मनोहर कुमार जोशी
राजस्थान के मेवाड़ अंचल में सोलहवीं शताब्दी में तत्कालीन महाराणा राजसिंह ने भीषण अकाल, पेयजल की आपूर्ति, नगर के सौन्दर्यकरण एवं रोजगार को ध्यान में रखकर राजसमन्द झील का निर्माण कराया था. चार मील लम्बी, डेढ मील चौड़ी एवं 45 फुट गहरी तथा पौने चार हजार एमसीएफटी जल भराव क्षमता वाली यह झील बाद में स्थानीय लोगों की जीवन रेखा बन गई. लेकिन पिछले तीन दशक में मार्बल खनन एवं प्रसंस्करण उद्योग के कचरे ने झील के जलागम क्षेत्र को अवरूद्ध कर दिया. नतीजतन यह जलाशय लगभग सूख गया. इस स्थिति में कुछ बुद्धिजीवियों ने झील की सफाई एवं गोमती नदी के जल प्रवाह में अवरोध हटाने का बीड़ा उठाया, जो अभियान बनकर सामने आया और सामूहिक प्रयास से झील में फिर से पानी आया तथा नदी में भी जल बहने लगा. इसके लिये अभियान के सूत्रधार श्री दिनेश श्रीमाली को हाल ही केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने दिल्ली में राष्ट्रीय भूमि जल संवर्द्धन पुरस्कार से सम्मानित किया. श्री श्रीमाली ने इस सम्मान को झील एवं गोमती नदी संरक्षण में लगे प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान बताया है.
झील की सफाई में अहम भूमिका अदा करने वाले श्रीमाली किसान. मज़दूर और आम आदमी के लिये प्रेरणा श्रोत बन गये हैं. राजस्थान के राजसमन्द जि़ले के मजां गांव में 12 दिसम्बर 1965 में जन्मे दिनेश श्रीमाली कहते हैं, मुझे अपने नाना स्वतंत्रता सेनानी ओंकारलाल से संस्कार विरासत में मिले . इन्ही संस्कारों ने विश्व प्रसिद्ध राजसमंद झील और गोमती नदी के जलग्रहण क्षेत्र में हुये खनन के विरोध में 1989 में वैचारिक जन जागरूकता में सक्रिय भागीदारी अदा करने की शक्ति प्रदान की.
उन्होंने कहा कि स्थानीय समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होने पर मुझे खदान मालिकों एवं उनके लोगों से धमकियां भी कम नहीं मिली, लेकिन मैंने इसकी परवाह किये बिना अभियान चालू रखा. 1991 और 1992 में लिखे लेखों का असर सामने आया और तत्कालीन जि़ला कलैक्टर ने मामले की गंभीरता को देख मार्बल अपशिष्ट एवं स्लरी निस्तार के लिये पहली बारी डम्पिंग यार्ड निर्धारित किये. इस बीच सांस्कृतिक एवं साहित्यिक रंगमंचों के माध्यम से तथा पत्र-पत्रिकाओं और समूह चर्चा कर जनमानस तैयार करने का अभियान भी जारी रखा. आखिर बीसवीं सदी का अंतिम दशक व्यावहारिक आंदोलन बना.
वर्ष 2000 में ऐतिहासिक राजसमंद झील अपने निर्माण के 324 साल बाद पूरी सूख गई. मार्बल खनन एवं प्रसंस्करण से निकलने वाली स्लरी ने पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया. जमीन बंजर होने से पशुपालकों के लिये चारे तक का संकट पैदा हो गया. हमने गायत्री परिवार के साथ मिल कर झील की गाद निकाली गई और सफाई अभियान चलाया गया, जिसमें नगर के सभी लोगों ने श्रमदान किया . इसमें किसानों ने भी पूरी भागीदारी निभायी. झील से निकली गाद काश्तकारों के लिये खाद के रूप में काम आयी.
आंदोलन के दौरान झील जलागम क्षेत्र का जायजा लेने प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं राजस्थान की रजत बूंदें जैसे उत्कृष्ट लेख देने वाले अनुपम मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय, मेघा पाटकर, डा. महेश भट्ट सहित अनेक नामचीन हस्तियां यहां आई और हमारे अभियान को अपना नैतिक समर्थन प्रदान किया . बाद में ज़िला प्रशासन भी जागरूक हुआ . ऑपरेशन भागीरथ के तहत वर्ष 2004 से 2006 तक झील एवं नदी के जलागम क्षेत्र में सफाई कर अपशिष्ट हटाये एवं जलमार्ग ठीक किये . इस कार्य में सभी का भरपूर सहयोग मिला . वह कहते हैं आखिर हमारी मेहनत रंग लाई और बारह साल बाद गोमती नदी में पानी बहा. राजसमंद झील जो पूरी तरह सूख चुकी थी, उसमें में भी 2006 में 19 फुट पानी आया . इससे क्षेत्र के 70 से 80 गांव खेती से जुड़ गये . नदी. झील तालाब में पानी रहने से भूमिगत जल का स्तर भी नीचे गिरने से बचा रहा . हमारे अभियान में जून 2006 सबसे सुखद रहा .
बचे अवरोधों को हटाने के लिये 2009 से 2011 के दरमियान हमने फिर अभियान चलाया और जलागम क्षेत्र की बंद पुलियाओं को खोला गया . कई पक्के चैम्बर एवं नाली बना जलप्रवाह झील की ओर मोडे़ गये. इस अभियान में मुझे फिर अग्रिम पंक्ति में रहने का अवसर मिला . गोमती नदी की सफाई के बाद खनन अपशिष्ट वापस नदी के जल प्रवाह में न डालें, इसके लिये आस-पास के गांवों में ग्रामीण चौपालें की गई तथा स्थानीय लोगों को चौकसी की जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने कहा हमें अब तक 60 से 65 प्रतिशत सफलता मिली है, लेकिन सृजन और विनाश का दौर लगातार जारी है तथा रहेगा, इसलिये हमें हरदम सजग रहना पडे़गा, ताकि जल की खेती सही दिशा में होती रहे .