संतोष
केन्द्र सरकार ने देश के शहरों में वाहनों के बढ़ते रेलमपेल और उनकी वजह से रास्तों पर उत्पन्न होते नए संकटों को देखते हुए शहरी परिवहन को सुदृढ़ करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। सरकार की चिंता और चिंतन को इस बात से समझा जा सकता है कि अब तक शहरी परिवहन को लेकर उदासीनता बरतने वाली केन्द्र सरकार इसे सुधारने के लिए हाई-स्पीड कॉरीडोर में दाखिल हो गई है। सरकार अपनी जेएनएनयूआरएम योजना (जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण योजना) से न केवल सड़कों पर साइकिल लेन बनाने के लिए राज्य सरकारों को मदद दे रही है बल्कि विशेषीकृत या डेडीकेटेट बस कॉरीडोर बनाने के लिए मदद देने के साथ ही मेट्रो के संजाल को भी बढ़ाने में जुटी हुई है। केन्द्र सरकार ने यह समझ लिया है कि शहरी परिवहन को सुधारना है तो सबसे पहले शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को इस तरह विकसित करना होगा कि लोग अपने वाहन की जगह सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को प्राथमिकता दें। सरकार की यह कोशिश दिल्ली में उन रूटों पर सफल होती भी दिखती है जहां मेट्रो की पहुंच है। एक अनुमान के मुताबिक ऐसे रूट पर करीब 30 से 40 प्रतिशत लोगों ने अपने वाहनों से दैनिक यात्रा करने की जगह मेट्रो को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है।
केन्द्र सरकार जानती है कि आम आदमी या फिर दैनिक यात्रा करने वाले सभी यात्रियों के लिए प्रतिदिन मेट्रो की सवारी करना आसान नहीं है। यही वजह है कि जेएनएनयूआरएम योजना का संचालन कर रहे केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने सभी शहरों को भी कहा है कि वे सार्वजनिक परिवहन सुधारने के लिए सिर्फ मेट्रो को ही विकल्प ना मानें। शहरों को चाहिए कि पहले से चल रही बस सेवा को सुव्यवस्थित करें। उनकी चाल तेज करने और यात्रा समय को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे विशेषीकृत या डेडीकेटेड कॉरीडोर बनाएं जिसमें सिर्फ बस चले। अन्य वाहनों को उसमें और बस द्वारा अन्य लेन में प्रवेश किए जाने पर पाबंदी हो । ऐसे विशेषीकृत कॉरीडोर बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने अपनी पऊलैगशिप योजना जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना (जेएनएनयूआरएम) के अंतर्गत शहरों को आर्थिक मदद देने की भी पहल की है। इस तरह का एक कॉरीडोर इंदौर व एक कॉरीडोर पुणे में इसकी उपयोगिता को सिध्द कर रहा है। दोनों ही जगह ऐसे विशेषीकृत बस कॉरीडोर वाले रूट पर यात्रा-समय में बीस से तीस मिनट की कमी आई है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस समय दस शहरों पुणे, पिंपरी चिंचवाड़, इंदौर, भोपाल, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, जयपुर, विजयवाड़ा और विजाग में ऐसे कॉरीडोर को मंजूरी दी गई है। इन कॉरीडोर पर 4770.86 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जबकि इन दस रूट पर कॉरीडोर की कुल लम्बाई 422.35 किलोमीटर होगी। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पुणे में कुल 101.77 किलोमीटर,पिंपरी चिंचवाड़ 42.22 किलोमीटर, इंदौर में 11.45 किलोमीटर, भोपाल में 21.71 किलोमीटर, अहमदाबाद में 88.50 किलोमीटर, राजकोट में 29.00 किलोमीटर, सूरत में 29.90 किलोमीटर, जयपुर में 39.45 किलोमीटर, विजयवाड़ा में 15.50 किलोमीटर, विजाग में 42.80 किलोमीटर के डेडीकेटेट बस कॉरीडोर पर क्रमश: 1051, 738.16, 98.45, 237.76, 981.35, 110,469, 479.55, 152.64, 452.93 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक विशेषीकृत बस कॉरीडोर के अलावा विभिन्न शहरों को लो पऊलोर, सेमि लो पऊलोर व लो पऊलोर एसी बसें भी दी जा रही है, जिससे आम आदमी को सुविधाजनक यात्रा का अहसास हो और वे अपने वाहनों को छोड़कर सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दें। इन बसों में आने वाले स्टैंड की पूर्व सूचना देने के लिए उद्धोषणा यंत्र भी लगे होंगे। साथ ही सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बसों में कैमरे लगाए जाने की भी योजना है। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक विभिन्न शहरों को 15260 बस उपलब्ध कराई जा रही हैं। इनमें से हैदराबाद को 1000, तिरुपति को 50, विजयवाड़ा को 240, विशाखापट्टनम को 250, इटानगर को 25, गुवाहाटी को 200, बोधगया को 25, पटना को 100, रायपुर को 100,दिल्ली को 1500, दिल्ली मेट्रो को 100, पणजी को 50, अहमदाबाद को 730, फरीदाबाद-इलाहाबाद को 150-150, शिमला-जम्मू-कश्मीर-अगरतला को 75-75, धनबाद को 100, जमशेदपुर को 50, रांची को 100, बंगलुरू को 1000, मैसूर को 150, कोची को 200, त्रिवेंद्रम को 150, भोपाल को 225, इंदौर को 175, जबलपुर को 75, उज्जैन को 50, महानगर रोडवेज-वेस्ट को 1000, नवी मुम्बई को 150, मीराभांयदर-कल्याणडोंबली-पुड्डुचेरी को 50-50, नागपुर-लखनऊ को 300-300, नांदेड को 30, पीएमपीएमएल पुणे को 500, पीएमपीएमएल पीसीबएमसी को 150, भोपाल को 225, इंदौर को 175, जबलपुर को 75, उज्जैन को 50, महाराष्ट्र महानगर रोडवेज-वेस्ट को 1000, नवी मुम्बई को 150 नासिक को 100, इंफाल को 25, शिलांग को 120, आईजवल व कोहिमा-पुरी-गंगटोक को 25-25, भुवनेश्वर को 100, अमृतसर को 150, लुधियाना-आगरा को 200, अजमेर को 35, जयपुर को 400, चैन्नई को 1000, कोयम्बटूर-मदुरई को 300-300, कानपुर को 304, मथुरा-देहरादून-नैनीताल को 60-60, मेरठ को 150, वाराणसी को 146, चंडीगढ़ को 100, हरिद्वार को 25, आसनसोल को 100 और कोलकाता को 1200 बस दी जाएंगी।
मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार डेडीकेटेड बस कॉरीडोर, लो पऊलोर बसों के साथ ही शहरी परिवहन को सुधारने के लिए मेट्रो की लाइनों का भी विस्तार किया जा रहा है। दिल्ली की लाइनों के अलावा चैन्नई में मेट्रो विस्तार के लिए 14,600 करोड़ रुपये कैबिनेट ने मंजूर किए हैं । इसके अलावा केन्द्र सरकार ने बंगलुरू मेट्रो के लिए 9.3 किलोमीटर रूट के विस्तार को भी मंजूरी दी है। इनके अलावा देश में पहली निजी मेट्रो चलाने के लिए रिलायंस कंपनी आगे आई है और उसके नेतृत्व में एक समूह को मुम्बई के बर्सोवा-घाटकोपर लाइन के लिए 471 करोड़ रुपये और चारकोप-मनखुर्द लाइन के लिए 1532 करोड़ रुपये की अंतर राशि के लिए सरकारी सहायता (वाइबलिटी गैप फंडिंग) या केन्द्र सरकार द्वारा इतनी राशि वहन की भी सैध्दांतिक मंजूरी दी है। केन्द्र सरकार ने यह भी कहा है कि अगर अन्य निजी कंपनियां भी मेट्रो परिचालन में रुचि रखती हों तो उन्हें आगे आना चाहिए, जिससे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था दुरुस्त करने में उनकी मदद सरकार को हासिल हो सके। सरकार ने ऐसी कंपनियों की कुल लागत का एक हिस्सा वाइबलिटी गैप फंडिंग के तौर पर उपलब्ध कराने का भी आश्वासन दिया है। शहरी परिवहन को दुरुस्त करने और सार्वजनिक परिवहन को गति देने के लिए इन उपायों को करने के साथ ही केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने हाल ही में दिल्ली, गोवाहाटी आईआईटी के साथ ही दो अन्य संस्थानों में यातायात विषय पर उत्कृष्टता केन्द्र(सेंटर आफ एक्सिलेंसी) स्थापित किए हैं। ये चारों केन्द्र तय समय सीमा में सरकार को सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुदृढ करके शहरी परिवहन को दुरस्त करने के लिए अपनी विशेषीकृत राय देगी। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी और शहरी विकास सचिव एम. रामचंद्रन के मुताबिक केन्द्र सरकार शहरी परिवहन व्यवस्था के सुधार के लिए प्रतिबध्द है। इन उपायों के साथ ही परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने के लिए आने वाले समय में कम्प्यूटर आधारित परिवहन व्यवस्था (इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम) भी लागू किया जाएगा। मंत्रालय शहरी परिवहन सुधारने के अन्य आयामों को भी देख रहा है।