राजा ज़ैद ख़ान 
कुछ दिनों पहले तक अमेरिका, ब्रिटेन, जापान इत्यादि देशों के मुताबिक हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ.  मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक सुधारों के निर्माता, भारत को आधुनिकता, खुशहाली, और विकास की राहों पर ले जाने वाले तथा विश्व मानचित्र पर भारत को एक अहम साख प्रदान करने वाले- विश्व के टॉप 10 नेताओं में आते थे. आज अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ ऐसा क्या घटा कि इन देशों ने तो जैसे कमर ही कस ली है हमारे प्राधानमंत्री को इतिहास का एक नाकाम नेता साबित करने की. क्या इसके पीछे एक गहरी साजिश नजर नहीं आ रही है? इस देश में दूसरी बार मनमोहन सिंह सरकार बनने के चंद दिनों बाद ही अमेरिका और ब्रिटेन की मंशा जाहिर होने लगी थी. लोकपाल के नाम पर इस देश में अस्थिरता का बीज बोने वाली टीम अन्ना को अमेरिका का एक संगठन वित्तीय मदद दे रहा है. क्या यह मदद जायज़ है? फोर्ड फाउंडेशन नाम की इस संस्था ने टीम अन्ना को करोड़ों रुपये एक ऐसा आंदोलन खड़ा करने के लिए दिए, जिससे इस देश में अराजकता का माहौल खड़ा हो जाए. आज पूरा देश देख चुका है और भली भांति जान चूका है कि टीम अन्ना का असल मकसद इस देश से भ्रष्टाचार को मिटाना था या कुछ और? क्या हम ऐसी शक्तियों के आगे आत्मसमर्पण कर देंगे? नहीं, यह पहला मौका नहीं है जब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के ज़रिये इस देश के विकास को रोकने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अभी तक हमारी एकजुटता के आगे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को हार माननी पड़ी है.

साज़िश का  मुख्य कारण दिवालियापन
दरअसल अमेरिका और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था क्षीण हो चुकी है.  अंतर्राष्ट्रीय  मंदी के चलते उनके कई बैंक दिवालिया घोषित हुए, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता और अनुभव के कारण भारत  अंतर्राष्ट्रीय  मंदी में उलझने से बच गया. अमेरिका और ब्रिटेन की सोच थी कि भारत में विकास की रफ़्तार थम जाएगी, लेकिन इसके पलट भारत और अधिक आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने लगा. दरअसल बात तब से शुरू होती है जब प्रधानमंत्री डॉ.  मनमोहन सिंह ने यह घोषणा की है कि हमारे देश के सुदूरवर्ती इलाकों के परिवारों में भी बिजली पहुंचे और भारत देश भी एक पूर्ण विकसित राष्ट्र की तरह से विश्वपटल पर छा जाए. इसके लिए भारत की वर्तमान विद्युत उत्पादन क्षमता 324 यूनिट प्रतिव्यक्ति-प्रतिवर्ष को वर्ष 2050 तक 5000 यूनिट  प्रतिव्यक्ति-प्रतिवर्ष तक ले जाना होगा. इसमें 2000 यूनिट की दर का बिजली उत्पादन परमाणु ऊर्जा से एवं 3000 यूनिट की दर का उत्पादन अन्य सभी संभव स्रोतों से होना है. आज भारत हर लिहाज से ऐसा करने में समर्थ है. यदि भारत में बिजली उत्पादन की क्षमता 5000 यूनिट के दर की होती तो भारत की औसत पर-कैपिटल आय 18 लाख से लेकर 36 लाख रूपये के बीच होती.
जापान में एक दोहरा जलजला आया था और इसने पूरी तरह से वहां के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था. लाखों परिवार, हजारों उद्योग, यातायात, संचार सब कुछ काफी हद तक तहस-नहस या अस्त-व्यस्त हो  गया था.  इस घटना के दो महीने बाद ही जापान ने सरकारी आधार पर एक प्रेस कांफ्रेंस में अपनी एक वीडियो रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि बिना परमाणु विद्युत ऊर्जा के जापान का कोई अस्तित्व नहीं है.

भारत को आत्मनिर्भर नहीं बनने देने के पीछे की सोच
आज जब भारत परमाणु विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भता की तरफ बढ़ने का प्रयास का रहा है तो ये देश येन-केन प्रकारेण भारत के इस मार्ग में अवरोध पेदा करने की कोशिश कर रहें है. अभी जापान कहता है कि वह अपने सारे परमाणु विद्युत घर बंद करने जा रहा है, यानी जापान अपनी कुल आय के 35 प्रतिशत भाग को खत्म करने जा रहा है. आप सभी को जापान की कूटनीतिज्ञता नजर नही आती? भारत की तरफ से जापान को यह सुझाव होना चाहिए कि पहले तो वह 35 प्रतिशत योगदान को कम करे  यानी सभी परमाणु बिजलीघरों को बंद कर दे, दूसरा चूंकि जापान में आए दिन भूकंप और सुनामियां आती ही रहती हैं, इसलिए जापानवासी अपने  देश  की जमीन को छोड़कर अमेरिका या ब्रिटेन में जा बसें.  क्या जापान ऐसा कर सकता है? हम सब यह जानते हैं कि जापान ऐसा कदापि नहीं करेगा, क्योंकि वह यदि वास्तव में ही अपने सारे परमाणु विद्युतघरों को बंद करता है तो बिजली की कमी की वजह से उसकी सारी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी और आज का समृद्ध जापान एक फटेहाल देश की तरह हो जाएगा. अमेरिका में बैठे डॉ. विनोद कुमार ने जैतापुर महाराष्ट्र की परमाणु विद्युत परियोजना के लिए ऐसा क्यों कहा कि यह साइट भूकंप क्षेत्र में स्थित है. हमारे ही देश के एक वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार गौड़ ने एक विदेशी वैज्ञानिक द्वारा अमेरिका की ग्रीन पीस कोंफ्रेंस में अपना लिखा हुआ पेपर पढ़वाया था. इस पेपर में लिखा है कि महाराष्ट्र राज्य के जैतापुर में एक भयंकर भूकंप आ सकता है. अब जैतापुर में भी तकरीबन 10,000 मैगावाट विद्युत उत्पादन के लिए परमाणु विद्युतघरों की स्थापना होने जा रही है. इसी क्रम में  2003 से ही जब जैतापुर साइट पर परमाणु ऊर्जा बिजलीघर लगाने के लिए सोचा गया था, तब भारत की विभिन्न एक्सपर्ट एजेंसियों ने मिलकर पूरी गहराई के साथ इस इलाके की जांच-पड़ताल की. उन्होंने 44 किलोमीटर के दायरे में 30 से 80 मीटर की गहराई के बोरवेल खोदकर पूरी जांच-पड़ताल की और अंत में यह पाया कि जैतापुर साइट परमाणु बिजलीघरों की स्थापना के लिए पूरी तरह सुरक्षित है और इस बात की रिपोर्ट भारत सरकार, एनपीसीआईएल, डीएई, एईआरबी को  2005 में ही दे दी गई थी. इस रिपोर्ट को डॉ. विनोद कुमार गौड़ के साथ पूरी गहराई के साथ डिसकस भी किया गया और डॉ. गौड़ इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि जैतापुर साइट परमाणु विद्युतघरों की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त है. लेकिन इस वर्ष डॉ. गौड़ के साथ ऐसा क्या घटा कि उन्होंने एक विदेशी वैज्ञानिक को दिगभ्रमित करके अपना तथाकथित बायस्ड पेपर इतनी बड़ी कांफ्रेंस में पढ़वाया. इतना तो स्पष्ट है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने तो उन्हें ऐसा करने के लिए नही कहा होगा. फिर ऐसी कौन सी वजह आ पड़ी कि डॉ. गौड़ अपने कहे हुए से पलट गए ? जाहिर है इसमें कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति शामिल है.

