डॉ. के. आर. थंकप्पन और पी. श्रीदेवी
भारत में अनुमानतः लगभग 275 मिलियन (35 मिलियन) लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। यहां लगभग आधे पुरुष (48 प्रतिशत) और महिला आबादी का एक बटा पांच भाग किसी न किसी रुप में तंबाकू का सेवन करता है। मृत्यु के पांच प्रमुख खतरों में से एक तंबाकू, एकमात्र ऐसा कारक है जिससे बचकर मृत्यु पर काबू पाया जा सकता है। जब धूम्रपान करने वाला व्यक्ति अपने घर में धूम्रपान करता है तो घर के अन्य सदस्यों पर परोक्ष रुप से धूम्रपान संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
केरल में तंबाकू सेवन
वैश्विक व्यस्क तंबाकू सर्वेक्षण 2010, की रिपोर्ट के मुताबिक केरल की व्यस्क जनसंख्या में से 35.5 प्रतिशत पुरुष और 8.5 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रुप में तंबाकू का सेवन करते हैं। हालांकि तंबाकू का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम है लेकिन घर में धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के कारण महिलाओं और बच्चों के परोक्ष रुप से धूम्रपान से प्रभावित होने का खतरा काफी अधिक होता है।
केरल में 42 प्रतिशत लोग घर में परोक्ष धूम्रपान सेवन के बुरे असर का शिकार होते हैं। सिगरेट/बीडी के धूएं से कम से कम 250 प्रकार के खतरनाक रसायन परोक्ष धूम्रपान करने वाले लोगों पर असर डालते हैं। धूम्रपान न करने वाले व्यक्तियों के शरीर में जब सिगरेट/बीडी का धुआं प्रवेश करता है तो कैंसरजन्य बहुत से रसायन भी उनके शरीर में चले जाते हैं। अनुसंधान में महिलाओं और बच्चों पर इसके बहुत से दुष्परिणाम सामने आए हैं जिसमें अकस्मात गर्भपात, जन्म के समय कम वजन, कमज़ोर फेफड़े और सांस संबंधी परेशानियों शामिल है। वैज्ञानिक तौर पर यह साबित हो चुका है कि सिगरेट का धूआं 2-4 घंटों तक हवा में विद्यमान रहता है और धुएं का अवशेष घरों के पर्दों और अन्य वस्तुओँ पर पड़ता है जिसका नकारात्मक प्रभाव घर में रहने वाले सभी लोगों पर होता है।
प्रोजेक्ट क्विट टोबैको इंडिया यानि तंबाकू मुक्त भारत परियोजना द्वारा धूमपान मुक्त घर की पहल
महिलाओं और बच्चों को परोक्ष तंबाकू सेवन से बचाने के मुद्दे को संबोधित करने के लिए तंबाकू मुक्त भारत परियोजना ने केरल के ग्रामीण समुदाय में धूम्रपान मुक्त घरों की पहल की है। समुदाय स्तरीय गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले केरल महिला समाख्या समाज और कुदुंबश्री जैसे महिला समूहों के ज़रिए इस परियोजना को लागू किया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य है कि समुदाय में सब लोग एक साथ मिलकर यह निर्णय ले कि वे अपने क्षेत्र के किसी भी घर या बाहर किसी भी व्यक्ति को धूम्रपान की अनुमति नहीं देंगे। त्रिवेंद्रम जिले के नेल्लानदू ग्राम पंचायत के चुनिंदा समुदायों/वॉर्डों में इस अभियान को सफलतापूर्वक लागू किया गया है।
‘धूम्रपान मुक्त घर’ की अवधारणा की शुरुआत से पहले महिलाओं और बच्चों पर परोक्ष धूम्रपान के असर का आकलन करने के लिए घर के भीतर और बाहर समुदाय स्तर पर एक सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि 70 प्रतिशत से अधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति घर के भीतर ऐसा करते हैं परिणामतः घर के सदस्यों पर इसका प्रभाव पड़ता है। अधिकांश महिलाओं को यह बात मालूम थी कि परोक्ष धूम्रपान सेवन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है लेकिन वे इससे जुडी विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं से अवगत नहीं थी। व्यक्तिगत तौर पर वे घर में धूम्रपान के खिलाफ थीं लेकिन इस संबंध में कुछ भी करने में स्वंय को असमर्थ महसूस करती थीं। बहुत कम घर ऐसे थे जहां घर में धूम्रपान न करने का नियम था। घर में आए किसी मेहमान को धूम्रपान करने से रोकने में महिलाएं स्वंय को असहज महसूस करती थीं। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों सहित अस्सी प्रतिशत लोगों ने समुदाय व्यापी धूम्रपान मुक्त घर की नीति के संबंध में अपना समर्थन जताया।
धूम्रपान मुक्त घर की अवधारणा के पहले कदम के तहत चुने गए पंचायत के सदस्यों के साथ एक बैठक बुलाई गई और उसमें इस गतिविधि के उद्देश्यों के बारे में चर्चा की गई। दूसरा कदम समुदाय के बीच धुएं से परोक्ष रूप से प्रभावित हुए लोगों को पहुंचने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना था। कुदुमश्री और महिला समाख्या के सदस्यों के समर्थन से घरों में धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के कारण घर के अन्य लोगों पर पड़ने वाले असर के बारे में समुदाय को शिक्षित करने के लिए चर्चाएं आयोजित की गईं । इस आंदोलन के स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए पंचायत स्तरीय रिसोर्स टीम गठित की गई और इस टीम को प्रशिक्षित किया गया। इस रिसोर्स टीम में स्वास्थ्य निरीक्षक, कनिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक, कनिष्ठ सार्वजनिक स्वास्थ्य नर्स, आशा कार्यकर्ताएं, आगंनबाड़ी शिक्षक, कुदमश्री/महिला समाख्या सदस्य आदि सम्मिलित हैं।
तीसरा कदम पुरूष और महिलाओं के साथ बैठकें आयोजित करना था ताकि समुदाय में स्वास्थ्य शिक्षा अभियान आयोजित किए जा सकें जिसमें ‘धूम्रपान मुक्त घरों’ की आवश्यकता के विषय पर जानकारी दी जा सके। सभी परिवारों को अपने घरों के मुख्य द्वार पर स्टीकर लगाने के लिए दिए गए जिसमें लिखा गया था कि यह घर धूम्रपान मुक्त है। समुदाय के सदस्यों को सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर और बैनर भी लगाने थे जिसमें इस समुदाय के घरों के धूम्रपान से मुक्त होने का उल्लेख किया गया था। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा क्लास आयोजित की गईं तथा विद्यार्थियों को भी इस आंदोलन में सम्मिलित किया गया। विद्यार्थियों ने पेास्टर बनाने की प्रतियोगिता में भाग लिया और अपने पिता और घर के अन्य पुरुषों को याद दिलाया कि घर में धूम्रपान न करें। चौथा कदम था, पूरे समुदाय की बैठक करना जिसमें लोगों ने औपचारिक रूप से घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए जिसमें लिखा गया था कि इस समुदाय के किसी भी घर में धूम्रपान नहीं किया जाता।
इस प्रयास के बाद कार्यक्रम का असर देखने के लिए एक सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि घरों में धूम्रपान बंद करने वाले परिवारों की संख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई है। इस कार्यक्रम के परिणामस्वरुप धूम्रपान करने वाले 67 प्रतिशत व्यक्तियों ने घरों में इसका सेवन बंद कर दिया है।
भारत में कानूनी रूप से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान वर्जित है और इसके कारण धूम्रपान करने वाले बहुत से लोग घरों में इसका सेवन करते हैं। महिलाएं या तो इस बारे में पुरूषों को कहने में हिचकिचाती हैं या लाचार होती हैं। नेल्लानदू अनुभव से यह सामने आया है कि अगर पूरा समुदाय घरों में धूम्रपान के खिलाफ आवाज़ उठाए तो यह काफी प्रभावी और स्वीकार्य होगा। ‘धूम्रपान मुक्त घर’ नामक यह आंदोलन अल्लुज़ा जिले में मुहम्मा ग्राम पंचायत और इरनाकुलम जिले की नजराक्कल ग्राम पंचायत में चलाया जा रहा है।