फ़िरदौस ख़ान
किसान दिन-रात मेहनत करके खेतों में अनाज उगाते हैं. अनाज के दाने खेतों में डालने से लेकर फ़सल की कटाई तक मौसम को लेकर उनके माथे पर चिंता की लकीरें आती-जाती रहती हैं, क्योंकि अगर वक़्त पर बारिश नहीं हुई तो फ़सल सूखने का डर रहता है, लेकिन अगर ज़रूरत से ज़्यादा और बेमौसम बारिश हो गई या ओले पड़ गए, तो फ़सल बर्बाद होने का ख़तरा बना रहता है. इसलिए जब तक किसानों की फ़सल मंडी में नहीं पहुंच जाती और उसकी वाजिब क़ीमत उन्हें नहीं मिल जाती, तब तक किसान चैन से सो भी नहीं पाते. हरियाणा के किसान वीर सिंह का कहना है कि जिन किसानों के पास बहुत कम ज़मीन है, उनकी हालत बहुत ख़राब है. खेतों की जुताई से लेकर अनाज को मंडी पहुंचाने तक उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. परिवहन भी बहुत महंगा है. गेहूं की कटाई के वक़्त ट्राले वाले बहुत ज़्यादा पैसे मांगते हैं. फिर अनाज मंडी में भी ख़रीद अधिकारी गेहूं ख़रीद के दौरान बड़े ज़मींदारों को ही तरजीह देते हैं. ऐसे में उन्हें अपना अनाज बेचने के लिए कई-कई दिन तक मंडी में ही रहना पड़ता है. इसके अलावा पैसों का भुगतान भी वक़्त पर नहीं होता. ग़ौरतलब है कि पहली अप्रैल से सरकारी ख़रीद केंद्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की ख़रीद शुरू हो गई है. खाद्य मंत्रालय ने इस रबी ख़रीद मौसम के लिए 310 लाख टन गेहूं की ख़रीद का लक्ष्य रखा है. पिछले रबी ख़रीद मौसम में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 250.84 लाख टन गेहूं ख़रीदा गया था. भारतीय खाद्य निगम ने देशभर में 12,076 ख़रीद केंद्र खोले हैं. सबसे ज़्यादा 6,025 ख़रीद केंद्र उत्तर प्रदेश में खोले गए हैं, जबकि मध्य प्रदेश में तीन हज़ार ख़रीद केंद्र हैं. पंजाब में 1,793, हरियाणा में 372, राजस्थान में 370, गुजरात में 220, उत्तराखंड में 203, उत्तराखंड में 68 और पश्चिमी बंगाल में 25 ख़रीद केंद्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं ख़रीदा जा रहा है. पंजाब से गेहूं की ख़रीद का लक्ष्य 110 लाख टन रखा गया है, मध्य प्रदेश से 80 लाख टन, हरियाणा से 65 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 30 लाख टन, राजस्थान से 18 लाख टन, गुजरात से 1.50 लाख टन, उत्तराखंड से 1.60 लाख टन, महाराष्ट्र से 0.17 लाख टन, पश्चिमी बंगाल से 0.20 लाख टन और अन्य राज्यों से 3.53 लाख टन गेहूं ख़रीद का लक्ष्य तय किया है.

ग़ौरतलब यह भी है कि गेहूं ख़रीद साल 2014-15 के लिए केंद्र सरकार ने गेंहू का समर्थन मूल्य 1400 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है. यह पिछली बार घोषित समर्थन मूल्य से 50 रुपये ज़्यादा है. पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने गेहूं के समर्थन मूल्य में 50 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने की सिफ़ारिश की थी, जिसे सरकार ने मंज़ूर कर लिया. हालांकि बढ़ती महंगाई के मद्देनज़र कृषि मंत्रालय ने गेहूं के समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 1450 रुपये प्रति क्विंटल करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे नामंज़ूर कर दिया गया. खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री केवी थॊमस के मुताबिक़ सरकार मुद्रास्फ़ीति को लेकर चिंतित है और जिन अनाजों की पैदावार की जाती है, उनकी क़ीमतें निंयत्रित रखी जा सकती हैं. हालांकि किसान भी समर्थन मूलु कम से कम 100 रुपये बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. किसान राजिन्दर का कहना है महंगाई दिनोदिन बढ़ रही है. बीज से लेकर, खाद, कीटनाशक आदि सबकुछ तो महंगा है, ऐसे में सरकार को गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ाना चाहिए. किसान का पक्ष भी अपनी जगह ठीक है. अगर गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया जाए जाए, तो खुले बाज़ार में गेहूं और ज़्यादा महंगा हो जाएगा और इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान जनमानस को ही होगा.