टाइम मैगज़ीन और वाशिंगटन पोस्ट का सहयोग
अमेरिका और ब्रिटेन किसी भी तरह भारत को आत्मनिर्भर नहीं देखना चाहते और इसीलिए भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को ध्वस्त करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. अभी हाल में टाइम मैगज़ीन और वाशिंगटन पोस्ट में प्रधानमंत्री के लिए छापी गई कथित टिप्पणियां भी अमेरिका और ब्रिटेन की राजनीति का हिस्सा हैं. आज अमेरिका और ब्रिटेन बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं. दोनों देशो में रोज़गार के संसाधन ख़त्म होने की कगार पर हैं. इसके बाद भी टाइम मैगज़ीन और वाशिंगटन पोस्ट ने कभी अमेरिकी राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नकारा  नहीं कहा. इस तरह के घिनौने कार्यक्रमों को अंजाम देकर अमेरिका और ब्रिटेन न सिर्फ देश में राजनीतिक अस्थिरता फैलाना, बल्कि प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करना चाहता है .
अब हमें बाते बनाने, दूसरों पर अपनी गलतियों को थोपने, मंदिर-मस्जिद के झंझटो से उपर उठकर एक नई दिशा से चलकर विकसित भारत के लिए सोचना है और फिर तर्कसंगत क्रांति लानी है. 10,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का मतलब है कि हमारे देश के समग्र विकास में तकरीबन 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी यानी सालाना आय में 5000 से लेकर 120,000 अरब रुपये की बढ़ोतरी.
हमारे मित्र और प्रतिद्वंद्वी देश यह जानते है कि भारत अपने कुल विद्युत उत्पादन की योजना में, यदि परमाणु ईंधन की अपनी विपुल ऊर्जा को बिजली बनाने की दिशा में प्रयोग करके 2000 यूनिट प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष बिजली का उत्पादन करने लग जाता है और अन्य स्रोतों से भी 3000 यूनिट की दर का उत्पादन करने में सफल होता है, तो भारत के समग्र विकास की दर बढ़ती ही चली जाएगी और भारत अपनी अतिरिक्त जींस क्वालिटी के कारण एक पूर्ण महाशक्ति के रूप में उभर  जाएगा.

आज एक सोच भारत के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रखी है. हमारे प्रधानमंत्री की गिनती दुनिया के टॉप 10 प्रधानमंत्रियों में होती है. इनकी सोच है कि हमारी वर्तमान में विद्युत उत्पादन की क्षमता 724 यूनिट प्रतिव्यक्ति-प्रतिवर्ष को 5000 यूनिट प्रतिव्यक्ति-प्रतिवर्ष तक ले आते हैं तो देश में पर्याप्त मात्रा में नए-नए कलकारखाने और उद्योग-धंधे स्थापित होंगे. किसानों के पास बिजली की भरपूर आपूर्ति होने से वे न केवल खाद्यान्न फसलों का उत्पादन कर सकेंगे, अपितु कई अन्य व्यापारिक फसलों का भी उत्पादन कर सकेंगे. इससे किसानों की स्वयं की आमदनी तो गुणात्मक रूप से बढ़ेगी, साथ ही समूचे देश की कुल आय में गुणात्मक वृद्धि हो सकेगी, जिसका लाभ समूची भारतीय जनता को होगा. हमारे देश के यातायात के साधनों में इस तरह की क्रांति आ सकेगी कि गांवों को शहरों से, शहरों  को राज्यों से जोड़ती हुई मेट्रों-ट्रेनें दौड़ेंगी. बिजली और संसाधनों के मामले में प्रत्येक गांव किसी शहर से कम नही होगा.

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं