-फ़िरदौस ख़ान 
पिछले माह हमने लिखा था- लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश की जा रही है. इसी के तहत उन पर संगीन आरोप लगाए जा रहे हैं. अब यह हक़ीक़त सामने आ गई है कि राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी और इसी साज़िश के तहत ही उन पर बलात्कार का संगीन आरोप लगाया गया था. समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि उसकी पार्टी के आलाकमान ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए उकसाया था.

राहुल गांधी उभरते हुए नेता हैं और देश का युवा उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहता है. ऐसे में उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचे जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है. उन पर लगे बलात्कार के आरोप की भी साज़िश से जोड़कर देखा जा रहा है. बहरहाल, इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने तो पहली ही सुनवाई में राहुल ख़िलाफ़ दाख़िल की गई याचिका को ख़ारिज कर दिया था...साथ ही याचिकाकर्ता पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसके ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी. अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है...    

बहरहाल, कांग्रेस महासचिव और अमेठी के सांसद राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में एक लड़की और उसके माता-पिता को से बंधक बनाकर रखने और लड़की से बलात्कार के आरोपों से इनकार करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक हलफ़नामा दाख़िल किया है. हलफ़नामे में उन्होंने कहा, "ख़ुद पर लगाए गए बलात्कार और अपहरण के आरोपों से मैं पूरी तरह इनकार करता हूं. ये दोनों आरोप पूरी तरह ग़लत, तुच्छ, परेशान करने वाले और छवि को ख़राब करने के लिए सुनियोजित ढंग से लगाए गए हैं."

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल छह अप्रैल को राहुल गांधी, उत्तर प्रदेश सरकार और चार अन्य लोगों को नोटिस जारी किया था. हलफ़नामे में कहा गया है, "हम आदरपूर्वक कहना चाहते हैं कि इस तरह के आरोपों के मामले गंभीरता से देखे जाने चाहिए." उसी के जवाब में राहुल गांधी ने यह हलफ़नामे दाख़िल किया. इलाहबाद उच्च न्यायालय ने समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी, जिस पर न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर और टीएस ठाकुर की खंड पीठ ने रोक लगा दी थी और सभी पक्षों से चार हफ़्तों में जवाब दाख़िल करने के लिए कहा था. राहुल गांधी ने न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और सीके प्रसाद की खंडपीठ के सामने दायर हलफ़नामे में ये सारी बातें कही हैं.

गौरतलब है कि कि मध्य प्रदेश से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते और गजेंद्र पाल सिंह ने  पिछले साल एक मार्च को राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दो अलग-अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थीं, जिनमें कहा गया था कि साल 2006 में राहुल गांधी अपने कुछ विदेशी मित्रों के साथ पार्टी के कार्यकर्ता बलराम सिंह के घर में रुके. उसी दिन से बलराम सिंह, उनकी पत्नी सावित्री और पुत्री सुकन्या ग़ायब हैं. याचिका में आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी ने सभी का अपहरण करके उन्हें बंदी बनाकर रखा है.

अदालत के 4 मार्च, 2011 के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश के डीजीपी करमवीर सिंह ने कथित सुकन्या और उसके माता-पिता को अदालत में पेश किया और उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया था. सुकन्या बताई जा रही ल़डकी ने अदालत को अपना असली नाम कीर्ति सिंह बताया, जबकि अपने पिता का नाम बलराम सिंह, मां का नाम सुशीला उर्फ़ मोहिनी होने की पुष्टि की. अमेठी थाना प्रभारी ने इन तीनों कथित बंदियों की शिनाख्त की.

इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर ही 50 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया. इसके साथ ही खंडपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि जुर्माने की रक़म एक महीने में जमा की जाए. इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ताओं की सीबीआई जांच कराने का भी आदेश दिया. जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस सतीश चंद्र की बेंच ने कथित रूप से अमेठी में रहने वाली सुकन्या और उसके माता-पिता को राहुल द्वारा बंदी बना लिए जाने की खबर देने वाली एक वेबसाइट पर भी प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए.

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