अच्छी बात यह है कि इस बार भी मंडियों में बंपर गेहूं की आवक होने की उम्मीद है. कृषि मंत्रालय के दूसरे शुरुआती अनुमान के मुताबिक़ साल 2013-14 में गेहूं की बंपर पैदावार 956 लाख टन होने का अनुमान है. साल 2012-13 में 935.1 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी. केंद्रीय पूल में पहली फ़रवरी को 411.38 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है, जिसमें 242 लाख टन गेहूं और 169.38 लाख टन चावल है. आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 21 जून, 2013 को खुले बाज़ार बिक्री योजना के तहत 95 लाख टन गेहूं बेचने की अनुमति दी थी. इसमें से अभी तक सिर्फ़ 50 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है. मार्च के पहले हफ़्ते तक हुई गेहूं की सरकारी ख़रीद में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की है. केंद्र सरकार ने खाद्यान्नों की सरकारी ख़रीद बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं, ताकि किसानों को अपने उत्पाद के वाजिब दाम मिल सकें.  इसके तहत केंद्र सरकार एफ़सीआई और राज्य एजेंसियों के ज़रिये धान और गेहूं के लिए समर्थन मूल्य देती है. केंद्रों पर बिक्री के लिए नियत ब्यौरे का पालन करने वाले सभी खाद्यान्नों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सार्वजनिक ख़रीद एजेंसियों द्वारा ख़रीदा जाएगा. किसानों के पास अपने उत्पाद एफ़सीआई/राज्य एजेंसियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अथवा खुले बाज़ार में बेचने का विकल्प होगा. हर ख़रीद मौसम की शुरुआत से पहले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग आगामी ख़रीद मौसम में सरकारी ख़रीद की व्यवस्था करने के लिए राज्य के खाद्य सचिवों, भारतीय खाद्य निगम और अन्य साझेदारों के साथ बैठक करता है. सरकारी ख़रीद केंद्रों की संख्या का विवरण और पैकेजिंग सामग्री की ख़रीद और भंडारण की जगह के बारे में बैठक में विचार-विमर्श किया जाता है. ख़रीद का मौसम शुरू होने से पहले आपसी विचार-विमर्श से एफ़सीआई/राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा पर्याप्त संख्या में ख़रीद केंद्र खोले जाते हैं. अतिरिक्त ख़रीद केंद्रों की ज़रूरत के बारे में समय-समय पर समीक्षा की जाती है और ज़रूरत पड़ने पर अतिरिक्त सरकारी ख़रीद केंद्र खोले जाते हैं. सहकारी समितियों और स्व सहायता समूहों द्वारा ख़रीद के लिए जो कमीशन लिया जाता है उसे 2009-10 से न्यूनतम समर्थन मूल्य का 2.5 फ़ीसद बढ़ा दिया गया है, ताकि उन राज्यों में छोटे और सीमांत किसानों से खाद्यान्न ख़रीद को प्रोत्साहित किया जा सके, जहां ख़रीद का बुनियादी ढांचा ठीक से विकसित नहीं हुआ है. इससे छोटे और सीमांत किसानों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. राज्य सरकारों को ख़रीद की विकेंद्रीकृत ख़रीद प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा सरकारी ख़रीद की जा सके और न्यूनतम समर्थन मूल्य तक पहुंच बढ़ाई जा सके. इस व्यवस्था के तहत राज्य सरकारें स्वयं सरकारी ख़रीद और खाद्यान्नों के वितरण का काम करती हैं. विकेंद्रीकृत ख़रीद प्रणाली की शुरुआत साल 1997 में की गई थी. छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तराखंड, केरल, कर्नाटक, अंडमान और निकोबार द्वीप और मध्य प्रदेश धान/चावल के लिए विकेंद्रीकृत सरकारी ख़रीद प्रणाली अपनाते हैं, जबकि मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल गेहूं के लिए डीसीपी राज्य हैं. आंध्र प्रदेश सरकार ने केएमएस से डीसीपी प्रणाली अपनाने के अपने फ़ैसले की जानकारी दे दी है. एफ़सीआई और राज्यों को ऐसी जगहों पर ख़रीद केंद्र खोलने के निर्देश दिए गए हैं, जहां किसान आसानी से पहुंच सकें.

क़ाबिले-ग़ौर है कि देश में गेहूं की बंपर पैदावार होती है. हालत यह है कि यहां अनाज को रखने के लिए जगह कम पड़ जाती है. नतीजतन, पिछले काफ़ी अरसे से हर साल हज़ारों टन गेहूं बर्बाद हो रहा है. जहां बहुत-सा गेहूं खुले में बारिश में भीगकर ख़राब हो जाता है, वहीं गोदामों में रखे अनाज का भी 15 फ़ीसद हिस्सा हर साल ख़राब हो जाता है. देशभर में सरकारी अनाज के भंडारण और उसके रखरखाव का काम फूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (एफ़सीआई) के पास है और वह भंडारण क्षमता में सुधार के लिए कोशिश कर रही है. इसमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) स्कीम और प्राइवेट इंटरप्रेन्योर गारंटी (पीईजी) स्कीम भी शामिल है. एफ़सीआई और राज्य एजेंसियों के पास 1 दिसंबर, 2013 को खाद्यान्न का कुल भंडार 452.84 लाख टन था. इसमें 142.17 लाख टन चावल और 310.67 लाख टन गेहूं शामिल है. अगर सरकार इस ख़रीद मौसम में 3.5 करोड़ टन से ज़्यादा गेहूं ख़रीदती है, तो खाद्यान्न का कुल स्टॉक बढ़कर 1 जून, 2014 को क़रीब आठ करोड़ टन हो जाएगा. यह स्टॉक 1 जून को खाद्यान्न की ज़रूरत से बहुत ज़्यादा होगा, जो 3.19 करोड़ टन है. यह एफ़सीआई के पास उपलब्ध भंडारण क्षमता से भी ज़्यादा होगा. एफ़सीआई की भंडरण क्षमता तक़रीबन 7.5 करोड़ टन है, जिसमें राज्य सरकारों से किराये पर लिए भंडारणगृह भी शामिल हैं.

केंद्र के आला अधिकारी राज्यों का दौरा कर सरकारी ख़रीद के इंतज़ामों का जायज़ा ले रहे हैं. पिछले माह केंद्रीय खाद्य सचिव अल्का सिरोही ने पंजाब के मुख्य सचिव रमेशइंद्र सिंह और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के आला अधिकारियों से एक बैठक में राज्य में एक अप्रैल से शुरू होने वाली गेहूं की सरकारी ख़रीद के इंतज़ामों की समीक्षा की. पंजाब में इस बार 110 लाख टन गेहूं की सरकारी ख़रीद का लक्ष्य रखा गया, जिससे भंडारण की समस्या पैदा हो गई है. पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के आला अधिकारियों के मुताबिक़ अनाज का स्टॉक भंडारण क्षमता से तक़रीबन 30 फ़ीसद ज़्यादा होने की उम्मीद है. ऐसे में तक़रीबन 50 लाख टन अनाज रखने के लिए भंडारगृहों की कमी पड़ रही है.  अन्य राज्यों का भी कमोबेश यही हाल है.

इस बार आढ़ती कमीशन को लेकर कुछ नाराज़ हैं, क्योंकि उनके कमीशन में कटौती की गई है. पंजाब और हरियाणा के आढ़तियों को पहले की तरह ही 2.5 फ़ीसद कमीशन मिलेगा, जबकि लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित अन्य राज्यों में कमीशन 33.75 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मिलेगा. केंद्र सरकार के खाद्य सब्सिडी में कटौती करने के फ़ैसले के तहत खाद्य मंत्रालय ने रबी ख़रीद मौसम में गेहूं की ख़रीद में आढ़तियों को दिए जाने वाले कमीशन में कटौती की है. कमीशन पिछले साल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर तय किया गया है. पिछले गेहूं का समर्थन मूल्य 1350 रुपये प्रति क्विंटल था. इसके हिसाब से 2.5 फ़ीसद की दर से कमीशन 33.75 रुपये प्रति क्विंटल होता है. इस रबी ख़रीद मौसम के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य 1400 रुपये प्रति है. इसके हिसाब से 2.5 फ़ीसद की दर से कमीशन 35 रुपये प्रति क्विंटल होता है. पंजाब और हरियाणा में गेहूं की सरकारी ख़रीद पहले की तरह 2.5 फ़ीसद कमीशन के आधार पर ही होगी, जबकि अन्य राज्यों में गेहूं की सरकारी ख़रीद में मध्यस्थ को 33.75 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कमीशन मिलेगा.

इस साल पंजाब में अनाज की सफ़ाई, भराई, ढुलाई, उतराई और चढ़ाई के लिए ई टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरू की गई है. पिछले साल ई टेंडरिंग की प्रक्रिया मोहाली और फ़तेहगढ़ साहिब ज़िले में ही शुरू की गई थी, जिसे अब पूर राज्य में अनिवार्य रूप से लागू कर दिया है. अब गेहूं की ढुलाई के लिए ट्रांसपोट्रर्स और ट्रक यूनियंस के अलावा मज़दूर उपलब्ध कराने वाले ठेकेदारों के लिए जारी किए टेंडर्स के जवाब में ई टेंडरिंग करना अनिवार्य हो गया है. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अभी तक इन टेंडर्स के लिए पार्टियां काग़ज़ पर ही अपने शुल्क की पेशकश करती आई हैं, लेकिन इस बार उनके लिए टेंडर के जवाब में शुल्क की आनॅलाइन पेशकश करना ज़रूरी है. पंजाब के खाद्य एंव आपूर्ति विभाग का दावा है कि इस प्रक्रिया को आनॅलाइन करने वाला पंजाब देश का पहला राज्य है. ग़ौरतलब है कि पंजाब में सरकारी एजेंसियों द्वारा सालाना ख़रीदे जाने वाले तक़रीबन 150 लाख टन अनाज की सफ़ाई, भराई, ढुलाई, उतराई और चढ़ाई का सालाना कारोबार 800 करोड़ के आसपास है. इस कारोबार में बाहुबलियों का वर्चस्व है. ऐसे में नये लोग इस कारोबार में आने से घबराते हैं. जो लोग आ जाते हैं, उन्हें डरा-धमकाकर भगा दिया जाता है. इसके अलावा टेंडर के ड्रॉ निकालने के वक़्त तक विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से टेंडर बदल दिए जाने के आरोप भी लगते रहे हैं. बार-बार एक ही पार्टी को काम दिए जाने के मामले भी सामने आए हैं. मगर ई टेंडरिंग से विभाग के कार्य में पारदर्शिता आएगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.

बहरहाल, मंडियों में गेंहू की आवक शुरू हो गई है. अधिकारियों का कहना है कि गेहूं बेचने वाले किसानों को किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी जाएगी. गेहूं बेचने के बाद तत्काल भुगतान की व्यवस्था चेक द्वारा की जाएगी. अनाज मंडियों में शेड की व्यवस्था की जा रही है. बारदाने का भी इंतज़ाम किया जा रहा है. देखने में आता है कि मंडियों में गेहूं खुले में पड़ा रहता है और बारिश आने पर भीग जाता है. इससे किसानों को उनके उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाते. गर्मी के मौसम में पीने के पानी की समस्या भी रहती है. इसलिए मंडियों में प्याऊ की भी व्यवस्था की जानी चाहिए. फ़िलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि किसानों को उनकी फ़सल के सही दाम मिल जाएं और वे ख़ुशी-ख़ुशी नई फ़सल की तैयारी करें, क्योंकि खेती बिन सब सून.

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