नरेन्द्र देव
2 अक्टूबर का
दिन कृतज्ञ राष्ट्र के लिए राष्ट्रपिता की शिक्षाओं को स्मरण करने का एक और अवसर
उपलब्ध कराता है। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में मोहन दास कर्मचंद गांधी का आगमन
खुशी प्रकट करने के साथ-साथ हजारों भारतीयों को आकर्षित करने का पर्याप्त कारण
उपलब्ध कराता है तथा इसके साथ उनके जीवन-दर्शन के बारे में भी खुशी प्रकट करने का
प्रमुख कारण है, जो बाद में
गांधी दर्शन के नाम से पुकारा गया। यह और भी आश्चर्यजनक बात है कि गांधी जी के व्यक्तित्व
ने उनके लाखों देशवासियों के दिल में जगह बनाई और बाद के दौर में दुनियाभर में
असंख्य लोग उनकी विचारधारा की तरफ आकर्षित हुए।
इस बात का विशेष श्रेय गांधी जी को
ही दिया जाता है कि हिंसा और मानव निर्मित घृणा से ग्रस्त दुनिया में
महात्मा गांधी आज भी सार्वभौमिक सदभावना और शांति के नायक के रूप में अडिग
खड़े हैं और भी दिलचस्प बात यह है कि गांधी जी अपने जीवनकाल के दौरान शांति के
अगुवा बनकर उभरे तथा आज भी विवादों को हल करने के लिए अपनी अहिंसा की विचार-धारा से
वे मानवता को आश्चर्य में डालते हैं। बहुत हद तक यह महज एक अनोखी घटना ही नहीं
है कि राष्ट्र ब्रिटिश आधिपत्य के दौर में कंपनी शासन के विरूद्ध अहिंसात्मक
प्रतिरोध के पथ पर आगे बढ़ा और उसके साथ ही गांधी जी जैसे नेता के नेतृत्व में अहिंसा
को एक सैद्धांतिक हथियार के रूप में अपनाया। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि उनकी
विचारधारा की सफलता का जादू आज भी जारी है।
क्या कोई इस तथ्य से इंकार कर सकता
है कि अहिंसा और शांति का संदेश अब भी अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय विवादों
को हल करने के लिए विश्व नेताओं के बीच बेहद परिचित और आकर्षक शब्द है ? यह कहने की जरूरत नहीं कि इस बात का मूल्यांकन करना कभी संभव
नहीं हुआ कि भारत और दुनिया किस हद तक शांति के मसीहा महात्मा गांधी के प्रति आकर्षित
है।
हालांकि यह शांति अलग तरह की शांति
है। खुद शांति के नायक के शब्दों में- मैं शांति पुरूष हूं, लेकिन मैं किसी चीज की कीमत पर शांति नहीं चाहता। मैं
ऐसी शांति चाहता हूं, जो आपको
कब्र में नहीं तलाशनी पड़े। यह विशुद्ध रूप से एक ऐसा तत्व है, जो गांधी को शांति पुरुष के रूप में उपयुक्त दर्जा देता है।
यह उल्लेखनीय है कि शांति का अग्रदूत होने के बावजूद महात्मा गांधी न सिर्फ
किसी ऐसे व्यक्ति से अलग-थलग रहे, जो शांति के नाम पर कहीं भी या कुछ भी गलत मंजूर करेगा।
गांधी जी की शांति की परिभाषा
संघर्ष के बगैर नहीं थी। दरअसल उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में गोरों के
शासन के विरूद्ध संघर्ष में बुद्धिमानी से उनका नेतृत्व किया था। इसके बाद 1915 में भारत वापस आने पर गांधी जी ने समाज सुधारक
के साथ, अस्पृश्यता और अन्य
सामाजिक बुराइयों के विरूद्ध दीर्घदर्शक के रूप में अहिंसा का इस्तेमाल किया। बाद
में उन्होंने राजनीतिक परिदृश्य तक इसका विस्तार किया और दीर्घकाल में अपने
प्रेम, शांति और आपसी समायोजन के संदेश
को हिंदू मुस्लिम भाई-चारे के लिए इस्तेमाल किया।
उनका मशहूर भक्ति गीत रामधुन-ईश्वर अल्लाह
तेरे नाम अब भी हिंदू-मुस्लिम शांति के लिए राष्ट्र का श्रेष्ठ गीत है। यह हमें इस
बहस में ले जाता है कि गांधी जी के लिए शांति का क्या मतलब था। जी हां, कोई कह सकता है कि व्यापक तौर पर शांति
उनके लिए अपने आप में कोई अंत नहीं था। इसके बजाय यह सिर्फ मानवता का बेहतर कल्याण सुनिश्चित करने
के लिए एक माध्यम थी।
वस्तुत:
महात्मा गांधी सत्य के अग्रदूत थे। दरअसल उन्होंने
खुद भी कहा था कि सच्चाई शांति की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण
है। इस संदर्भ में यंग इंडिया अखबार में महात्मा गांधी के निम्नलिखित शब्द
उदाहरण के लिए प्रस्तुत किये जाते हैं, जो बिल्कुल प्रासंगिक हैं।
महात्मा गांधी
ने लिखा – हालांकि
हम भगवान की शान में जोर-जोर से गाते हैं और पृथ्वी पर शांत
रहने के लिए कहते हैं, लेकिन
आज न तो भगवान के प्रति वह शान और न ही धरती पर शांति
दिखाई देती है। महात्मा गांधी ने यह शब्द दिसंबर 1931 में लिखे थे। 17
वर्ष बाद
जनवरी 1948
में एक क्रूर हथियारे की गोली से उनका स्वर्गवास हो गया। यह बहुत दर्दनाक
था कि सार्वभौमिक शांति और अंहिसा का संत हिंसा और घृणा का शिकार बना। लेकिन
2010 के
आज के दौर में भी महात्मा गांधी के 1931 के शब्द सत्य हैं।
आज
दुनिया बहुत से और हर प्रकार के विवादों का सामना कर रही है, इसलिए हम
देखते हैं कि सार्वभौमिक भाईचारे और शांति और सहअस्तित्व के बारे में गांधी जी का
बल आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। इसलिए उनकी शिक्षाएं आज भी देशभक्ति के सिद्धांत
के साथ-साथ विभिन्न वैश्विक विवादों को हल करने या समाप्त करने के मार्ग और
माध्यम सुझाती हैं। दरअसल गांधी जी की शिक्षाओं का सच्चा प्रमाण इस तथ्य में निहित
है कि सिर्फ अच्छाई समाप्त होती है, वह बुरे माध्यमों को तर्क
संगत नहीं ठहराती
है। इसलिए आज दुनियाभर में मानव प्रतिष्ठा और प्राकृतिक न्याय के मूल्य को
बनाए रखने पर बल दिया जाता है। यह स्पष्ट है कि आज की
दुनिया में शांति
के संकट के सिवाए कुछ भी स्थाई नजर नहीं आता है तथा शांति के इस मसीहा को इससे
बेहतर श्रद्धांजली और कुछ नहीं होगी कि शांति और आपसी सहनशीलता के हित में काम किया
जाए। यही गांधीवाद की प्रासंगिकता है।