ग़ज़ल
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो, तुम क्या जानो बात मेरी तनहाई की
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आंख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
वस्ल की रात न जाने क्यूं इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफक में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
-क़तील शिफ़ाई
आज पहली दिसम्बर है...
-
*डॉ. फ़िरदौस ख़ान*
आज पहली दिसम्बर है... दिसम्बर का महीना हमें बहुत पसंद है... क्योंकि इसी माह
में क्रिसमस आता है... जिसका हमें सालभर बेसब्री से इंतज़ार रहत...
