हरदोई, महोबा, उरई, गोंडा, श्रावस्ती, महाराजगंज जैसे कई जिलों में बसपा का अंदरूनी विवाद सड़क पर आ चुका है। दूसरी तरफ बसपा के दागी उम्मीदवारों में शामिल मायावती ने सौ से ज्यादा सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर दूसरों को दिए है, जिससे पार्टी को अपने ही नेताओं से जूझना पड़ रहा है। इनमे कई के टिकट पहले तो कई के अंतिम दौर में काटे गए है। टिकट काटने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने दावा किया कि जो दागी थे उनके टिकट काटे गए पर सही बात तो यह है बसपा से जहाँ बिना दाग वाले उम्मीदवार मैदान में है तो बहुत से दाग वाले भी है। दूसरे कई जिलों में बसपा के विधायक और मंत्रियों ने लूट, खसोट, हत्या और बलात्कार के रिकार्ड कायम किए है, वहां के लोग इस पार्टी के बिना दाग वाले उम्मीदवारों को भी बख्श देने को तैयार नहीं है। यह बसपा के लिए बड़ा संकट है और मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पर यह भारी पड़ने वाले है। इनमे कई सजायाफ्ता है तो कई सजा के इंतजार में, तो कई जांच के घेरें में। शेखर तिवारी और पूर्व मंत्री आनंद सेन सजा पा चुके है। इनके चलते पार्टी को उनके इलाके में जो शोहरत मिल चुकी है उसकी भरपाई भी इसी चुनाव में होनी है। इसलिए बसपा के हाथी का रास्ता इस बार आसान नहीं है जो पिछली बार चढ़ गुंडों की छाती पर -मुहर लागों हाथी पर के नारे के साथ सत्ता में आई और सूबे के सभी छंटे हुए बदमाशों और बाहुबलियों को हाथी पर सवार करा दिया।
अब मायावती के दागी उम्मीदवारों का जायजा ले लें। बुलंदशहर के हाजी आलिम बलात्कार के मामले में नाम कम चुके है और पुलिस के रिकार्ड में फरार है। प्रतापगढ़ के मनोज तिवारी हत्या के अभियुक्त है और उनके खिलाफ भी गैर जमानती वारंट है। मुजफ्फरनगर ने नूर सलीम राणा भी हत्या के अभियुक्त है और वे भी मैदान में है। सुल्तानपुर के मोहम्मद ताहिर का भी पुराना आपराधिक रिकार्ड है। गोसाईगंज के इन्द्र प्रताप तिवारी उर्फ़ खब्बू तिवारी भी आपराधिक रिकार्ड वले है और मैदान में है। उतरौला के के धीरेन्द्र प्रताप और कर्नलगंज के अजय प्रताप भी इसी श्रेणी के उम्मीदवार है। यह बानगी है, बसपा के बचे खुचे दागी उम्मीदवारों की संख्या कम नहीं है। इसलिए यह कहना कि मायावती ने सिर्फ बेदाग़ लोगों को मैदान में उतरा है मुगालता है। रंगनाथ मिश्र जैसे कई मशहूर नेताओं का तो अभी भी नहीं लिया गया है। ऐसे उम्मीदवार किसी सोशल इंजीनियरिंग के बूते चुनाव जीत जाएंगे, यह ग़लतफ़हमी पार्टी के लोगों को ही हो सकती है बाकी को नहीं। इसके अलावा जो जातियों के नेता बाहर गए है उनकी बिरादरी भी बसपा के खिलाफ वोट कर सकती है, इसे जरुर ध्यान रखना चाहिए। कुशवाहा उदाहरण है।
राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -जनता की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं होती है कि सब भूल जाए। यह भूल जाए कि मुख्यमंत्री के जन्मदिन का चंदा न देने पर किस तरह एक इंजीनियर को तडपा तडपा कर मार दिया गया। किस तरह सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने मासूम लड़कियों की इज्जत लूटी और थाने में बलात्कार हुआ। किस तरह हजारों करोड़ के घोटाले में दो दो सीएमओ दिन दहाड़े मार डाले गए। और लोगों को यह भी याद है कि मायावती ने बाहुबली मुख़्तार अंसारी का चुनाव प्रचार करते हुए कहा था - यह मजलूमों के मसीहा है। आम लोग मुलायम से नाराज हुए तो मीडिया के चाहने के बावजूद उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। अब मायावती की बारी है।
उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के मामले में मुलायम सिंह यादव भी बहुत मजबूत माने जाते थे, पर जब छवि पर बट्टा लगा तो अहिरों के गढ़ इटावा से लेकर फिरोजाबाद तक हारे। अपने गढ़ में मुलायम सिंह ने अपने पुत्र की सीट से बहू डिम्पल यादव को मैदान में उतारा था और जीत गए राजबब्बर। इसलिए जातियों की सोशल इंजीनियरिंग भी तभी मदद करेगी जब माहौल हो। जिलों से बसपा संगठन में जिस तरह सिर फुटव्वल की खबरे आ रही है वे पार्टी के लिए गंभीर है।
कानपुर के महाराजपुर विधान सभा सीट से पहले अजय प्रताप सिंह को टिकट दिया गया बाद में उसे काटकर एनआरएचएम घोटाले वाले मंत्री अंतू मिश्र की पत्नी शिखा मिश्र को दे दिया गया। सीसामऊ से फहीम अहमद का टिकट काटकर हाजी वसीक अहमद को दे दिया गया ।बहराइच में बार बार उम्मीदवार का नाम बदलने से दर्जनों कार्यकर्त्ता नेता पार्टी छोड़ चुके है। ऎसी ही खबरे गोंडा, बरेली, महाराजगंज, महोबा उरई जैसे कई जिलों से आ रही है। कई जगह जहाँ असरदार मंत्री पार्टी से बाहर हुए है वे समूची इकाई भी साथ ले गए है। यही वजह है क्योकि पार्टी दागी के साथ बागी उम्मीदवारों से भी जूझ रही है।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)
लखनऊ (उत्तर प्रदेश). उत्तर प्रदेश में दागी और बागी उम्मीदवार मायावती के गले की हड्डी बन गए है। सूबे के दर्जनों जिलों में टिकट को लेकर हो रही बगावत से सत्तारूढ़ दल के रणनीतिकारों के हाथ पांव फूल गए है। पूरब से लेकर पश्चिम तक बहुजन समाज पार्टी बागियों से जूझ रही है। कानपुर, बहराइच, बरेली, जौनपुर, हरदोई, महोबा, उरई, गोंडा, श्रावस्ती, महाराजगंज जैसे कई जिलों में बसपा का अंदरूनी विवाद सड़क पर आ चुका है। दूसरी तरफ बसपा के दागी उम्मीदवारों में शामिल मायावती ने सौ से ज्यादा सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर दूसरों को दिए है, जिससे पार्टी को अपने ही नेताओं से जूझना पड़ रहा है। इनमे कई के टिकट पहले तो कई के अंतिम दौर में काटे गए है। टिकट काटने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने दावा किया कि जो दागी थे उनके टिकट काटे गए पर सही बात तो यह है बसपा से जहाँ बिना दाग वाले उम्मीदवार मैदान में है तो बहुत से दाग वाले भी है। दूसरे कई जिलों में बसपा के विधायक और मंत्रियों ने लूट, खसोट, हत्या और बलात्कार के रिकार्ड कायम किए है, वहां के लोग इस पार्टी के बिना दाग वाले उम्मीदवारों को भी बख्श देने को तैयार नहीं है। यह बसपा के लिए बड़ा संकट है और मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पर यह भारी पड़ने वाले है। इनमे कई सजायाफ्ता है तो कई सजा के इंतजार में, तो कई जांच के घेरें में। शेखर तिवारी और पूर्व मंत्री आनंद सेन सजा पा चुके है। इनके चलते पार्टी को उनके इलाके में जो शोहरत मिल चुकी है उसकी भरपाई भी इसी चुनाव में होनी है। इसलिए बसपा के हाथी का रास्ता इस बार आसान नहीं है जो पिछली बार चढ़ गुंडों की छाती पर -मुहर लागों हाथी पर के नारे के साथ सत्ता में आई और सूबे के सभी छंटे हुए बदमाशों और बाहुबलियों को हाथी पर सवार करा दिया।
