जगदीश्वर चतुर्वेदी
समाज में वेश्यावृत्ति स्थानीय है। किन्तु सेक्स ग्लोबल है। आज सेक्स ग्लोबल सेवा क्षेत्र में आता है। विश्व व्यापार की भाषा में सेक्स का भी आयात-निर्यात हो रहा है। यह वस्तुत: कामुक गुलामी है। इस संदर्भ में सबसे रोचक तर्क जेड मैगजीन में ” ट्रीटिंग पोर्न लाइक अदर मीडिया” निबंध में व्यक्त किए गए हैं। इस लेख के लेखक का मानना है पोर्न अन्य फैंटेसी की तरह ही एक फैंटेसी है। चूंकि वामपंथी विचारक हमेशा फैंटेसी की आलोचना करते हैं, क्योंकि फैंटेसी वास्तव जगत को विद्रूप करती है। यही वजह है कि पुलिस और न्यायालय कभी कभी न्याय की गुहार भी लगाते हैं। लेखक के अनुसार पोर्न का अर्थ है ”आंशिक गर्भपात।” यह मीडिया का वह रूप है जो अपने दर्शक को हस्तमैथुन का आनंद देता है। पोर्न वह है जो हिंसक नहीं है। किसी को घटिया, हेय या छोटा नहीं दिखाता।
डोना एम हगीस ने ”दि करप्शन इन सिविल सोसायटी: मेन्टेनिंग दि फ्लो ऑफ वूमैन टु द सेक्स इण्डस्ट्रीज” में लिखा है कि सरकारी नीतियों के कारण औरतों की तिजारत बढ़ रही है। उन्हें सेक्स उद्योग में भेजा जा रहा है। सवाल उठता है कि आखिरकार वेश्यावृत्ति क्यों बढ़ रही है? इसमें औरत और बच्चे किन कारणों से आ रहे हैं? वेश्यावृत्ति में वे ही औरतें और बच्चे आते हैं जिनका कामुक रूप से दुरूपयोग होता है। इसमें बलात्कार की शिकार, ,बाल्य कामुक शोषण के शिकार, शिक्षा से वंचित,गरीब,नस्लवादी या साम्प्रदायिक भेदभाव के शिकार,वर्गीय शोषण के शिकार, युद्ध से प्रभावित लोग आते हैं। सामान्य तौर पर औरत और बच्चों को खाना,कपड़ा घर, पैसा दवा, सुरक्षा, संगति और रोजगार का वायदा करके फुसलाया जाता है। औरतें और बच्चे वेश्यावृत्ति के क्षेत्र में नैतिक कारणों से नहीं अपनी जिन्दगी के बुरे हालत के कारण आते हैं। वेश्यावृत्ति से स्त्री या बच्चों का सशक्तिकरण नहीं होता।बल्कि सच्चाई यह है कि जब वे इस धंधे में आ जाते हैं तो उन्हें भयानक नरक में जीना होता है। पहले से भी बदतर अवस्था में रहना होता है।वे अनेक किस्म की भयानक शारीरिक, सांस्कृतिक बीमारियों और विपत्तियों में जीने के लिए अभिशप्त होते हैं। सच तो यह है कि वेश्यावृत्ति औरत और बच्चों के खिलाफ नियोजित बर्बर हमला और शोषण है। औरतों और बच्चों की बिक्री और स्थानान्तरण मूलत: उन्हें भयानक शोषण और नरक में धकेलता है। औरतों की बिक्री आज सबसे बड़ा कारोबार बन गया है। जिन औरतों को खरीदा जाता है उनमें से अधिकांश भयानक गरीबी और अभाव की मारी होती हैं। उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन देकर फुसलाया जाता है।बल प्रयोग किया जाता है। शारीरिक और मानसिक यंत्रणाएं दी जाती हैं जिससे वे वेश्यावृत्ति के धंधे में जाने के लिए मजबूर होती हैं। सच तो यह है वेश्यावृत्ति में शामिल औरतें इस धंधे से मुक्त होना चाहती हैं। कोई भी औरत स्वेच्छा से इस पेशे में नहीं है।