फ़िरदौस ख़ान
दुनिया की तक़रीबन आधी आबादी महिलाओं की है. इस लिहाज़ से महिलाओं को तमाम क्षेत्रों में बराबरी का हक़ मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. कमोबेश दुनिया भर में महिलाओं को आज भी दोयम दर्जे पर रखा जाता है. अमूमन सभी समुदायों में महिलाओं को पुरुषों से कमतर मानने की प्रवृत्ति है, ख़ासकर मुस्लिम समाज में तो महिलाओं की हालत बेहद बदतर है. बीती 31 जुलाई को प्रेमचंद की जयंती और साहित्यिक पत्रिका हंस के 27वें वर्ष के प्रवेश पर दिल्ली के ऐवान-ए-ग़ालिब में आयोजित समारोह में हिंदुस्तान और पाकिस्तान की महिलाओं ने दीन की बेटियां विषय पर अपने विचार रखते हुए महिलाओं की आज़ादी की पुरज़ोर तरीक़े से वकालत की. उनका मानना था कि जब तक महिलाएं शिक्षित नहीं होंगी, तब तक उनकी हालत बदलने वाली नहीं है. शिक्षित महिलाएं ही समाज को बदल सकती हैं.

समारोह को संबोधित करते हुए पाकिस्तान की लेखिका ज़ाहिदा हिना ने कहा कि पाकिस्तान में ज़िया-उल-हक़ के शासन के बाद महिलाओं के खिला़फ हिंसा में तेज़ी से इज़ा़फा हुआ है. देश के इस्लामीकरण से महिलाओं की परेशानियां भी बढ़ गई हैं. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में आज जो महिलाएं आज़ाद नज़र आती हैं, वह आज़ादी उन्हें चांदी की तश्तरी में परोसकर नहीं दी गई. इसे हासिल करने के लिए उन्होंने काफ़ी संघर्ष किया है. उनकी आज़ादी की राह में पितृसत्ता और पूंजीवाद जैसी ताक़तों ने रोड़े अटकाए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. महिलाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप का ज़िक्र करते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाएं आज भी अपने अधिकारों से महरूम हैं. पुरुष जानते हैं कि महिलाओं को रोज़गार देने से उनका अधिकार ख़त्म हो जाएगा. इसलिए महिलाओं को मज़हब के नाम पर डराते हैं. ऐसे पुरातनपंथी विचारों से संघर्ष के बाद ही मुस्लिम महिलाओं को आज़ादी हासिल हो सकती है. पाकिस्तान में महिलाओं की सामाजिक और शैक्षिक हालत के बारे में उन्होंने कहा कि क़बीलाई इलाक़ों में लड़कियों के सैकड़ों स्कूल बारूद से उड़ा दिए गए. कट्टरपंथी नहीं चाहते कि लड़कियां तालीम हासिल करें. इसके बावजूद महिलाएं चाहती हैं कि उनकी बेटियां तालीम हासिल करें और बेहतर ज़िंदगी जिएं. उन्होंने उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने हमेशा महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी. उन्होंने अपनी कहानियों में महिलाओं की वास्तविक तस्वीर पेश करते हुए उनकी तकलीफ़ों को बख़ूबी बयां किया.

पाकिस्तान की लेखिका किश्वर नाहिद ने अपने देश की सरकार द्वारा महिलाओं के हित में किए गए कार्यों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ क़ानून पारित किया गया है और स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 फ़ीसद आरक्षण दिया गया है. हमने संघर्ष के ज़रिये काफ़ी कुछ हासिल किया है, लेकिन अभी पाकिस्तान की महिलाओं को लंबा सफ़र तय करना है. उन्होंने कहा कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के मामलों को दबाना नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से ऐसे मामलों में बढ़ोतरी ही होगी. जब तक महिलाओं के प्रति समाज का नज़रिया नहीं बदलेगा, तब तक ऐसे मामले सामने आते रहेंगे. उन्होंने कहा कि इस्लाम को मौलवियों के ज़रिये नहीं, बल्कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नज़रिये से समझना चाहिए. कलाम हमारे प्रेरणा स्रोत हैं. इस मौक़े पर समाजसेवी सहबा फारू़खी ने कहा कि हमारे देश की खाप पंचायतों और पाकिस्तान के क़बीलाई इलाक़ों के महिला विरोधी फैसलों में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है. मुस्लिम समाज में आए दिन जारी होने वाले फ़तवों में महिलाओं को दबाने की कोशिश की जाती है. मुस्लिम समाज की महिलाओं को दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ रही है. कार्यक्रम का संचालन कर रही शीबा असलम फ़हमी ने कहा कि आज महिलाएं डॉक्टर और इंजीनियर बन रही हैं, लेकिन उनकी समस्याएं आज भी पहले जैसी ही हैं. मुस्लिम समाज में सुधारवादी आंदोलन होना चाहिए था, पर ऐसा कोई आंदोलन नहीं हुआ. समारोह का आग़ाज़ वरिष्ठ कथाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने किया. उन्होंने सालाना गोष्ठी के बारे में विस्तार से जानकारी दी. समारोह में अनेक गणमान्य लोगों ने शिरकत की.


أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ

أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ
I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam

फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं