भला कहते हो कैसे जमाने से है प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
प्रेम सचमुच जगत में बहुत अनमोल।
जिसमें दुनिया समायी है आंखें तो खोल।
फिर भी दिखता हो नफरत तो जीना बेकार।
भला कहते हो कैसे जमाने से है प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
जिन्दगी जंग ऐसा कि लड़ते सभी।
कभी बाहर से घायल तो भीतर कभी।
हो मुहब्बत की मरहम तो होगा सुधार।
भला कहते हो कैसे जमाने से है प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
भला कहते हो कैसे जमाने से है प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
-श्यामल सुमन
आज पहली दिसम्बर है...
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*डॉ. फ़िरदौस ख़ान*
आज पहली दिसम्बर है... दिसम्बर का महीना हमें बहुत पसंद है... क्योंकि इसी माह
में क्रिसमस आता है... जिसका हमें सालभर बेसब्री से इंतज़ार रहत...
