मिस्र की राजधानी काहिरा स्थित अल-अज़हर विश्वविद्यालय के इमाम शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने कक्षा में छात्राओं और शिक्षिकाओं के बुर्क़ा पहनने पर रोक लगाकर एक नया विवाद पैदा कर दिया है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कई इस्लामी सांसदों ने शेख़ तांतवई के इस्तीफ़े की मांग करते हुए इसे इस्लाम पर हमला क़रार दिया है.
ग़ौरतलब है कि बुर्क़े पर पाबंदी लगाने का ऐलान करने के बाद इमाम शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने क़ुरान का हवाला देते हुए कहा है कि नक़ाब इस्लाम में लाज़िमी (अनिवार्य) नहीं है, बल्कि यह एक रिवाज है.
उनका यह भी कहना है कि 1996 में संवैधानिक कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि कोई भी सरकारी मदद हासिल करने वाले शिक्षण संस्था का अधिकारी स्कूलों में इस्लामिक पहनावे पर अपना फ़ैसला दे सकता है. बताया जा रहा है कि पिछले दिनों एक स्कूल के निरीक्षण के दौरान शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने एक छात्र से अपने चेहरे से नक़ाब हटाने को भी कहा था. गौरतलब है कि मिस्र के दानिश्वरों का एक बड़ा तबका बुर्क़े या नक़ाब को गैर ज़रूरी मानता है. उनके मुताबिक़ नक़ाब की प्रथा सदियों पुरानी है, जिसकी शुरूआत इस्लाम के उदय के साथ हुई थी.
अल-अज़हर विश्वविद्यालय सरकार द्वारा इस्लामिक कार्यो के लिए स्थापित सुन्नी समुदाय की एक उदारवादी संस्था मानी जाती है, जो मुसलमानों की तरक्की को तरजीह देती है. इसलिए अल-अज़हर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों और शिक्षिकाओं के नक़ाब न पहनने को सरकार द्वारा सार्वजनिक संस्थानों में बुर्क़ा प्रथा पर रोक लगाने का एक हिस्सा माना जा रहा है. क़ाबिले-गौर है कि सऊदी अरब के दूसरे देशों के मुक़ाबले मिस्र काफ़ी उदारवादी देश है. अन्य मुस्लिम देशों की तरह यहां भी बुर्क़ा या नक़ाब पहनना एक आम बात है.
क़ाबिले-गौर है कि साल 2004 में फ़्रांस ने सरकारी स्कूलों और दफ़्तरों में हिजाब और अन्य धार्मिक चिन्हों के पहनने पर पाबंदी लगा दी थी. इस पर काफ़ी बवाल भी मचा था. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी ने कहा था कि फ्रांस में बुर्क़ा पहनना स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि बुर्क़ा पहनने वाली महिलाएं क़ैदी के समान हैं, जो आम सामाजिक जीवन जीने से महरूम रहती हैं और अपनी पहचान की मोहताज होती हैं. इसके कुछ वक़्त बाद ही फ़्रांस की महिला मुस्लिम मंत्री फ़देला अमारा ने फ्रांस में बुर्क़े पर पाबंदी का समर्थन करते हुए कहा था कि बुर्क़ा महिलाओं को क़ैदी की तरह बना देता है और फ़्रांस के मौलिक सिद्धांतों में से एक महिला-पुरुष के बीच समानता की अवहेलना करता है. बुर्क़ा एक पहनावा ही नहीं बल्कि एक धर्म के राजनीतिक दुरुपयोग का प्रतीक है. उनका कहना था कि बुर्क़े पर पाबंदी से महिलाओं का मनोबल बढ़ेगा.
फ्रांस में मुस्लिम आबादी अन्य सभी यूरोपीय देशों के मुक़ाबले ज़्यादा है और कुछ अरसा पहले बुर्क़े पर प्रतिबंध के मुद्दे पर यहां की संसद ने एक 32 सदस्यीय आयोग का गठन किया है.