ग़ज़ल
ज़िन्दगी का उधार है हम पर,
सच तो यह है कि भार है हम पर,
ज़िन्दगी का पता नहीं लेकिन,
मौत को ऐतबार है हम पर !
दर्द तो बेहिसाब है, लेकिन,
बस, ज़रा सा करार है हम पर !
आइना सामने दिखाने से,
सख्त नाराज़ यार है हम पर !
इश्क में आह भी नहीं होती,
जाने कैसा बुखार है हम पर ?
अर्सों पहले जो नज़रे-मय पी थी,
आज तक भी खुमार है हम पर !
हम उसे सिर्फ एक पल देखें,
जिसका जादू सवार है हम पर !
-अतुल मिश्र
ग़ालिब की डायरी है दस्तंबू
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*फ़िरदौस ख़ान*
हिन्दुस्तान के बेहतरीन शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने उर्दू शायरी को नई ऊंचाई दी.
उनके ज़माने में उर्दू शायरी इश्क़, मुहब्बत, विसाल, हिज्र और हुस्...