अब मायावती के दागी उम्मीदवारों का जायजा ले लें। बुलंदशहर के हाजी आलिम बलात्कार के मामले में नाम कम चुके है और पुलिस के रिकार्ड में फरार है। प्रतापगढ़ के मनोज तिवारी हत्या के अभियुक्त है और उनके खिलाफ भी गैर जमानती वारंट है। मुजफ्फरनगर ने नूर सलीम राणा भी हत्या के अभियुक्त है और वे भी मैदान में है। सुल्तानपुर के मोहम्मद ताहिर का भी पुराना आपराधिक रिकार्ड है। गोसाईगंज के इन्द्र प्रताप तिवारी उर्फ़ खब्बू तिवारी भी आपराधिक रिकार्ड वले है और मैदान में है। उतरौला के के धीरेन्द्र प्रताप और कर्नलगंज के अजय प्रताप भी इसी श्रेणी के उम्मीदवार है। यह बानगी है, बसपा के बचे खुचे दागी उम्मीदवारों की संख्या कम नहीं है। इसलिए यह कहना कि मायावती ने सिर्फ बेदाग़ लोगों को मैदान में उतरा है मुगालता है। रंगनाथ मिश्र जैसे कई मशहूर नेताओं का तो अभी भी नहीं लिया गया है। ऐसे उम्मीदवार किसी सोशल इंजीनियरिंग के बूते चुनाव जीत जाएंगे, यह ग़लतफ़हमी पार्टी के लोगों को ही हो सकती है बाकी को नहीं। इसके अलावा जो जातियों के नेता बाहर गए है उनकी बिरादरी भी बसपा के खिलाफ वोट कर सकती है, इसे जरुर ध्यान रखना चाहिए। कुशवाहा उदाहरण है।
राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -जनता की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं होती है कि सब भूल जाए। यह भूल जाए कि मुख्यमंत्री के जन्मदिन का चंदा न देने पर किस तरह एक इंजीनियर को तडपा तडपा कर मार दिया गया। किस तरह सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने मासूम लड़कियों की इज्जत लूटी और थाने में बलात्कार हुआ। किस तरह हजारों करोड़ के घोटाले में दो दो सीएमओ दिन दहाड़े मार डाले गए। और लोगों को यह भी याद है कि मायावती ने बाहुबली मुख़्तार अंसारी का चुनाव प्रचार करते हुए कहा था - यह मजलूमों के मसीहा है। आम लोग मुलायम से नाराज हुए तो मीडिया के चाहने के बावजूद उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। अब मायावती की बारी है।
उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के मामले में मुलायम सिंह यादव भी बहुत मजबूत माने जाते थे, पर जब छवि पर बट्टा लगा तो अहिरों के गढ़ इटावा से लेकर फिरोजाबाद तक हारे। अपने गढ़ में मुलायम सिंह ने अपने पुत्र की सीट से बहू डिम्पल यादव को मैदान में उतारा था और जीत गए राजबब्बर। इसलिए जातियों की सोशल इंजीनियरिंग भी तभी मदद करेगी जब माहौल हो। जिलों से बसपा संगठन में जिस तरह सिर फुटव्वल की खबरे आ रही है वे पार्टी के लिए गंभीर है।
कानपुर के महाराजपुर विधान सभा सीट से पहले अजय प्रताप सिंह को टिकट दिया गया बाद में उसे काटकर एनआरएचएम घोटाले वाले मंत्री अंतू मिश्र की पत्नी शिखा मिश्र को दे दिया गया। सीसामऊ से फहीम अहमद का टिकट काटकर हाजी वसीक अहमद को दे दिया गया ।बहराइच में बार बार उम्मीदवार का नाम बदलने से दर्जनों कार्यकर्त्ता नेता पार्टी छोड़ चुके है। ऎसी ही खबरे गोंडा, बरेली, महाराजगंज, महोबा उरई जैसे कई जिलों से आ रही है। कई जगह जहाँ असरदार मंत्री पार्टी से बाहर हुए है वे समूची इकाई भी साथ ले गए है। यही वजह है क्योकि पार्टी दागी के साथ बागी उम्मीदवारों से भी जूझ रही है।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)