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नई दिल्ली. अवसाद, गंभीर मानसिक बीमारी और अकेलेपन का सम्बंध हृदय बीमारी और डीमेंशिया (याददाश्त में कमी वाली बीमारी) से है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया और ई मेडिन्यूज के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के पूर्व डॉ. जेसी स्टीवर्ट के अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि अवसाद और धमनियों के सख्त होने का आपस में सम्बंध है।

अध्ययन के मुताबिक, जो व्यक्ति सबसे ज्यादा डिप्रेशन में होते हैं, उनकी धमनियां दोगुना ज्यादा सिकुड़ जाती हैं बनिस्बत उन लोगों के जो सबसे कम डिप्रेशन की अवस्था में रहते हैं। धमनियों का सिकुड़ना भविष्य में हार्ट अटैक या स्ट्रोक को दर्शाता है। अवसाद से शरीर की ग्रंथियों पर भी असर हो सकता है जिनसे रसायन निकलते हैं जो एनर्जी लेवल और उनकी वृध्दि को संचालित करते हैं और बाद में ब्लड क्लॉटिंग (रक्त के थक्के) के लिए जिम्मेदार होते हैं। धमनियों के सिकुड़ने से इम्यून सिस्टम पर ओवररिएक्शन होता है और इसकी वजह से इनफ्लेमेश होता है जिसको रसायन के निकलने के तौर पर जाना जाता है जो बीमारी की वजह बन सकता है।

एक अन्य अध्ययन का हवाला देते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा कि गंभीर तरीके से मानसिक समस्या से ग्रसित लोगों में कोरोनरी हार्ट डिसीज और स्ट्रोक से तीन गुना ज्यादा मौत का खतरा रहता है बनिस्बत उन लोगों को जो मानसिक बीमारी के शिकार नहीं होते हैं। मानसिक बीमारी से 75 की उम्र तक हृदय बीमारी का खतरा दो गुना ज्यादा हो जाता है। हृदय बीमारी से मौत का खतरा उन लोगों में ज्यादा होता है जो लोग एंटीसाइकोटिक मेडिकेशन लेते हैं।

एक अन्य अध्ययन का हवाला देते हुए डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बूढ़े लोगों में लगातार अकेलेपन के अहसास से उनमें अल्झाइमर जैसी बीमारी का खतरा दोगुना बढ़ जाता है बनिस्बत उन लोगों के जो ऐसा महसूस नहीं करते हैं।


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