बल्कि मजबूरी और दबाव के कारण ही वे इस धंधे में हैं। वेश्यावृत्ति गुलामी है। बल प्रयोग के कारण किया गया श्रम है। यह मूलत: स्त्री के शोषण की बर्बर व्यवस्था है। इसके पीछे संगठित माफिया गिरोह और बहुराष्ट्रीय कारपोरेट हाउस सक्रिय हैं।जो लोग यह कहते हैं कि वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता प्रदान कर देने से यह समस्या कम हो जाएगी। वे झूठ बोलते हैं। सच यह है कि इससे वेश्यावृत्ति बढ़ जाएगी। नीदरलैंण्ड इसका आदर्श उदाहरण है। वहां वेश्यावृत्ति को वैध घोषित करने के बाद इस पेशे में औरतों की बाढ़ आ गयी है।
वेश्यावृत्ति, कामुकता, पोर्न या अवैध संबंधों की तरफ रूझान को वैधता प्रदान करने में में मीडिया प्रस्तुतियों की महत्वपूर्र्र्ण भूमिका है। मीडिया अध्ययन बताते हैं कि 66 फीसदी प्राइम टाइम कार्यक्रमों में कामुकता एक महत्वपूर्ण अंतर्वस्तु है। सन् 1999-2000 के साल में टेलीविजन के दो-तिहाई कार्यक्रमों में कामुकता पर जोर था। समग्रता में टेलीविजन में सन् 1999 में 56 फीसदी सेक्स कंटेंट था। जो सन् 2000 में बढकर 84 फीसदी हो गया है। सन् 2001 में केशर फेमिली फाउण्डेशन ने बताया कि अमेरिकी सॉप आपेरा का अस्सी फीसदी अंतर्वस्तु कामुक थी। ग्रीनवर्ग एवं वुड ने बताया कि औसतन प्रतिघंटे सॉप ऑपेरा में 6.6 काम क्रियाएं दिखाई गयीं।यह भी पाया गया कि तरूणों में कामुक अंतर्वस्तु के कार्यक्रम बेहद जनप्रिय हैं। 23 फीसदी टीवी कार्यक्रमों में विभिन्न चरित्रों के बीच में कामक्रीडा के दृश्य 18- 24 साल के लोगों पर फिल्माए गए। जबकि 9 फीसदी चरित्र 18 साल से कम उम्र के थे। ज्यादातर काम-क्रीडा के दृश्य अविवाहित युगलों के बीच में दरशाए जाते हैं।अविवाहित चरित्रों में ही काम भाषा का प्रयोग मिलता है।एक शोध अनुसंधान में पाया गया कि 24 चरित्रों में सिर्फ एक ही विवाहित युगल सॉप ऑपेरा में काम क्रीडा करते नजर आया बाकी चरित्र अविवाहित थे। टेलीविजन कार्यक्रमों में दरशाए गए सेक्स में सुरक्षित सेक्स का शायद ही रूपायन दिखाई देता हो। ज्यादा चरित्र कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते। असुरक्षित कामुक व्यवहार में खतरा है, इसका शायद ही कभी जिक्र किया जाता हो। एक अनुमान के अनुसार सालाना 14000 कामुक संदर्भों की वर्षा होती है। जिनमें मात्र 165 दृश्यों में संतति निरोध, संयम, काम नियंत्रण, प्रजनन में खतरा, संक्रमित बीमारियों आदि का जिक्र रहता है।
