फ़िरदौस ख़ान
देश में बाघों की लगातार घटती संख्या से चिंतित सरकार बाघ अभयारण्य पर विशेष ज़ोर दे रही है. ऐसा ही एक बांदीपुर बाघ अभयारण्य है, जो कर्नाटक राज्य के मैसूर ज़िले में स्थित है. भारत में 1973 में शुरू की गई बाघ परियोजना के तहत इसकी गिनती पहले नौ बाघ अभयारण्यों में है. बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क मैसूर के महाराजाओं द्वारा 1930 में स्थापित सर्वाधिक आकर्षक वन्य जीव केन्द्रों में से एक है. शिकार करने का उनका निजी पार्क था. वर्ष 1941 में इसका विस्तार करके उत्तर पश्चिम में राजीव गांधी राष्ट्रीय पार्क-नागरहोल के साथ, दक्षिण पश्चिम में केरल के वयनाड वन्य-जीव शरण स्थल के साथ और दक्षिण मे तमिलनाडु के मदुमलाई वन्यजीव शरणस्थल के साथ मिला दिया गया जो अब मिलकर नीलगिरि बायोस्फीयर शरणस्थल के नाम से जाना जाता है. यह भारत का पहला बायोस्फीयर शरणस्थल है. इस पार्क को इस बात का गर्व है कि यहां तब से बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती रही है. यह चंदन के वृक्षों और दुलर्भ पेड़-पौधों के लिए भी प्रसिध्द है. यहां सबसे ऊंची शिखर गोपालस्वामी पहाड़ी है. बांदीपुर का तापमान 10 और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. इस पार्क में औसतन वर्षा 1200 एमएम होती है.
इस अभयारण्य के मुख्य बारहमासी नदियां नुगु, काबीनी और मोयर हैं. नुगु नदी इस अभयराण्य के बीचोबीच बहती है, जबकि मोयर नदी इस अभयारण्य और मधुमलाई वन्य जीव शरण स्थल की दक्षिणी सीमा है. काबीनी नदी इस अभयारण्य और नागरहोल के बीच सीमा का काम करती है और इस नदी पर बीचनहाली में एक बड़ा बांध बनाया गया है.
काबीनी जलाशय बड़ी और लम्बी विपत्ति के समय में सैंकड़ों हाथियों के लिए चरने का मैदान और जल की सुविधा उपलब्ध कराता है. यहां पर मौसमी नदियां भी है. इनके नाम हैं - बादली, चमनहाला, एदासनहत्तीहाल, हेबकला, वराचीं, चिप्पनकला और माबिनहल्ला. इस अभयराण्य में कुछ प्राकृतिक और कृत्रिम लवणलेह भी है और जंगली पशुओं द्वारा उनका नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है.
बांदीपुर बाघ अभयारण्य, 1973 में तत्कालीन वेणुगोपाल वन्य जीव पार्क के अधिकांश वन क्षेत्र और बांदीपुर मंदिर को मिलाकर बनाया गया था और इसका नाम बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क रखा गया. 1931 में बांदीपुर अभयारण्य के वन में 90 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक शरणस्थल बनाया गया. वेणुगोपाल वन्य जीव पार्क 1941 में बनाया गया जो कि 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है. इस पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर का नाम वेणुगोपाल देवता के नाम पर रखा गया. इस अभयारण्य में शामिल सभी वन आरक्षित वन हैं और स्वतंत्रता से पहले अधिसूचित किए गए हैं. बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क में बेशकीमती इमारती लकड़ी के अनेक किस्म के वृक्ष हैं. इसके अलावा जाने-माने फूलों और फलों के अनेक वृक्ष भी हैं.
बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क मे बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं. यहां स्तनधारी परभक्षियों की भी अच्छी आबादी है. मुख्य पशुओं में बाघ,चीता, हाथी, सम्बर, गौर, लकड़बघा, चित्तीदार हिरण, जंगली कुत्ते, कुरंग. उनमें बाघ, चार सीघों वाले कुरंग, गौर, हाथी, तेंदुआ, मगरमच्छ, सांप आदि संकटापन्न पशु हैं. अलग-अलग प्रकार की 85 तितलियां और 67 प्रकार की चीटियां भी यहां पाई जाती हैं.
देश में बाघों की लगातार घटती संख्या से चिंतित सरकार बाघ अभयारण्य पर विशेष ज़ोर दे रही है. ऐसा ही एक बांदीपुर बाघ अभयारण्य है, जो कर्नाटक राज्य के मैसूर ज़िले में स्थित है. भारत में 1973 में शुरू की गई बाघ परियोजना के तहत इसकी गिनती पहले नौ बाघ अभयारण्यों में है. बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क मैसूर के महाराजाओं द्वारा 1930 में स्थापित सर्वाधिक आकर्षक वन्य जीव केन्द्रों में से एक है. शिकार करने का उनका निजी पार्क था. वर्ष 1941 में इसका विस्तार करके उत्तर पश्चिम में राजीव गांधी राष्ट्रीय पार्क-नागरहोल के साथ, दक्षिण पश्चिम में केरल के वयनाड वन्य-जीव शरण स्थल के साथ और दक्षिण मे तमिलनाडु के मदुमलाई वन्यजीव शरणस्थल के साथ मिला दिया गया जो अब मिलकर नीलगिरि बायोस्फीयर शरणस्थल के नाम से जाना जाता है. यह भारत का पहला बायोस्फीयर शरणस्थल है. इस पार्क को इस बात का गर्व है कि यहां तब से बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती रही है. यह चंदन के वृक्षों और दुलर्भ पेड़-पौधों के लिए भी प्रसिध्द है. यहां सबसे ऊंची शिखर गोपालस्वामी पहाड़ी है. बांदीपुर का तापमान 10 और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. इस पार्क में औसतन वर्षा 1200 एमएम होती है.
इस अभयारण्य के मुख्य बारहमासी नदियां नुगु, काबीनी और मोयर हैं. नुगु नदी इस अभयराण्य के बीचोबीच बहती है, जबकि मोयर नदी इस अभयारण्य और मधुमलाई वन्य जीव शरण स्थल की दक्षिणी सीमा है. काबीनी नदी इस अभयारण्य और नागरहोल के बीच सीमा का काम करती है और इस नदी पर बीचनहाली में एक बड़ा बांध बनाया गया है.
काबीनी जलाशय बड़ी और लम्बी विपत्ति के समय में सैंकड़ों हाथियों के लिए चरने का मैदान और जल की सुविधा उपलब्ध कराता है. यहां पर मौसमी नदियां भी है. इनके नाम हैं - बादली, चमनहाला, एदासनहत्तीहाल, हेबकला, वराचीं, चिप्पनकला और माबिनहल्ला. इस अभयराण्य में कुछ प्राकृतिक और कृत्रिम लवणलेह भी है और जंगली पशुओं द्वारा उनका नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है.
बांदीपुर बाघ अभयारण्य, 1973 में तत्कालीन वेणुगोपाल वन्य जीव पार्क के अधिकांश वन क्षेत्र और बांदीपुर मंदिर को मिलाकर बनाया गया था और इसका नाम बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क रखा गया. 1931 में बांदीपुर अभयारण्य के वन में 90 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक शरणस्थल बनाया गया. वेणुगोपाल वन्य जीव पार्क 1941 में बनाया गया जो कि 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है. इस पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर का नाम वेणुगोपाल देवता के नाम पर रखा गया. इस अभयारण्य में शामिल सभी वन आरक्षित वन हैं और स्वतंत्रता से पहले अधिसूचित किए गए हैं. बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क में बेशकीमती इमारती लकड़ी के अनेक किस्म के वृक्ष हैं. इसके अलावा जाने-माने फूलों और फलों के अनेक वृक्ष भी हैं.
बांदीपुर राष्ट्रीय पार्क मे बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं. यहां स्तनधारी परभक्षियों की भी अच्छी आबादी है. मुख्य पशुओं में बाघ,चीता, हाथी, सम्बर, गौर, लकड़बघा, चित्तीदार हिरण, जंगली कुत्ते, कुरंग. उनमें बाघ, चार सीघों वाले कुरंग, गौर, हाथी, तेंदुआ, मगरमच्छ, सांप आदि संकटापन्न पशु हैं. अलग-अलग प्रकार की 85 तितलियां और 67 प्रकार की चीटियां भी यहां पाई जाती हैं.