ग़ज़ल
पत्थर शीशे जैसे दिल से, टकराए, टकराने दे,
अक्स किसी का टुकड़े-टुकड़े, हो जाए, हो जाने दे,

इंतज़ार करके हमने तो, पूरा अपना फ़र्ज़ किया,
वापस जाकर फिर भी कोई, ना आये, ना आने दे !

मुश्किल तो यह है, मुश्किल से, मुश्किल की पहचान हुई,
ऐसी मुश्किल में भी कोई, मुस्काये, मुस्काने दे !

दिल का हाल जुबां-चेहरे पर, आ जाए तो हर्ज़ नहीं,
मेरे हाल-चाल से वो जी, बहलाए, बहलाने दे !

मेरी उम्मीदे-ज़मीन पर, कब्ज़ा कर ले और वहां,
ताजमहल अपनी यादों का, बनवाये, बनवाने दे !

हमने इस दुनिया में रहकर, सारे मंज़र देख लिए,
कोई खुद को पाक-साफ़ जो, बतलाये, बतलाने दे !

सच पूछो तो, इस दुनिया को, पता नहीं है जीवन का,
बात पते की, कोई पंडित, समझाए, समझाने दे !
-अतुल मिश्र


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या हुसैन

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सत्तार अहमद ख़ान

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