मीडिया के द्वारा सेक्स के व्यापक प्रसारण का असर यह होता है कि तरूणों में शारीरिक शुचिता और वर्जीनिटी के प्रति असंतोष पैदा होता है। जो तरूण यह सोचते हैं कि टीवी सेक्स उन्हें सेक्स की सही जानकारी देता है, इस बात पर विश्वास करने वालों का पहला संभोग असंतोषजनक होता है। वे कुण्ठा के शिकार होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि काली नस्ल की औरतें जिनकी उम्र 18-24 साल के बीच है, उनमें वगैर कंडोम के इस्तेमाल किए सेक्स के प्रति रूझान ज्यादा पाया गया है। तरूण लड़कियों में केजुअल सेक्स का रूझान बढता है। टीवी में कामुकता की प्रस्तुतियों पर किए गए सारे अनुसंधान यह तथ्य पुष्ट करते हैं कि किसी भी कार्यक्रम में यह नहीं बताया जाता कि टीवी का सेक्स कंटेंट नुकसानदेह है। अथवा असुरक्षित सेक्स न करें।अथवा अवैध सेक्स व्यवहार गैर जिम्मेदारी भारा होता है। बल्कि इसके विपरीत टीवी कार्यक्रमों की सेक्स प्रस्तुतियां बताती हैं कि तरूणों को गैर जिम्मेदार कामुक व्यवहरार करना चाहिए।
मीडिया को देखते समय निम्नलिखित सवालों पर गौर करेंगे तो टीवी कार्यक्रमों को आलोचनात्मक नजरिए से देख पाएंगे। सवाल हैं –
1.सेक्सुअल इमेजों का निर्माता कौन है?
2.कामुक व्यवहार में कौन लोग शामिल हैं ?
3. किसकी बात या राय नहीं मानी जा रही है?
4. किस परिप्रेक्ष्य से कैमरा घटनाओं को निर्मित कर रहा है?
5.आपके अभिभावक,गर्ल फे्रंड,बॉय फे्रंड ने अभी जो स्टोरी देखी, उसके बारे में किस तरह की बातें करते हैं?
6.देखते समय आपकी क्या भूमिका थी? आप अपने को कहानी,चरित्र ,घटना आदि में समाहित करके देख रहे थे या आलोचनात्मक नजरिए से देख रहे थे?
7. मीडियम का मालिक कौन है? कामुक सामग्री के प्रसारण से मालिक को कितना फायदा होता है?
सवाल पैदा होता है मीडिया, विज्ञापन आदि में परोसी जा रही कामुक सामग्री के दुष्प्रभाव से बचने के क्या उपाय हैं? उपाय निम्न प्रकार हैं-
1.मीडिया को साथ मिलकर देखें,इससे अंतर्वस्तु के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,साथ ही यह भी पता चलेगा कि अन्य लोग क्या सोच रहे हैं।
2. टीवी की कामुक सामग्री के बारे में अन्य क्या कहते हैं, उसे गंभीरता से सुना जाना चाहिए। कामुक सामग्री पर चर्चा की जानी चाहिए।
3.कामुक विज्ञापनों का अध्ययन करने का गुर सीखना चाहिए, उसमें क्या संदेश दिया गया है? विज्ञापन के निशाने पर कौन है? विज्ञापन की अपील बनाने के लिए वे किन चीजों का इस्तेमाल करते हैं?संबंधित वस्तु को खरीदने के लिए ऑडिएंस को संतुष्ट करने के लिए कितना समय खर्च करते हैं?
4. विज्ञापन की परीक्षा सर्जनात्मक आधार पर की जानी चाहिए। (मसलन् क्या परफ्यूम के विज्ञापन में सुन्दरता या कामुकता का वायदा किया गया है)
5.कामुक फिल्म और वीडियो चुनने के नियम बनाए जाने चाहिए।
6. फिल्म और वीडियो की कामुक इमेजों के बारे में अन्य क्या बोलते हैं?
7. टीवी और फिल्म की रेटिंग व्यवस्था के बारे में सीखना चाहिए।
(लेखक वामपंथी चिंतक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं)