ग़ज़ल
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो, तुम क्या जानो बात मेरी तनहाई की
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आंख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
वस्ल की रात न जाने क्यूं इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफक में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
-क़तील शिफ़ाई
ऑल इंडिया रेडियो
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ऑल इंडिया रेडियो से हमारा दिल का रिश्ता है. रेडियो सुनते हुए ही बड़े हुए.
बाद में रेडियो से जुड़ना हुआ.
ऑल इंडिया रेडियो पर हमारा पहला कार्यक्रम 21 दिसम्...