सूर्यकांत द्विवेदी
ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम'
 हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।
आज से पितर हमारे घर में वास करेंगे।  श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध बुधवार को पूर्णिमा के साथ प्रारम्भ हो रहे हैं। इस बार भी सोलह के स्थान पर पन्द्रह दिन के ही श्राद्ध हैं। पिछले साल भी पन्द्रह ही श्राद्ध हुए थे। सोलह श्राद्ध 2020 में पड़ेंगे। पन्द्रह दिन के लिए हमारे पितृ घर में होंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे। यह अवसर अपने कुल, अपनी परंपरा, पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का स्मरण करने और उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेने का है।
श्राद्ध क्या है
व्यक्ति का अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन यही श्राद्ध कहलाता है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही वस्तुत: श्राद्ध कर्म है।

कब होता है पितृ पक्ष
भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर श्राद्ध पक्ष आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। पूर्णिमा का श्राद्ध उनका होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी पूर्णिमा को हुई हो। वैसे, ज्ञात, अज्ञात सभी का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है।
यूं होते हैं सोलह दिन के श्राद्ध
पंडित केदार मुरारी और श्री हरि ज्योतिष संस्थान के ज्योतिर्विद पंडित सुरेंद्र शर्मा कहते हैं कि सूर्य अपनी प्रथम राशि से भ्रमण कर कन्या राशि में एक माह के लिए भ्रमण करते हैं। तभी यह सोलह दिन का पितृपक्ष मनाया जाता है। इन सोलह दिनों के लिए पितृ आत्मा को सूर्य देव पृथ्वी पर अपने परिजनों के पास भेजते हैं। पितृ अपनी तिथि को अपने वंशजों के घर जाते हैं। पक्ष पन्द्रह दिन का ही होता है लेकिन जिनका निधन पूर्णिमा को हुआ है, उनका भी तर्पण होना चाहिए। इसलिए पूर्णिमा को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है और श्राद्ध 16 दिन के होते हैं।


मृत्यु के एक साल तक होता है प्रतीक्षा काल
मृत्यु से एक साल की अवधि प्रतीक्षा काल होती है। जब किसी का देहावसान होता है तो हमको पता नहीं होता कि वह किस योनि में गया है या उनको मोक्ष मिला या नहीं। शास्त्रों के मुताबिक कभी-कभी प्रतीक्षा काल लंबा भी हो जाता है। आमतौर पर मृत्यु के एक साल की अवधि ( बरसी) तक हम मोक्ष की कामना करते हुए श्राद्ध कर्म करते हैं। इस एक साल के बाद हमारे पितृ देवताओं की श्रेणी में आ जाते हैं। श्राद्ध पक्ष वस्तुत: अपने पितरों को जल, तिल और कुश के माध्यम से आहार प्रदान करना है।
जल और तिल ही क्यों
श्राद्ध पक्ष में जल और तिल ( देवान्न) द्वारा तर्पण किया जाता है। जो जन्म से लय( मोक्ष) तक साथ दे, वही जल है।  तिलों को देवान्न कहा गया है। एसा माना जाता है कि इससे ही पितरों को तृप्ति होती है।
तीन पीढ़ियों तक का ही श्राद्ध
श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है।
कौन कर सकता है तर्पण
पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि किसी पंडित द्वारा भी श्राद्ध कराया जा सकता है।
महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध
महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं बशर्ते घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं हो। लेकिन नवीन मान्यताओं के अनुसार अपने पितृ और मातृ तुल्य लोगों का श्राद्ध महिलाएं कर सकती हैं। यदि घर में कोई बेटा नहीं है तो पुत्रवत किसी के भी द्वारा महिलाएं श्राद्ध करा सकती हैं।
कौआ, कुत्ता और गाय
इनको यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है।इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। पंडित आशुतोष त्रिवेदी कहते हैं कि चूंकि हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है।

कैसे करें श्राद्ध
पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें ( इसमें भोजन की समस्त सामग्री में से कुछ अंश डालें)
- फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें। ऊं पितृदेवताभ्यो नम: पढ़ते रहें।
-वस्त्रादि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं।

यदि ये सब न कर सकें तो
-दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार पढ़ें..ऊं पितृदेवताभ्यो नम:। लेकिन इनको पितृ अमावस्या के दिन अवश्य तर्पण करना चाहिए।
पितृ अमावस्या
जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती या किन्ही कारण से हम श्राद्ध नहीं कर पाते, एसे ज्ञात-अज्ञात सभी लोगों का श्राद्ध पितृ अमावस्या को किया जा सकता है। इस दिन श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। इसके बाद ही पितृ हमसे विदा लेते हैं।
क्यों नहीं होते शुभ कर्म
यह सोलह या 15 दिन शोक के होते हैं। अपने पितरों को याद करने के होते हैं। इसलिए,इन दिनों मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश, देव स्थापना के कार्य वर्जित हैं।
-ज्योतिर्विद पंडित सुरेद्र शर्मा
सीता जी ने भी किया था श्राद्ध
ज्योतिषाचार्य वीके सक्सेना के अनुसार महिलाओं का श्राद्ध करना निषेध नहीं है। भगवान राम गया जी में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने गए। श्राद्ध करने में देरी हो गई। तभी राजा दशरथ ने दोनों हाथ फैलाकर कहा कि मेरा तर्पण कब होगा। सीता जी उस वक्त वहां थी। सीता जी ने कहा कि वह आपका श्राद्ध महिला होने के नाते कैसे कर सकती हैं? राजा दशरथ ने कहा कि महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। मिट्टी उठाओ और मेरा पिंडदान करो। इससे साबित होता है कि महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। सक्सेना ने कहा कि श्राद्ध अपने संसाधनों से करना चाहिए। इसको बोझ नहीं बनाना चाहिए। न ही उधार लेकर श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध: टूट रही हैं वर्जनाएं
मुरादाबाद। पितृ पक्ष को लेकर अब वर्जनाएं भी टूट रही हैं। पहले यह माना जाता था कि यह कर्मकांड केवल पुरुषों तक ही सीमित है। पुरुष ही इस कार्य को कर सकते हैं।महिलाओंं को श्राद्ध कर्म करने की छूट नहीं थी। ठीक इसी प्रकार जैसे दाह संस्कार करना महिलाओं के लिए वर्जित था।
हाल फिलहाल में महिलाएं या बेटियां आगे बढ़कर अपने पिता और पति का दाह संस्कार करती हैं। यही नहीं, श्राद्ध कर्मकांड भी करने लगी हैंं। यह महिला सशक्तिकरण का ही एक प्रतीक है। अब पंडितोंं ने भी इनके लिए भी रास्ते खोल दिए हैं।
नर से नारायण सेवा
श्राद्ध में पंडितों को भोजन कराने की परंपरा है। इसमें भी सदियों से चली आ रही परिपाटी टूट रही है। लोग पंडितोंं के स्थान पर गरीब और असहाय लोगों को भोजन कराते हैं। अनाथालय जाते हैं और वहां पितरों के नाम पर किताबें, वस्त्रादि देते हैं। श्राद्ध में पितरों को उऩकी प्रिय चीजें दान देने की परपंरा है। अब ये प्रिय चीजेंं समाज के उपेक्षित वर्ग को दी जाने लगी हैं ताकि इनका सदुपयोग हो सके।

(लेखक मुरादाबाद में दैनिक हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक हैं)


أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ

أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ
I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam

फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • नजूमी... - कुछ अरसे पहले की बात है... हमें एक नजूमी मिला, जिसकी बातों में सहर था... उसके बात करने का अंदाज़ बहुत दिलकश था... कुछ ऐसा कि कोई परेशान हाल शख़्स उससे बा...
  • कटा फटा दरूद मत पढ़ो - *डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी *रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो। इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे क...
  • Dr. Firdaus Khan - Dr. Firdaus Khan is an Islamic scholar, poetess, author, essayist, journalist, editor and translator. She is called the princess of the island of the wo...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • डॉ. फ़िरदौस ख़ान - डॉ. फ़िरदौस ख़ान एक इस्लामी विद्वान, शायरा, कहानीकार, निबंधकार, पत्रकार, सम्पादक और अनुवादक हैं। उन्हें फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से ...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं